असल में अपने समर्थकों की दम पर सिंधिया ने न केवल कमलनाथ सरकार की जमकर किरकिरी की थी बल्कि उसे गिराकर बीजेपी की सरकार बनवा दी थी। अब शायद बीजेपी सिंधिया को अकेला करने की रणनीति पर काम कर रही है। वहीं एक बार फिर से सिंधिया अपने समर्थकों के जरिये जवाब दे रहे हैं और कहीं न कहीं बीजेपी सरकार की किरकिरी करवा रहे हैं। लेकिन आने वाले समय में शिवराज सरकार के साथ सिंधिया क्या खेल खेलने वाले हैं, यह अभी तक किसी को समझ नहीं आया है। केंद्र की राजनीति में सिंधिया को काफी तवज्जो मिल है, जबकि राज्य की राजनीति में उन्हें और उनके समर्थकों को घेरने की कोशिश की जा रही है। सिंधिया के जीवाजी क्लब पर पिछले दिनों पुलिस ने छापेमारी की। 124 साल के इतिहास में पहली बार पुलिस सिंधिया के जीवाजी क्लब में छापा मारने की हिम्मत कर सकी। हद तो तब हो गई जब नगर निगम द्वारा जीवाजी क्लब में घुसकर 8 लाख से अधिक का संपत्ति कर मौके पर ही वसूल किया गया। मतलब कहीं न कहीं सिंधिया को कमजोर करने की कोशिश की जा रही है। इन दोनों घटनाओं ने यह साबित कर दिया कि भले ही सिंधिया और उनके समर्थक बीजेपी में आकर भी बेखटके नहीं रह सकते।
केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के कट्टर समर्थक और शिवराज सरकार के ऊर्जा मंत्री प्रद्युमन सिंह तोमर अपने अनोखे अंदाज के लिए हमेशा ही सुर्खियों में रहते हैं। चाहे नाले में कूदकर कीचड़ साफ करने का मामला हो या अपने हाथों से सार्वजनिक शौचालय की गंदगी को साफ करने की तस्वीर हो, ऊर्जा मंत्री हर तरीके से मीडिया में छाए रहते हैं। प्रद्युमन सिंह तोमर अब चप्पल पॉलिटिक्स के सहारे भी पूरे देश में सुर्खियां बटोर रहे हैं। हालांकि, यह कहना मुश्किल है कि चप्पल के सहारे वे किसकी पॉलिटिक्स चमका रहे हैं- अपनी या अपने आका सिंधिया की।
अपनी ही सरकार का विरोध
दरअसल, तोमर के विधानसभा क्षेत्र की कई सड़कें बदहाली का शिकार हो गई थीं। उन्होंने सड़कों के निर्माण के लिए कई बार अधिकारियों को समझाइश दी और फटकार लगाई, लेकिन किसी के कानों पर जूं तक नहीं रेंगी। जनता के सामने तोमर की किरकिरी होने लगी। लोगों में चर्चा उठने लगी कि तोमर की बात उनके ही अधिकारी नहीं सुनते हैं। बीजेपी में आने के बाद तोमर ने कभी अपनी सरकार के खिलाफ मुंह से कोई शब्द नहीं बोले लेकिन सिकाला, लेकिन इस बार उन्होंने अपना गुस्सा जाहिर करते हुए अपनी चप्पल त्याग दी। तोमर ने यह ऐलान कर दिया कि जब तक उनकी विधानसभा क्षेत्र की सड़कों की हालत ठीक नहीं हो जाती तब तक नंगे पैर ही रहेंगे। उनके ऐलान से नगर निगम के अधिकारियों को तो कोई फर्क नहीं पड़ा, लेकिन अपनी ही सरकार के मोर्चा खोलने की हलचल भोपाल तक मच गई। अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं। ऐसे में सरकार के मंत्री अनदेखी के चलते नंगे पैर घूमने लगे तो जनता के बीच सरकार के खिलाफ गलत माहौल बनने लगता है। बिना कोई बयानबाजी किए हुए तोमर शिवराज सरकार को यह बताने में सफल रहे कि बीजेपी में आने के बाद भी विकास के लिए उन्हें संघर्ष करना पड़ रहा है और नंगे पैर घूमना पड़ रहा है। इसका सीधा-सीधा संदेश केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया से भी जोड़कर देखा जा रहा है।
दरअसल, तोमर के विधानसभा क्षेत्र की कई सड़कें बदहाली का शिकार हो गई थीं। उन्होंने सड़कों के निर्माण के लिए कई बार अधिकारियों को समझाइश दी और फटकार लगाई, लेकिन किसी के कानों पर जूं तक नहीं रेंगी। जनता के सामने तोमर की किरकिरी होने लगी। लोगों में चर्चा उठने लगी कि तोमर की बात उनके ही अधिकारी नहीं सुनते हैं। बीजेपी में आने के बाद तोमर ने कभी अपनी सरकार के खिलाफ मुंह से कोई शब्द नहीं बोले लेकिन सिकाला, लेकिन इस बार उन्होंने अपना गुस्सा जाहिर करते हुए अपनी चप्पल त्याग दी। तोमर ने यह ऐलान कर दिया कि जब तक उनकी विधानसभा क्षेत्र की सड़कों की हालत ठीक नहीं हो जाती तब तक नंगे पैर ही रहेंगे। उनके ऐलान से नगर निगम के अधिकारियों को तो कोई फर्क नहीं पड़ा, लेकिन अपनी ही सरकार के मोर्चा खोलने की हलचल भोपाल तक मच गई। अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं। ऐसे में सरकार के मंत्री अनदेखी के चलते नंगे पैर घूमने लगे तो जनता के बीच सरकार के खिलाफ गलत माहौल बनने लगता है। बिना कोई बयानबाजी किए हुए तोमर शिवराज सरकार को यह बताने में सफल रहे कि बीजेपी में आने के बाद भी विकास के लिए उन्हें संघर्ष करना पड़ रहा है और नंगे पैर घूमना पड़ रहा है। इसका सीधा-सीधा संदेश केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया से भी जोड़कर देखा जा रहा है।
