पांच दिन बनाम पौने चार घंटे....जरूरत ही क्या है लोकतंत्र के मंदिरों की...?


पांच दिन का विधानसभा सत्र...पौने चार घंटे चला सदन...43 मिनट में बिना चर्चा पारित हुए सभी विधेयक...सदन में विधायक रोए.. कुर्ता फाड़ा गया...। ये कुछ झलकियां हैं मध्यप्रदेश विधानसभा के मानसून सत्र की। जुलाई में जो मानसून सत्र होना था, वो टलते-टलते सितंबर में हुआ। उसके भी हाल ये। 
विधानसभा के अंतिम दिन के कुछ दृश्यों पर दृष्टिपात करें। पहली बार हंगामा हुआ। कार्यवाही स्थगित हो गई। बारह बजे सदन की कार्यवाही पुन: प्रारंभ होते ही दोनों पक्षों की ओर से आसंदी के समक्ष नारेबाजी की जाने लगी। विधानसभा अध्यक्ष ने एक-एक करके सभी विधेयक और प्रतिवेदन प्रस्तुत कराए। 43 मिनट में नौ हजार 519 करोड रुपये से अधिक का अनुपूरक बजट, भारतीय स्टांप शुल्क मध्य प्रदेश संशोधन, लाड़ली लक्ष्मी बालिका प्रोत्साहन, वेट अधिनियम, काष्ठ चिरान विनियमन, नगर पालिक विधि, मध्य प्रदेश नगर पालिका द्वितीय संशोधन, निजी विश्वविद्यालय स्थापना एवं संचालन, सिविल न्यायालय, मध्य प्रदेश व्यावसायिक परीक्षा मंडल और भू-राजस्व संहिता में संशोधन विधेयक बिना चर्चा पारित हो कर दिए गए।
कथित पोषण आहार घोटाले की तख्तियां लेकर कांग्रेस विधायक विधानसभा के गेट नंबर तीन से अंदर आने की कोशिश कर रहे थे, तभी गेट पर मौजूद पुलिस ने विधायकों से तख्तियां छीन लीं। इसी दौरान पुलिस के साथ कांग्रेस विधायकों की झूमा-झटकी हुई। इसके बाद कांग्रेस विधायक पांचीलाल मेढ़ा और मनोज चावला ने पुलिस पर धक्का-मुक्की और मारपीट करने के आरोप लगाए। गुरुवार को भी इसी मुद्दे पर बहस हुई। विधानसभा की कार्यवाही प्रारंभ होते ही कांग्रेस और भाजपा के विधायक आमने-सामने आ गए। पहले पूरक पोषण आहार और फिर आदिवासी विधायक पांचीलाल मेढ़ा के अपमान का मुद्दा कांग्रेस ने उठाया। नेता प्रतिपक्ष डा.गोविन्द सिंह ने कहा कि पोषण आहार के विषय पर दल की ओर से जो स्थगन प्रस्ताव दिया था, उस पर चर्चा कराई जाए। संसदीय कार्य मंत्री डा.नरोत्तम मिश्रा ने कहा कि बुधवार को भरपूर अवसर दिया गया पर कांग्रेस चर्चा ही नहीं करना चाहती है। सभी तथ्य सामने आ चुके हैं, इसलिए इस पर चर्चा नहीं कराई जा सकती है। कांग्रेस के विधायकों ने आसंदी के समक्ष आकर नारेबाजी की। इस बीच भाजपा विधायक उमाकांत शर्मा ने आसंदी के समक्ष आकर अपनी सुरक्षा का मुद्दा उठाया। उनके साथ एक-एक करके भाजपा सदस्य भी एकत्र हो गए और कांग्रेस के विरुद्ध नारेबाजी करने लगे। उधर, कांग्रेस विधायक पाचीलाल मेढ़ा कहते हैं- मेरे क्षेत्र धार जिले की धरमपुरी विधानसभा में कारम डैम में 304 करोड़ रुपए का घोटाला किया गया। डैम के इलाके से आदिवासी भाइयों को जंगल में पटक दिया गया। फसलें बर्बाद हो गईं। घर टूट गए। मवेशी मर गए। इन्हीं बातों को लेकर मैं बुधवार को विधानसभा जा रहा था। उस समय पुलिस वालों ने मुझे रोका। गेट पर झूमा-झटकी की। विधानसभा में बात नहीं सुनी गई तो दूसरे दिन गुरुवार को फिर आसंदी से हाथ जोडक़र बार-बार एक घंटे तक निवेदन करता रहा, लेकिन नहीं सुना गया। सदन में जब मैं गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा को पुलिस द्वारा किए दुर्व्यवहार से अवगत करा रहा था, तभी विधायक उमाकांत शर्मा पीछे की सीट से आए और धक्का-मुक्की करने लगे। क्या मैं अपने क्षेत्र की आवाज सदन में नहीं उठा सकता? विधानसभा अध्यक्ष ने मेरी बात नहीं सुनी। उमाकांत शर्मा ने मेरे साथ मारपीट की। मेरे कपड़े फाड़े गए।
कौन गलत था और कौन सही, यह सदन के मामले में तो स्पीकर को ही तय करने का अधिकार है। और बाहर जनता को। वैसे जनता तो हतप्रभ है। पिछले कई वर्षों से मध्यप्रदेश विधानसभा में चर्चा होते देखी नहीं गई। हालांकि यही हाल संसद का भी है। बजट हो या अनुपूरक बजट। या फिर कोई जनता से सीधे जुड़ा विधेयक। विपक्ष की ओर से लाए जाने वाले स्थगन, ध्यानाकर्षण आदि। चर्चा होती नहीं, या फिर होने नहीं दी जाती। विधायिका ही इससे अधिक दुर्गति तो शायद ही किसी अवधि में हुई होगी। जन प्रतिनिधियों को जनता चुनकर इसलिए इन सदनों में भेजती है कि वे उनके हित के मुद्दे उठाएंगे। वहां नूरा-कुश्ती का आलम हो जाता है। 
लोक हित के मुद्दे जब सदन के बाहर या सडक़ पर ही उठाना पडें़, तो इन सदनों की उपयोगिता ही क्या? बजट पारित करने के लिए केवल संख्या की ही तो जरूरत होती है। सदन से क्या लेना-देना? सत्तापक्ष अपने विधायक दल की बैठक बुलाता ही है, उसी में पारित कर देना चाहिए। विधानसभा भवनों और संसद भवन को स्मारक का दर्जा देकर उन्हें पर्यटकों के लिए खोल देना चाहिए। कम से कम यहां होने वाले करोड़ों के खर्च को तो कम करने में मदद मिलेगी। हर मिनट का पैसा लगता है। किसलिए? केवल कुश्ती लडऩे के लिए? केवल आरोप-प्रत्यारोप लगाने के लिए? केवल कुर्ते फाडऩे और हाथापाई करने के लिए? 
-संजय सक्सेना

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