Editorial: व्यापम घोटाले का जिन्न फिर जागा
सत्ता में रहते कांग्रेस ने भी साध ली थी चुप्पी
पूरे बारह साल बाद मध्यप्रदेश के 45 परिवहन आरक्षकों की नियुक्ति परिवहन विभाग ने निरस्त की है। व्यापम के माध्यम से वर्ष 2012 में हुई इस भर्ती को लेकर सीबीआई, एसआईटी सहित तमाम जांच एजेंसियों को उस दौरान शिकायत की गई थी। अब नियुक्तियां निरस्त होने के बाद कांग्रेस सीबीआई द्वारा अब तक इस मामले को लेकर की गई जांच की हाईकोर्ट के जज से जांच कराने की मांग कर रही है। सवाल तो उठेगा ही, क्या वास्तव में व्यापम घोटाले की जांच सही दिशा में हुई? और, क्या इसके पीडि़तों को कभी न्याय मिल पाएगा?
मध्य प्रदेश में सीबीआई ने जितने भी मामलों में जांच की है, पिछले तीन-चार दशकों की तो हम कह सकते हैं, शायद ही कोई जांच मुकाम पर पहुंच पाई होगी। यही नहीं शायद ही कोई ऐसा केस रहा होगा, जिसकी जांच को लेकर सवाल नहीं उठे हों। इसे प्रदेश का दुर्भाग्य कहा जाए या इसकी तासीर, कि एक मामले में सीबीआई के जांच करने के लिए आए अधिकारी ही भ्रष्टाचार में पकड़े भी गए। यही कारण है कि अब कांग्रेस व्यापम घोटाले की जांच हाई कोर्ट के किसी रिटायर वरिष्ठ जज की निगरानी में जांच करवाने की मांग कर रही है।
देखा जाए तो प्रदेश में व्यापम परीक्षाओं के घोटाले का लंबी चौड़ी सूची है। पिछले 10-12 सालों से लगातार कांग्रेस इस मुद्दे को उठाती आई है। लेकिन जब प्रदेश में डेढ़ साल तक कांग्रेस की सरकार रही, उसने इस मामले की किसी तरह की विशेष जांच नहीं बैठाई। इतना ही नहीं, जिनके खिलाफ वो पूर्व में आरोप लगाती रही, उनमें से किसी के खिलाफ कोई आरोप पत्र तैयार नहीं करवा पाई। इससे खुद कांग्रेस की नीयत पर सवाल उठे, लेकिन किसी ने कुछ नहीं किया।
अब फिर कांग्रेस कह रही है कि परिवहन की परीक्षा हुई तो गलत नियुक्तियां की गई। जब सरकार सुप्रीम कोर्ट गई तो कोर्ट के निर्देश पर मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने इस नियुक्ति को निरस्त किया। इससे यह स्पष्ट होता है कि मध्य प्रदेश के परीक्षाओं में घोटाला हुआ।
पहले हाई कोर्ट के निर्देश पर आरक्षक की भर्ती को सरकार को निरस्त करना पड़ा, जबकि सरकार यही कहती रही कि इसमें कोई घोटाला नहीं हुआ। साफ है कि व्यापम के माध्यम से परीक्षाओं में बड़े-बड़े घोटाले होते रहे हैं। सीबीआई की जांच यहां पर हुई। कहा जा रहा है कि इसका कोई लेखा-जोखा उपलब्ध नहीं है। कांग्रेस नेताओं का कहना है कि अगर सरकार ने घोटाला नहीं किया है तो सारी चीजें पब्लिक प्लेटफॉर्म पर आनी चाहिए। अब फिर मांग कर रहे हैं कि इस पूरे महाघोटाले की जांच उच्च न्यायालय के वरिष्ठ जज की निगरानी में की जाए। साथ ही जनता के सामने सच आना चाहिए।
कांग्रेस नेताओं ने ये सवाल पूछे हैं-
क्या कारण है कि प्रदेश के 1 लाख 47 हजार नौजवानों के भविष्य से खिलवाड़ करने वाले जिस घोटाले में प्रदेश के तत्कालीन राज्यपाल के खिलाफ हाईकोर्ट के निर्देश पर एफआईआर हुई। उनके बेटे और ओएसडी, तत्कालीन मुख्यमंत्री के ओएसडी, प्रेमप्रकाश जो सीएम के सरकारी निवास पर ही रहते थे। वे अग्रिम जमानत पर रिहा हुए इस मामले में मंत्री जेल गए। कई आईएएस, आईपीएस के नाम सामने आए। कई शिक्षा माफियाओं, साल्वर्स सहित व्यापम के अधिकारी-कर्मचारी लंबे समय तक जेल में रहे। तो रिश्वत देने वाले अभ्यर्थियों, उनके अभिभावकों को आज भी ट्रायल कोर्ट से लंबी सजाएं हो रही हैं। यानी परीक्षाओं में घोटाले हुए, जो बिना भ्रष्टाचार के संभव नहीं थे । यदि जांच पारदर्शी थी तो बड़े-बड़े आरोपी आज बाहर क्यों हैं?