तोमर का चप्पल कांड
सिंधिया ने जब कांग्रेस छोड़ी थी तो उन्होंने कहा था कि कांग्रेस में उन्हें ग्वालियर और चंबल का विकास नहीं करने दिया जा रहा था। चप्पल नहीं पहनने के तोमर के निश्चय पर सिंधिया ने कोई बयान तो नहीं दिया, लेकिन अपनी मूक सहमति देकर यह देखते रहे कि आखिर सरकार उनकी समस्या को लेकर कब सक्रिय होती है। जब सियासी गलियारों में तोमर की चप्पल पॉलिटिक्स की चर्चा जोर पकड़ने लगी तो आनन-फानन में ग्वालियर में सड़कों का निर्माण करवा दिया गया। इसके बाद बीते दिनों केंद्रीय नागरिक उड्डयन मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ग्वालियर पहुंचे और प्रद्युमन सिंह तोमर को अपने हाथों से चप्पल पहनाकर एक तरह से यह संदेश भी दिया है कि उनके समर्थक आज भी उनके साथ हैं और वे भी अपने समर्थकों के लिए आज भी उसी मजबूती के साथ खड़े हुए हैं जितनी मजबूती से वे कांग्रेस में खड़े हुए थे।
सिंधिया ने जब कांग्रेस छोड़ी थी तो उन्होंने कहा था कि कांग्रेस में उन्हें ग्वालियर और चंबल का विकास नहीं करने दिया जा रहा था। चप्पल नहीं पहनने के तोमर के निश्चय पर सिंधिया ने कोई बयान तो नहीं दिया, लेकिन अपनी मूक सहमति देकर यह देखते रहे कि आखिर सरकार उनकी समस्या को लेकर कब सक्रिय होती है। जब सियासी गलियारों में तोमर की चप्पल पॉलिटिक्स की चर्चा जोर पकड़ने लगी तो आनन-फानन में ग्वालियर में सड़कों का निर्माण करवा दिया गया। इसके बाद बीते दिनों केंद्रीय नागरिक उड्डयन मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ग्वालियर पहुंचे और प्रद्युमन सिंह तोमर को अपने हाथों से चप्पल पहनाकर एक तरह से यह संदेश भी दिया है कि उनके समर्थक आज भी उनके साथ हैं और वे भी अपने समर्थकों के लिए आज भी उसी मजबूती के साथ खड़े हुए हैं जितनी मजबूती से वे कांग्रेस में खड़े हुए थे।
बीजेपी को देना चाह रहे हैं संदेश
सिंधिया के इस कदम के सियासी मायने निकाले जा रहे हैं। माना यह जा रहा है कि सिंधिया और उनके समर्थक विधायक और मंत्री शिवराज सरकार और बीजेपी को यह संदेश देना चाह रहे हैं कि वे आज भी एक हैं। अगर बीजेपी में उनकी अनदेखी हुई तो एक बार फिर से सिंधिया के पीछे उनके समर्थकों की फौज खड़ी होगी। सिंधिया के हर निर्णय में उनके समर्थक उनका साथ देंगे। इस पूरे सियासी स्टंट में सिंधिया पर्दे के पीछे ही रहे और उनकी तरफ से प्रद्युमन सिंह तोमर के लिए सार्वजनिक तौर पर ऐसा कोई संदेश नहीं दिया गया जिससे सरकार की किरकिरी होती। सिंधिया की मूक सहमति की वजह से प्रद्युमन सिंह तोमर खुलेआम सरकार के खिलाफ अपना गुस्सा जाहिर करने के लिए प्रदेश की सड़कों पर नंगे पर घूमते रहे।
सिंधिया के इस कदम के सियासी मायने निकाले जा रहे हैं। माना यह जा रहा है कि सिंधिया और उनके समर्थक विधायक और मंत्री शिवराज सरकार और बीजेपी को यह संदेश देना चाह रहे हैं कि वे आज भी एक हैं। अगर बीजेपी में उनकी अनदेखी हुई तो एक बार फिर से सिंधिया के पीछे उनके समर्थकों की फौज खड़ी होगी। सिंधिया के हर निर्णय में उनके समर्थक उनका साथ देंगे। इस पूरे सियासी स्टंट में सिंधिया पर्दे के पीछे ही रहे और उनकी तरफ से प्रद्युमन सिंह तोमर के लिए सार्वजनिक तौर पर ऐसा कोई संदेश नहीं दिया गया जिससे सरकार की किरकिरी होती। सिंधिया की मूक सहमति की वजह से प्रद्युमन सिंह तोमर खुलेआम सरकार के खिलाफ अपना गुस्सा जाहिर करने के लिए प्रदेश की सड़कों पर नंगे पर घूमते रहे।
Post a Comment