Editorial
अभियान चले, लेकिन पेड़ तो दिखाई दें…!

एक बार फिर लाखों पेड़ लगाने का उत्सव प्रारंभ हो रहा है। इस बार मां के नाम पर पेड़ लगाने की बात कही जा रही है। बहुत अच्छी बात है। पर्यावरण के लिए बहुत अच्छा संकेत भी है और संदेश भी। परंतु पिछले अनुभवों के आधार पर कुछ आशंकाएं भी पैदा होना स्वाभाविक है। कुछ साल पहले तो कुछ करोड़ पौधे लगाने का अभियान चलाया गया था। नदियों से कुछ दूरी पर इन्हें लगाने का दावा किया गया था, लेकिन बाद में पता चला कि एक चौथाई भी पेड़ नहीं लगे और दस प्रतिशत भी नहीं बचे।
आज ही सुबह खबर आई, जिसमें राजधानी के वृक्षारोपण को लेकर निराशा व्यक्त की गई है। खबर के अनुसार शहर में पिछले पांच साल में सरकारी तौर पर साढ़े छह लाख से अधिक पेड़ लगाए गए। इस पर करीब 30 करोड़ खर्च हुए। हालत ये है कि इनमें से 70 प्रतिशत पेड़ सूख चुके हैं। बीआरटीएस व स्मार्ट सिटी के नाम पर शिफ्ट 775 पेड़ों में से एक भी नहीं बचा। पौधरोपण व पेड़ों की शिफ्टिंग के नाम पर सिर्फ दिखावा होने का दावा ही किया जाता रहा है। कलियासोत डेम से 13 शटर तक 2019 में रोपे गए दो हजार पौधों का नामो-निशान तक नजर नहीं आता। स्मार्ट सिटी क्षेत्र में स्टेडियम के पास, जवाहर चौक, लाड़ली बहना पार्क में रोपे गए अधिकांश पौधों का अता-पता नहीं है। ये गायब हो चुके हैं।
नियम ऐसे हैं कि 30 सेमी से अधिक गोलाई वाले किसी भी पेड़ को केवल फीस जमा कर काट सकते हैं। नतीजा शहर का ग्रीन कवर यानि हरियाली का हमारा कवच मात्र 9 प्रतिशत ही रह गया है। शहर में पेड़ काटने की अनुमति के लिए पिछले पांच साल में 1 करोड़ 35 लाख रुपए जमा हुए और लगभग ढाई हजार पेड़ काटने की अनुमति दी गई। 30 सेमी से कम गोलाई वाले पेड़ों को काटने का कोई शुल्क नहीं लिया जाता और ना उनकी गिनती होती है। इसके अलावा बड़े पेड़ों को भी छंटाई की अनुमति के नाम पर काट दिया जाता है। जिन पेड़ों को काटने की अनुमति दी जा रही है इनमें से अधिकतर की उम्र 40 साल से ज्यादा थी। और जो पौधे लगाए जा रहे हैं उन्हें उस स्थिति में आने में लंबा वक्त लगेगा। यही सबसे बड़ी विडम्बना है।
क्षतिपूर्ति पौधरोपण की एक बड़ी हकीकत यह भी है कि जिन इलाकों से पेड़ काटे जा रहे हैं उसके बदले में पेड़ कई किलोमीटर दूर लगाए जा रहे हैं। भोपाल-नरसिंहगढ़ नेशनल हाईवे के विस्तार के लिए 2433 पेड़ एनएचएआई ने काटे थे। इसकी भरपाई के लिए 4 गुना यानी 9732 पौधे 9 अलग-अलग शैक्षणिक संस्थानों के कवर्ड कैंपस में लगा दिए गए। अब वहां क्या हालात है, यह भी नहीं देखा गया, कितने पेड़ लगे और कितने बचे। इसी तरह मेट्रो डिपो के लिए स्टड फार्म वाले इलाके से 947 पेड़ काटे गए। इसकी ऐवज में मिले 5.50 लाख शहर में होने वाले पौधरोपण पर खर्च करने का दावा किया गया है।
