भाजपा के 40 प्रतिशत विधायकों का प्रदर्शन खराब, जिम्मेदार कौन? विधायकों का दर्द, न संगठन साथ और ना प्रशासन में कोई सुनता है..


भोपाल। प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने एक आंतरिक सर्वेक्षण कराया है, जिसमें लगभग 40 फीसदी विधायकों का प्रदर्शन खराब और असंतोषजनक पाया गया है। लेकिन मजे की बात यह है कि इसके लिए केवल और केवल विधायकों को ही जिम्मेदार माना जा रहा है और उनके खराब प्रदर्शन के लिए उनके टिकट काटने की तैयारी भी हो गई है। दूसरी ओर विधायकों यह दर्द कोई सुनने के लिए तैयार नहीं कि न तो संगठन ने उनका साथ दिया और न ही प्रशासन ने। 
पहले कथित सर्वे रिपोर्ट की बात करें। इस रिपोर्ट के मुताबिक मध्य प्रदेश में बीजेपी के 40 विधायकों की रिपोर्ट नकारात्मक है। बीजेपी के पदाधिकारियों ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि बैठकों को विधायकों को प्रदर्शन में सुधार करने या विधानसभा चुनाव के लिए पार्टी के टिकट से इनकार करने की अंतिम चेतावनी के रूप में देखा जा रहा है। हाल में मुख्यमंत्री ने विधानसभा सत्र समापन के तत्काल बाद विधायक दल की फिर से बैठक बुलाई और सर्वे की बात कही। सत्र शुरू होने के मौके पर भी विधायक दल की बैठक हुई थी। खैर, विधायक दल की कोई भी बैठक हुई हो, विधायकों को बोलने का मौका कभी नहीं मिलता। मुख्यमंत्री के साथ ही प्रदेश अध्यक्ष या अन्य बड़े नेता ही बोलते हैं और फिर बैठक खत्म। 
बीजेपी पदाधिकारियों का कहना है, चुनाव से बहुत पहले खामियों को दूर करने की कवायद है. लोगों के बीच अपनी धारणा सुधारने के लिए विधायकों को छह महीने का समय दिया जा रहा है. हम स्पष्ट हैं कि गुजरात की तर्ज पर हम खराब प्रदर्शन वाले विधायकों को टिकट नहीं देंगे. पार्टी नए और ऊर्जावान उम्मीदवारों को तरजीह देगी। उन्होंने बताया, आंतरिक सर्वेक्षण के आधार पर, प्रत्येक विधायक के रिपोर्ट कार्ड में उनके निर्वाचन क्षेत्र में किए गए विकास कार्यों, स्थानीय मुद्दों, लोगों के बीच उनके बारे में धारणा और प्रतिद्वंद्वियों द्वारा पेश की गई चुनौती की सूची होती है। एक अन्य बीजेपी नेता ने कहा, रिपोर्ट कार्ड में स्थानीय बीजेपी नेताओं के नाम भी हैं, जो विधायक से नाराज हैं। 
विधायकों की सुनने वाला कोई नहीं? 
अब थोड़ा विधायकों की बात भी कर लें। हालांकि कई विधायक ऐसे हो सकते हैं, जो चुनाव जीतने के बाद जनता के बीच नहीं जाते, लेकिन इस दौर में जो जनता के बीच नहीं गया, वो चुनाव से भी गया। मध्यप्रदेश की बात करें तो सत्ता पक्ष के विधायक सबसे ज्यादा परेशान रहे हैं प्रशासन से। कलेक्टर से लेकर अधिकांश अधिकारी उनकी नहीं सुनते। उनके कहने पर न तो तबादले होते और न ही पोस्टिंग। कलेक्टर से कुछ कहो तो वो सीधे कहते हैं, सीएम साहब से बात कर लेंगे। या हमें ऐसा निर्देश सीएम साहब से मिला है। विकास कार्यों तक के लिए विधायक भटकते रहते हैं। और संगठन की बात करें तो पिछले दस सालों से संगठन की हालत पतली हो रही है। आधे विधायकों को चुनाव भाजपा संगठन के बजाय अपने दम पर ही लडऩा पड़ रहा है। इस सच्चाई को नेतृत्व जानता है, लेकिन कहता कोई नहीं। मुख्यमंत्री को लेकर चर्चाएं चलती रहती हैं, लेकिन केंद्रीय नेतृत्व भी निर्णय लेने की स्थिति में नहीं है।
विधायकों के साथ इन मुद्दों पर हुई चर्चा
सीएम शिवराज सिंह चौहान के साथ बैठक में मौजूद एक बीजेपी विधायक ने नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया कि सबसे पहले, हमें अपनी कमजोरियों और वोटर्स की राय के बारे में बताया गया। फिर मेरे निर्वाचन क्षेत्र के मुद्दों और पिछले चार वर्षों में प्रदर्शन के बारे में बताया गया. इसके अलावा हमें स्थानीय बीजेपी नेताओं और पार्टी में टिकट के लिए प्रयास कर रहे प्रतिद्वंद्वियों द्वारा हमारे खिलाफ दर्ज की गई शिकायतों के बारे में भी सूचित किया गया। लेकिन उनकी समस्या नहीं सुनी गई। न ही उन्हें बोलने दिया गया। 

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