Indian Economy: बहुत कुछ गलत हो सकता है…कंट्रोल के बाहर, दिग्‍गज अर्थशास्‍त्री ने बताया खतरा?

नई दिल्‍ली। भारत की आर्थिक नींव मजबूत है। लेकिन, देश के विकास के लिए असली खतरे इसकी सीमाओं के बाहर हैं। मॉर्गन स्टैनली के मैनेजिंग डायरेक्टर और चीफ इंडिया इक्विटी स्ट्रैटेजिस्ट रिधम देसाई ने यह बात कही है। उन्होंने बिजनेस स्टैंडर्ड बीएफएसआई समिट में बताया कि भले ही कंपनियों और घरों की बैलेंस शीट अच्छी है और सुधारों से रफ्तार मिल रही है। लेकिन, दुनिया रिकॉर्ड कर्ज, घटती आबादी और अप्रत्याशित भू-राजनीतिक बदलावों का सामना कर रही है। देसाई ने कहा कि भारत के लिए बहुत कुछ गलत हो सकता है। इनमें से ज्यादातर चीजें भारत के नियंत्रण से बाहर हैं। ये स्थिति को और खराब बनाती हैं। कारण है कि जिन चीजों को आप कंट्रोल कर सकते हैं, उन्हें आप पहले से ठीक कर सकते हैं

देसाई ने इस बात पर जोर दिया कि भारत के घरेलू आर्थिक हालात बेहद मजबूत हैं। उन्होंने कहा, ‘हमारी कंपनियों की बैलेंस शीट बहुत साफ-सुथरी है। मैं इस आम धारणा से सहमत नहीं हूं कि घरों की बैलेंस शीट पर बोझ है। ऐसा बिल्कुल नहीं है, यह ठीक है। इसलिए बैलेंस शीट पर कोई समस्या नहीं है।’ उन्होंने यह भी कहा कि भारत को सुधारों से भी काफी फायदा मिल रहा है। देसाई के मुताबिक, ‘भारत में बहुत सारे आसान मौके हैं। हमें बस अपना हाथ बढ़ाना है और उन्हें हासिल करना है। अचानक आपको विकास के बड़े अवसर मिलेंगे।’ उन्होंने समझाया कि इसके लिए किसी बड़े कानून की जरूरत नहीं है, बल्कि ये बहुत आसान कदम हैं जिन्हें उठाया जा रहा है।

चुनौतियों पर चेतावनी
हालांकि, देसाई ने भारत के बाहर गहरी संरचनात्मक चुनौतियों के बारे में चेतावनी दी। उन्होंने कहा, ‘दुनिया रिकॉर्ड कर्ज पर बैठी है और बूढ़ी हो रही है। यह कोई अच्छी बात नहीं है।’ उन्होंने एलन मस्क की बात का समर्थन करते हुए कहा कि दुनिया की आबादी की समस्या जलवायु परिवर्तन से कहीं बड़ी है क्योंकि इंसान अभी तक घटती आबादी को कैसे पलटा जाए, यह नहीं सीख पाए हैं।

आबादी सबसे बड़ी ढाल

देसाई ने भारत की आबादी को देश का ‘सबसे बड़ा बचाव’ बताया, खासकर ऐसे समय में जब खपत बहुत महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा, ‘दुनिया रोबोट की बात करती है, लेकिन रोबोट कपड़े नहीं पहनते। वे कार नहीं चलाते। वे खाना नहीं खाते। वे छुट्टियां नहीं मनाते। वे उपभोक्ता नहीं हैं। अगर रोबोट हमारी फैक्ट्रियां चलाने लगे तो वे किसके लिए चीजें बनाएंगे? वे इंसानों के लिए चीजें बनाएंगे। इस देश में दुनिया में कहीं के मुकाबले सबसे ज्यादा इंसान हैं।’अर्थशास्‍त्री ने बताया कि इसी वजह से बहुराष्ट्रीय कंपनियां भारत की ओर आकर्षित हो रही हैं। उन्‍होंने कहा, ‘कुछ कंपनियां प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) करेंगी और कहेंगी कि उन्हें भारत में एक फैक्ट्री चाहिए। कुछ ऐसा नहीं करेंगी – बाद में, मुझे लगता है कि उनका नजरिया बदलेगा।’

देसाई ने भू-राजनीतिक चुनौतियों के बारे में भी आगाह किया, यह कहते हुए कि भारत का तत्काल परिवेश कठोर बना हुआ है। उन्‍होंने कहा, ‘हम अपने पड़ोसियों को नहीं चुनते। लेकिन, हमारे ज्यादातर पड़ोसी या तो दिवालिया हैं – राजनीतिक और वित्तीय दोनों तरह से – या कम से कम किसी न किसी रूप में दिवालिया हैं। इसलिए यह हमेशा किसी न किसी तरह से भारत को खतरा पहुंचाता है और इसे देखना होगा।’

Sanjay Saxena

BSc. बायोलॉजी और समाजशास्त्र से एमए, 1985 से पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय , मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल के दैनिक अखबारों में रिपोर्टर और संपादक के रूप में कार्य कर रहे हैं। आरटीआई, पर्यावरण, आर्थिक सामाजिक, स्वास्थ्य, योग, जैसे विषयों पर लेखन। राजनीतिक समाचार और राजनीतिक विश्लेषण , समीक्षा, चुनाव विश्लेषण, पॉलिटिकल कंसल्टेंसी में विशेषज्ञता। समाज सेवा में रुचि। लोकहित की महत्वपूर्ण जानकारी जुटाना और उस जानकारी को समाचार के रूप प्रस्तुत करना। वर्तमान में डिजिटल और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से जुड़े। राजनीतिक सूचनाओं में रुचि और संदर्भ रखने के सतत प्रयास।

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