अदालतों में लोक अभियोजकों 'सरकारी वकीलों' की नियुक्ति की मांग करते हुए मप्र हाईकोर्ट में याचिका दायर की गई है। सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की तरफ से बताया गया कि महाधिवक्ता तथा सरकारी वकील (पब्लिक प्रॉसिक्यूटर) दोनों ऑफिस ऑफ प्राॅफिट यानी लाभ के पद के दायरे में आते हैं। सरकार ने इस संबंध में पक्ष प्रस्तुत करने के लिए समय प्रदान करने का आग्रह किया।
राज्य सरकार का आग्रह स्वीकार करते हुए हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश रवि विजय कुमार मलिमथ तथा जस्टिस विशाल मिश्रा की युगलपीठ ने अगली सुनवाई 10 फरवरी को निर्धारित की। जबलपुर के अधारताल निवासी ज्ञानप्रकाश की तरफ से दायर याचिका में आरोप लगाते हुए कहा गया था कि राज्य सरकार द्वारा नियमों की अनदेखी करके लोक अभियोजन निदेशक (डायरेक्टर प्रॉसिक्यूशन) के पद पर नियुक्ति नहीं की जा रही है। यह अवैधानिक है। पूर्व में राज्य सरकार द्वारा एक आईएएस की नियुक्ति इंचार्ज डायरेक्टर प्रॉसिक्यूशन के पद पर किए जाने को भी याचिकाकर्ता ने कटघरे में रखा है।
याचिका में हाईकोर्ट ऑफ मध्य प्रदेश केस फ्लो मैनेजमेंट रूल्स 2006 का हवाला देते हुए कहा गया था कि रिट पिटीशनों की सुनवाई के लिए फास्ट ट्रैक और नॉर्मल ट्रैक बनाए गए हैं। इसी तरह क्रिमिनल मामलों में फांसी की सजा, दुष्कर्म और दहेज हत्या जैसे मामलों के लिए एक्सप्रेस ट्रैक, जिन मामलों में आरोपी को जमानत नहीं मिली, उसके लिए फास्टट्रैक जैसे संवेदनशील मामले, जिनमें कई लोग प्रभावित हो रहे हों, उनके लिए रैपिड ट्रैक, विशेष कानून के तहत आने वाले मुकदमों के लिए ब्रिस्क ट्रैक और शेष सभी सामान्य अपराधों के लिए सामान्य ट्रैक बनाए गए हैं। याचिकाकर्ता का कहना था कि वर्ष 2006 में बने कानून में तय किए गए ट्रैक्स का पालन नहीं हो रहा है। हाईकोर्ट ने मामले को संज्ञान में लेते हुए मामले की सुनवाई के निर्देश दिए थे।सीबीआई तथा प्रवर्तन निर्देशालय की तरफ से पेश किए गए हलफनामा में बताया था कि धारा 46 के तहत विशेष लोक अभियोजक की नियुक्तियां की गई हैं। सरकार की तरफ से बताया गया था कि धारा 24 के तहत हाईकोर्ट की सहमति से महाधिवक्ता को लोक अभियोजक नियुक्त किया गया है। संशोधन के बाद विधि अधिकारियों को लोक अभियोजकों का दायित्व दिया गया है।
युगलपीठ ने सरकार से पूछा था कि किस नियम के तहत महाधिवक्ता को पूर्णकालिक लोक अभियोजक नियुक्ति किया है। पिछली सुनवाई के दौरान सरकार की तरफ से विधि विभाग तथा अन्य राज्यों के मैनुअल का हवाला देते हुए हलफनामे में कहा था कि लोक अभियोजन निदेशक के पद पर महाधिवक्ता को नियुक्त किया जा सकता है। बुधवार को याचिका की सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की तरफ से बताया गया कि सरकार द्वारा सीआरपीसी में संशोधन किया गया है। इसके अनुसार लोक अभियोजन निदेशक का पद महाधिवक्ता के अधीनस्थ है। इसके अलावा दोनों पद लाभ के पद के दायरे में आते हैं। याचिकाकर्ता ने सुनवाई के दौरान अपना पक्ष स्वयं रखा।
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