किसी दौर में कांग्रेस के प्रधानमंत्री पीवी नरसिंह राव अपने राजनीतिक विरोधी अटल बिहारी वाजपेयी को देश का प्रतिनिधि बनाकर विदेश भेजते थे तो कुछ ही दशक पहले तक, उस समय के प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने कांग्रेसी नेता को देश के प्रतिनिधि के तौर पर विदेश भेजा था। पिछले कुछ सालों में स्थितियां बहुत बदल गई हैं।
राहुल गांधी ने ब्रिटेन के 'कैंब्रिज विश्वविद्यालय' में छात्रों को संबोधित किया था. उसके बाद उन्होंने 'इंडियन जर्नलिस्ट्स एसोसिएशन' के एक कार्यक्रम के अलावा ब्रितानी संसद के 'हाउस ऑफ़ कॉमन्स' के सभागार में विपक्षी लेबर पार्टी के सांसद वीरेंदर शर्मा की ओर से आयोजित एक कार्यक्रम में भी हिस्सा लिया।
कैंब्रिज विश्वविद्यालय में बोलते हुए उन्होंने भारत को 'यूनियन ऑफ़ स्टेट्स' यानी भारत को 'राज्यों के संघ' के रूप में परिभाषित किया और कहा कि ऐसी संवैधानिक व्यवस्था में ये ज़रूरी है कि केंद्र सरकार लगातार राज्यों के साथ विचार-विमर्श करती रहे।
राहुल गांधी ने आरोप लगाया कि भारत के 'लोकतांत्रिक ढाँचे पर लगातार सरकारी हमले हो रहे हैं.' उन्होंने ये भी कहा कि संसद, न्यायपालिका और प्रेस पर लगातार दबाव बनाया जा रहा है।
इसके बाद इंडियन जर्नलिस्ट्स एसोसिएशन के कार्यक्रम में उन्होंने वैसे तो रूस और यूक्रेन के बीच चल रहे युद्ध में भारत की नीति की तारीफ़ की मगर उन्होंने चीन को लेकर भारत की विदेश नीति पर निशाना साधा। उन्होंने कहा कि भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर को चीन से 'ख़तरे का अंदाज़ा नहीं' है।
हालाँकि राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि एक समय था जब राजनीतिक दलों में आपसी सहमति थी कि विदेश जाने वाले नेता अपनी अपनी राजनीतिक विचारधारा को किनारे रखकर देश के सवाल पर एक जैसा रुख़ रखेंगे. उनका मानना है कि पिछले एक दशक में ये चलन भी ख़त्म ही हो गया है.
वरिष्ठ पत्रकार जयशंकर गुप्त कहते हैं कि जो विचार राहुल गाँधी ने अपने लंदन प्रवास के दौरान विभिन्न कार्यक्रमों में प्रकट किए हैं, उससे कांग्रेस को कोई लाभ पहुँचता नज़र नहीं आ रहा है.
वो कहते हैं, "राहुल गांधी के बयानों को लेकर कांग्रेस तैयार भी है या नहीं? ऐसा दिख तो नहीं रहा. वो कुछ भी बोलें लेकिन उनकी पार्टी में किसी भी मुद्दे को लेकर वो राजनीतिक आक्रामकता नहीं है."
गुप्त मानते हैं कि भारतीय जनता पार्टी के 'प्रचार तंत्र' के सामने कांग्रेस ख़ुद को मज़बूत नहीं कर पाई है. यही कारण है कि राहुल गांधी विदेश में कुछ कहें लेकिन उनकी पार्टी भारत में किसी भी मुद्दे को लेकर मज़बूती से सत्ता पक्ष को चुनौती नहीं दे पा रही है।
उनका कहना है, "अब भारत में लोकतंत्र शोरशराबे वाला लोक तंत्र बनने की राह पर है. चाहे सोशल मीडिया हो या फिर एक दूसरे की व्यक्तिगत आलोचना हो. राजनीति का अब यही स्वरूप उभर रहा है जिसमें मर्यादा की सीमा की कोई गुंजाइश ही नहीं नज़र आती है।
बीबीसी से साभार
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