अमर हो गए गजोधर भैया... हंसाते रहे और रुला कर चले गए


क्या वास्तव में राजू श्रीवास्तव का निधन हो गया? सही बात तो यह है कि राजू श्रीवास्तव की नहीं बल्कि उस सत्यप्रकाश की मौत हुई है, जिसके शरीर में राजू श्रीवास्तव नाम का हास्य कलाकार रहा करता था... कभी आपने महसूस किया है कि आपके आंसू निकल रहे हों और आप साथ में हंस रहे हों। बहुत कठिन होता है ऐसा करना। लेकिन जो व्यक्ति जीवन में आपको ऐसा करना सिखा जाए, वो ही जीने का असली सलीका सिखाकर गया।
कानपुर की तंग गलियों से निकले सत्यप्रकाश श्रीवास्तव जब राजू श्रीवास्तव बने तो करोड़ों दिलों में छा गए। राजू श्रीवास्तव हास्य की दुनिया में जनता का दुख दर्द लेकर आए। वह कॉमेडी में ताजा हवा के झोंके की तरह थे। देश के दिल को उन्होंने कॉमेडी का मंच दिया। तब तक लोगों को इस बात का इल्म भी नहीं था कि किसी के चलने फिरने, बोलने बतियाने के ढंग को भी हास्य में तब्दील किया जा सकता है।  
 राजू श्रीवास्तव ने तमाम किरदारों को शोहरत बख्शी। गजोधर सबसे ज्यादा प्रसिद्ध हुआ। उनके अंदर उससे बड़ी खूबी थी निर्जीव वस्तुओं के आसपास कुदरती माहौल गढक़र उनसे भी हास्य पैदा कर देने की। बरात में लोगों के खाना खाते समय खाने की प्लेट में चावल, नान, दाल और दूसरी चीजों के आपस में बातें करने वाला उनका एक्ट लोगों के बीच लंबे समय तक चर्चा में रहा। जो लोग राजू को करीब से जानते थे वो उनके जीने के फंडों से भी काफी वाकिफ थे। नकारात्मकता को कभी पास न आने देना भी एक कला है और राजू इस कला में माहिर थे। वो कहते थे, जीवन का सही आनंद लेना है... तो भैया जिंदगी की जो भी नकारात्मकता है, उसे सकारात्मक सोच में बदल दो, नहीं तो जी नहीं पाओगे। इसके साथ ही राजू का हमेशा एक और फंडा रहा कि अपनी कमजोरियों और मजबूरियों को छिपाने की आवश्यकता नहीं है, बल्कि इन्हें अपनी जीवन शैली का हिस्सा बनाइए, आप देखेंगे कि आपकी यहीं बातें सकारात्मक रूप ले रही हैं।
एक बार राजू ने कहा था कि लोग आपको चाहे जितना दुत्कारें, फटकारें और गालियां दें। आप धैर्य रखिए और एक हल्की मुस्कान चेहरे पर रखिए। ये आपकी ताकत में अजीब सा इजाफा कर देंगी और आपका आत्मविश्वास और बढ़ जाएगा। राजू हमेशा कहते थे कि अपने काम से प्यार कीजिए क्योंकि यही आपको आपकी पहचान देगा। इसके साथ ही इस बात का ध्यान रखें कि आप चाहें जितने बड़े क्यों न हो जाएं अपना परिवार, अपनी जमीन, अपने मोहल्ले, अपने शहर और अपने लोगों से जुड़ाव किसी भी हाल में खत्म नहीं करना चाहिए। क्योंकि यही वो बातें हैं जो संघर्ष के दिनों में आपको मनोबल प्रदान करती हैं।
चलिए अब थोड़ा उनके बारे में जान लेते हैं। जैसा मैंने आपको बताया कि राजू श्रीवास्तव का असली नाम सत्यप्रकाश श्रीवास्तव है। कानपुर के बाबूपुरवा में रहने वाले रमेश चंद्र श्रीवास्तव (बलई काका) के घर राजू ने 25 दिसंबर 1963 में जन्म लिया था। एक बार अमर उजाला से बातचीत के दौरान राजू श्रीवास्तव ने बताया था कि 1981 में उनके बड़े भाई की शादी फतेहपुर में तय हुई थी। कानपुर से बरात लेकर गए। वहीं शिखा को पहली बार देखा और पहली ही नजर प्यार हो गया। सोचा अब इसी से ही शादी करुंगा। शिखा के बारे में छानबीन की तो पता चला ये भाभी के चाचा की बेटी हैं। इसके बाद काफी प्रयासों के बाद राजू आखिर उन्हें अपनी पत्नी बनाने में कामयाब हो गए।
अब बताइए जो आदमी सकारात्मक ऊर्जा से इतना भरा हो, जो जीवन को इस नजरिए से देखता हो, क्या वो कभी मर सकता है। इसलिए राजू श्रीवास्तव के लिए इतना ही कहना उचित होगा कि ऐसे लोग कभी नहीं मरते। एक अमर हास्य कलाकार के रूप में गजोधर हमारे दिलों में बरसों-बरस रहेंगे।
-संजय सक्सेना

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