Editorial: mahakumbh ..दुर्घटना पर सवाल तो उठेगा

प्रयागराज महाकुंभ में मौनी अमावस्या स्नान पर्व पर मौन डुबकी की ललक में संगम पर हुआ दुखद हादसा आस्था के जन ज्वार में कुछ ही समय बाद ही पीछे छूट गया। बृहस्पतिवार की आधी रात को ही संगम नोज की सर्कुलेटिंग एरिया में तिल रखने की जगह नहीं बची। चेहरे पर उत्साह और पांवों में कभी न आने वाली थकान का भाव लिए संगम की दूरी पूछते लोग आस्था की डगर पर बढ़ते नजर आए। विशाखापत्तनम से चाहे लाल मार्ग हो या काली मार्ग या फिर त्रिवेणी मार्ग। हर तरफ से भक्ति की लहरें संगम की ओर उफनाती रहीं।
परंतु, ब्रह्ममुहूर्त स्नान से ठीक पहले संगम नोज पर जुटी बेकाबू भीड़ की आपाधापी से जो भगदड़ मची और हृदय विदारक घटना घटी, उसने कई सवाल तो खड़े कर ही दिये हैं। एक सच यह भी है कि इस अप्रत्याशित हादसे से एक बार फिर हमारा धर्म अनुशासन सवालों के घेरे में आ चुका है। यहां बात धर्म की नहीं, धार्मिक अनुशासन और संयम की हो रही है। इसके साथ ही भीड़ प्रबंधन सम्बन्धी प्रशासनिक तैयारियां भी, जिसको लेकर लाख प्रशासनिक दावे होते रहते हैं, जबकि एकाध घटनाएं ही उसकी तैयारियों की पूरी पोल खोल देती हैं।
सुलगता सवाल यह है कि प्रयागराज महाकुंभ में भीड़ प्रबंधन की विफलता से हुए हृदयविदारक हादसे के लिए जवाबदेह कौन है? जिम्मेदार कौन है? आखिर ब्रेक के बाद जहां-तहां होते रहने वाली ऐसी रूह कंपा देने वाली घटनाओं को रोकने में हमारा प्रशासन अबतक नाकाम क्यों है और वह कबतक सक्षम हो पाएगा? या फिर कभी नहीं हो पाएगा, क्योंकि ऐसे मामलों में उसका ट्रैक रिकॉर्ड हमेशा खराब प्रतीत हुआ है। यहां बात सरकार की नहीं, प्रशासन की हो रही है। और कहीं न कहीं व्यवस्था में सेंध तो लगी ही है।
फिलहाल तो योगी सरकार ने प्रयागराज महाकुंभ हादसे की न्यायिक जांच करवाने के आदेश दे दिए हैं, ताकि यह पता चल सके कि इतनी बड़ी प्रशासनिक चूक कैसे हुई और उसके लिए कौन-कौन लोग जिम्मेदार है? इतने महत्वपूर्ण वैश्विक आयोजन में पहले हुईं अग्निकांड की घटनाएं और फिर अनियंत्रित भीड़ से मची भगदड़ के चलते वहां की पूरी प्रशासनिक तैयारी भी एक बार पुन: सवालों के घेरे में आ चुकी है। कहना न होगा कि वहां जो कुछ भी हुआ, वह भीड़ प्रबंधन सम्बन्धी प्रशासनिक विवेक के अकाल का परिचायक तो है ही, साथ ही साथ उसके त्वरित निर्णय लेने की क्षमता की अक्षमता को भी उजागर कर चुका है। जबकि वहां सीसीटीवी कैमरे, ड्रोन और हेलीकॉप्टर तक से निगहबानी हो रही है, ताकि त्वरित निर्णय लेते हुए स्थिति पर काबू पाया जा सके।
इसके साथ ही बड़ा सवाल यह भी है कि इस हादसे के बाद आवागमन व वीआईपी व्यवस्था सम्बन्धी जो नीतिगत बदलाव किए गए, वह पहले ही क्यों नहीं किए गए? चूंकि महाकुंभ सम्बन्धी तैयारियां महीनों पहले से चल रही थीं और करोड़ों लोगों के जुटने के पूर्वानुमान भी लगाए जा चुके थे। फिर भी वहां हुई प्रशासनिक तैयारी तो नाकाफी लगी ही, साथ ही साथ श्रद्धालुओं के लिए कष्ट प्रदायक भी महसूस हुई। क्योंकि उनमें बच्चों, महिलाओं, बुजुर्गों और विकलांग लोगों की सहूलियत का कोई ख्याल नहीं रखा गया था। इसलिए हताहतों व घायलों की सूची में उनकी संख्या ज्यादा है।
इन बातों के मद्देनजर यह समझा जा सकता है कि प्रयागराज महाकुंभ हादसा एक अनहोनी थी, जो घट गई। इस दौरान वहां जो कुछ भी हुआ वह अत्यंत ही दुखद है। क्योंकि प्रयागराज कुंभ में भगदड़ मचने की वजह से असमय ही कुछ लोग काल-कवलित हो गए, जो दुर्भाग्यपूर्ण घटना है। लेकिन महाकुंभ जैसे अपार जनभागीदारी वाले आयोजन को जिस सुव्यवस्थित तरीके से अब तक आयोजित किया गया, उसे किसी अनहोनी से कमतर नहीं करार दिया जा सकता।
फिर भी, हमारे धर्म की यह खूबी रही है कि हम ऐसी अनेक घटनाओं को बहुत जल्द ही भूल भी जाते हैं। देखा जाए तो धर्म और आस्थाओं का ज्वार अच्छी बात है, परंतु इस ज्वार के चलते हम संयम न खोएं, इसका ध्यान तो रखना ही होगा। ऐसे धार्मिक आयोजनों में लोग अतिउत्साह में अपना संयम खो देते हैं और भगदड़ जैसी स्थिति बन जाती है। हालांकि इसमें व्यवस्थाओं की कमी आग में घी का काम करती है, लेकिन भीड़ नियंत्रण की जिम्मेदारी भी भीड़ की ही होती है।
एक बात और गौर करने लायक है, ऐसे आयोजनों में वीआईपी कल्चर। सही बात तो यह है कि हमारे अति विशिष्ट लोगों की सेवा में जब पूरा प्रशासन जुट जाता है और लाखों की भीड़ को व उसकी व्यवस्थाओं को नजरअंदाज कर दिया जाता है, तब ही दुर्घटना होती है। यहां भी ऐसा ही हुआ। आगे ऐसा होगा? यहां तो फिलहाल इस पर रोक लगा दी है, लेकिन अन्य आयोजनों में ऐसा न हो, इस पर ध्यान दिया जाएगा? मुझ तो नहीं लगता। क्योंकि पहले भी इसी तरह की घटनाएं हो चुकी हैं, लेकिन हम सावधान नहीं हुए। बस, ईश्वर ही कुछ कर सकता है, सो उसी पर विश्वास कर सकते हैं।
– संजय सक्सेना