छह साल पहले स्मार्ट सिटी बसाने के लिए टीटी नगर से पेड़ काटने पर हुए विरोध को दबाने के लिए पेड़ों की शिफ्टिंग शुरू हुई। यह एक नौटंकी ही साबित हुई, क्योंकि कलियासोत के पास जो 125 पेड़ शिफ्ट किए गए थे, उनमें से एक भी नहीं बचा। इस पर लगभग 18.75 लाख रुपए खर्च हुए थे। यहां सूखे पेड़ों के ठूंठ लोग होली पर जलाने के लिए ले गए। इसके पहले बीआरटीएस के लिए 650 पेड़ शिफ्ट किए, इनमें से एक भी नहीं बचा। इस शिफ्टिंग पर लगभग 60 लाख रुपए खर्च हुए थे। यह पेड़ सीहोर नाका भैंसाखेड़ी, मिसरोद विश्राम घाट, बावडिय़ा कला, नूतन कॉलेज आदि जगहों पर लगाए थे। अब इनके सिर्फ ठूंठ बचे हैं। कई जगह तो ठूंठ भी गायब हो गए।
मानसून आने के साथ ही पौधरोपण के अभियानों की चर्चा होने लगती है। सरकार अपने स्तर पर अभियान चलाती है और तमाम स्वयंसेवी संगठन और अन्य तरह के संगठन भी सक्रिय हो जाते हैं। लेकिन जो नतीजे मिलना चाहिए, वो नहीं मिल पाते। यही कारण है कि भोपाल का पर्यावरण तमाम अन्य शहरों से बेहतर होने के बावजूद यहां का तापमान बढ़ता जा रहा है। बीस सालों में एक से डेढ़ डिग्री सेल्सियस तक तापमान औसतन बढ़ा है।
असल में जो पेड़ काटे जाते हैं, वो पुराने और बड़े होते हैं। उनके स्थान पर जो लगाए जाते हैं, उनमें झाड़ वाले पौधों की संख्या ज्यादा होती है। अब नीम और आम के बजाय कनेर या अन्य ऐसे ही शो वाले पौधे लगेंगे तो पर्यावरण का संतुलन कैसे बनेगा? सडक़ों के किनारे कई क्षेत्रों में तो बड़े-बड़े पेड़ लगे हैं, वो एक तरफ झुकने लगते हैं, तो उन्हें सही करने के लिए कोई प्रयास नहीं किए जाते। उलटे उनकी जड़ों में रसायन आदि डालकर ऐसी हालत कर दी जाती है कि उन्हें काटना ही पड़ता है। वैशाली से नेहरू नगर वाले रोड पर एक तिहाई पेड़ ऐसे ही काट दिए गए हैं।
कुल मिलाकर वृक्षारोपण का अभियान केवल मानसून ही नहीं, हमेशा चलता रहना चाहिए। और इसके लिए केवल सरकार ही नहीं, हर नागरिक न केवल सहयोग करे, अपितु पेड़ों को बचाने के लिए सजग भी रहे, तभी हम प्रदेश और अपने शहर की हरियाली और पर्यावरण को सुरक्षित रख पाएंगे।
– संजय सक्सेना

Sanjay Saxena

BSc. बायोलॉजी और समाजशास्त्र से एमए, 1985 से पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय , मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल के दैनिक अखबारों में रिपोर्टर और संपादक के रूप में कार्य कर रहे हैं। आरटीआई, पर्यावरण, आर्थिक सामाजिक, स्वास्थ्य, योग, जैसे विषयों पर लेखन। राजनीतिक समाचार और राजनीतिक विश्लेषण , समीक्षा, चुनाव विश्लेषण, पॉलिटिकल कंसल्टेंसी में विशेषज्ञता। समाज सेवा में रुचि। लोकहित की महत्वपूर्ण जानकारी जुटाना और उस जानकारी को समाचार के रूप प्रस्तुत करना। वर्तमान में डिजिटल और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से जुड़े। राजनीतिक सूचनाओं में रुचि और संदर्भ रखने के सतत प्रयास।

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