इतने बड़े घोटाले में प्रदेश के तत्कालीन प्रभावशाली राजनेता और व्यापम की तत्कालीन मुखिया से सीबीआई ने पूछताछ तक क्यों नहीं की? क्या यह गलत है कि सीबीआई जांच दल के नियुक्त पहले मुखिया मप्र में उन्हीं की बैच के आइपीएस सहयोगी के साथ उन्हीं के चार पहिया वाहन में आधी रात को मिलने सीएम हाउस गये थे, क्या यह पारदर्शी जांच कही जा सकती है?
पीएमटी परीक्षा घोटाले के एक प्रमुख पदाधिकारी यूसी ऊपरीत ने पुलिस को दिये अपने अधिकृत बयान में कहा था हम हर नये चिकित्सा शिक्षा मंत्री के बनते ही उन्हें 10 करोड़ रुपए पहुंचा देते थे। इतने गंभीर-दस्तावेजी आरोप और घोटाले के वक्त चिकित्सा शिक्षा मंत्री कौन था, सीबीआई ने उनसे पूछताछ क्यों नहीं की? 22 जनवरी 2014 को एसटीएफ ने हाईकोर्ट में एक हलफनामा देते हुए कहा था कि व्यापम में वर्ष 2008 तक के दस्तावेज मौजूद नहीं हैं, हम जांच कैसे करें? मप्र लोक सेवा आयोग में अपने द्वारा आयोजित परीक्षाओं की उत्तर पुस्तिकाएं 10 सालों तक और रिजल्ट 20 साल तक सुरक्षित रखा जाता है, यही नियम व्यापम में भी लागू होता है तो व्यापम में दस्तावेज क्यों, कैसे और किसके निर्देश पर नष्ट हुए?
कुल मिलाकर व्यापम का जिन्न एक बार फिर बोतल से बाहर आया है। सही बात तो यह है कि व्यापम घोटाले में गिरफ्तार लोगों में ज्यादा संख्या उनकी रही, जिन्होंने बच्चों को मेडिकल परीक्षा में पास कराने रिश्वत दी थी। इसे विडम्बना ही कहा जाएगा कि रिश्वत देने वाले जेल, बच्चों को मेडिकल से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया, दर्जनों आत्महत्याएं हुईं, एक पत्रकार की मौत भी हुई, लेकिन रिश्वत लेने वाले तमाम लोग जांच के दायरे से बाहर ही कर दिए गए। पीएमटी मामले में तो वाकई जांच पूरी तरह से संदेह के दायरे में ही रही। और तो और प्रदेश की जो जांच टीम बनी थी, उसके सदस्यों के करोड़पति बनने की कहानियां भी सामने आईं। केवल सूची में नाम शामिल करने के नाम पर करोड़ों की वसूली की जाने की चर्चाएं सार्वजनिक होती रहीं, लेकिन बिगड़ा उन लोगों का, जो शिकायतकर्ता रहे या जो व्हिसल ब्लोअर रहे।
कड़वा सच यही है कि पूरे व्यापम की यदि जांच सही नहीं हुई, तो इसमें सभी पक्ष के लोग कहीं न कहीं दोषी रहे हैं। जिन लोगों की मौतें हुईं, उनकी बात तो अभी हो ही नहीं रही है। अभी केवल परिवहन आरक्षकों का मामला उठाया जा रहा है। लेकिन यहां कांग्रेस खुद भी कठघरे में खड़ी दिखाई दे रही है। जब उसकी बीच में सरकार बनी, तो बीस साल तक उसने जो भी मुद्दे विधानसभा या सडक़ पर उठाए, किसी भी मामले की जांच के लिए कोई एसआईटी नहीं बनाई। और तो और, सिंहस्थ घोटाले को लेकर तो कांग्रेस सरकार की तरफ से सदन में खुद ही कह दिया गया कि इसमें घोटाला ही नहीं हुआ।
इसलिए सही मायने में व्यापम घोटाले के लिए केवल तत्कालीन सत्तापक्ष ही नहीं, आज का विपक्ष भी दोषी कहा जा सकता है। आज जो नेता यह मामला उठा रहे हैं, जब उनकी सरकार बनी तो उन्होंने क्या किया? अब सवाल यह तो उठेगा ही कि जिनके साथ अन्याय हुआ, क्या उन्हें न्याय मिल पाएगा? जिन बच्चों का भविष्य बर्बाद हुआ, क्या उनका भविष्य संवारने की कोई पहल होगी? जिनकी मौत हुई, उनका क्या? खैर..। फिलहाल परिवहन आरक्षकों की नियुक्ति निरस्त हो गई है। ये वो लोग हैं, जिन्होंने या तो रिश्वत दी, या ऊंची पहुंच के चलते उनका चयन सूची में नाम शामिल किया गया था। अब सबसे महत्वपूर्ण सवाल यही है कि क्या जिन लोगों ने रिश्वत ली या जिन लोगों ने ये घोटाला किया, उनमें से किसी तक कानून के हाथ पहुंच पाएंगे?
– संजय सक्सेना