संजय सक्सेना
पिछले कुछ वर्षों से लगातार सरकारी दावों में कुपोषण का खात्मा दिखाया जा रहा है, लेकिन सही बात तो यह है कि कुपोषण खत्म नहीं हुआ। महिला एवं बाल विकास विभाग ने रुटीन प्रक्रिया के तहत प्रदेशभर में रजिस्टर्ड 6 साल तक के बच्चों का जब वजन कराया, तो पता चला कि कुपोषण तो फिर से जोर मारता दिख रहा है। बीते अक्टूबर, नवंबर और दिसंबर में ही 80 हजार 347 अति गंभीर और मध्यम गंभीर कुपोषित बच्चे सामने आए।
आदिवासी बहुल जिले धार में सबसे ज्यादा 3901 गंभीर तो 7434 कम गंभीर कुपोषित बच्चे मिले। विभाग ने इनकी लिस्ट भी बनाई। लेकिन साथ ही एक मजेदार वाकया भी सामने आया। विभाग के सबसे बड़े अधिकारी ने 1 फरवरी को सभी कलेक्टरों को आदेश दिया गया कि 31 मार्च तक इन सभी गंभीर कुपोषितों को पोषित बनाया जाए। यह आदेश राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन, संभागीय संयुक्त संचालक, जिला कार्यक्रम अधिकारी को भी दिया गया। इंटीग्रेटेड मैनेजमेंट ऑफ एक्यूट मालन्यूट्रिशन के अंतर्गत ही अक्टूबर, नवंबर और दिसंबर में शारीरिक माप कर अति गंभीर व मध्यम गंभीर बच्चों को चिन्हित कर पंजीयन किया गया था।
यानि यह भी कहा जा सकता है कि यदि बच्चों का वजन गंभीरता से नहीं मापा जाए, तो कुपोषण का सही अंदाजा ही नहीं हो पाएगा। सो, पिछले कई सालों से ऐसा लगता है कि कुपोषण को छिपाने के ही प्रयास अधिक होते रहे हैं। वैसे यह भी कहा जा रहा है कि कोविड के पिछले दो-ढाई साल सभी पर भारी पड़े हैं। बीपीएल तो क्या, सामान्य घरों में भी समुचित भोजन पर्याप्त मात्रा में नहीं उपलब्ध हो पाया। आदिवासी इलाकों में हालात और अधिक खराब रहे हैं। कागजी घोड़े कितने ही दौड़ाए जाएं, जमीनी हकीकत कुछ और ही बयां करती है।
कुपोषण के दो पहलू माने जाते हैं। एक तो पर्याप्त और पौष्टिक भोजन की अनुपलब्धता। दूसरा, कुपोषण को लेकर अज्ञानता के साथ ही इसे नजरअंदाज करने की प्रवृत्ति। यह सही है कि सरकारी योजनाओं के बावजूद प्रदेश ही हजारों नहीं, लाखों प्रसूताओं को पौष्टिक भोजन नहीं मिल पाता है। इसमें कई बार स्वयं प्रसूताओं या उनके परिजनों की लापरवाही भी सामने आती है। समय पर खाना नहीं खाना या कम खाना, गंभीर बीमारियों को भी जन्म देता है और कुपोषण को भी। इसलिए कुपोषण को केवल सरकारी योजनाओं से खत्म नहीं किया जा सकता। इसके लिए एक तो जमीन पर प्रयास करने होंगे और दूसरे इसमें सामाजिक और अराजनैतिक संगठनों को भी जागरूकता लाने के अभियान चलाने होंगे। कुपोषण की खास बात यह है कि यह केवल बहुत गरीब परिवारों ही नहीं होता। कई बार आर्थिक रूप से ठीक परिवारों में भी हो जाता है। फिर भी, कुपोषण हमारे प्रदेश और समाज के लिए अभिशाप है। इसे खत्म करने के लिए सभी को पहल करनी चाहिए।
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