अब बाल अपराध में भी अव्वल!


इसे कोई उपलब्धि नहीं कहा जाएगा। यह गर्व के बजाय बहुत ही शर्म और चिंता की बात है कि बाल अपराध में मध्यप्रदेश लगातार तीसरी बार देश में पहले नंबर पर आया है। बाल यौन शोषण और नाबालिगों से दुष्कर्म के मामले में तो लगातार हमारा प्रदेश पहली-दूसरी पायदान पर ही आ रहा है। 
 यह शर्मनाक आंकड़ा हाल ही में जारी हुई राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो यानि एनसीआरबी की रिपोर्ट में सामने आया है। 2021 में मप्र के बाल अपचारियों ने देश में सबसे ज्यादा 5684 अपराध किए हैं। ये बच्चे हत्या, हत्या के प्रयास, दुष्कर्म, छेड़छाड़, किडनैपिंग और एनडीपीएस से जुड़े अपराध कर रहे हैं। जानकारों का कहना है कि गरीबी, अशिक्षा और ठीक ढंग से बच्चों का पालन-पोषण न होना ही, इसकी बड़ी वजह है।
एनसीआरबी के ताजा आंकड़ों के अनुसार पूरे देश में बाल अपचारियों द्वारा कुल 31,170 अपराध किए गए। इनमें से 5684 मामले मप्र में दर्ज हुए। 2020 मप्र में नाबालिगों के खिलाफ 4819 मामले दर्ज हुए थे। यानी 2021 में नाबालिगों द्वारा किए गए अपराध में 17 प्रतिशत का इजाफा हुआ है। मप्र के बाद 2021 में महाराष्ट्र 4554, राजस्थान 2757 और दिल्ली 2643 क्रमश: दूसरे, तीसरे और चौथे स्थान पर हैं। 2021 में प्रदेश में 6397 बाल अपचारियों को पकड़ा गया। पुलिस द्वारा गिरफ्तार किए गए 6397 नाबालिगों में से करीब 77 प्रतिशत ऐसे है, जो या तो अनपढ़ है या मिडिल स्कूल से आगे कभी स्कूल नहीं गए। 6397 में से 859 बेघर और 706 अनपढ़ हैं। हालांकि एक और आंकड़ा आया है, जिसमें बताया गया है कि मप्र बुजुर्गों के लिए महाराष्ट्र के बाद दूसरा सबसे असुरक्षित प्रदेश है। यहां सीनियर सिटीजन्स के खिलाफ अपराध में करीब 14. 58 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। वर्ष 2020 में मध्यप्रदेश क्राइम अगेंस्ट सीनियर सिटीजन्स 4602 दर्ज किए गए थे, जबकि 2021 में यह आंकड़ा बढक़र 5273 हो गया।
बात करते हंै बाल अपराधों की। हम यह कहकर नहीं बच सकते कि मध्यप्रदेश में ऐसे अपराधों के आंकड़े इसलिए अधिक आ रहे हैं क्योंकि यहां अपराध  तुरंत दर्ज हो जाते हैं। सत्ता और प्रशासन, विशेष तौर पर पुलिस विभाग के अधिकारियों के तर्क अपने-अपने हो सकते हैं, लेकिन एफआईआर यानि रिपोर्ट दर्ज होने की जमीनी हकीकत भी प्रदेश में बहुत अच्छी नहीं है, जो इस बहाने के आधार पर हम बच सकें। किसी आम आदमी से पूछें कि रिपोर्ट कैसे लिखी जाती है, तब पता चल जाएगा। बहरहाल, यह भी एक तथ्य है कि सरकार बच्चों को अपराध के रास्ते पर जाने से रोकने और उनके पुनर्वास के लिए पुलिस, महिला एवं बाल विकास विभाग और एनजीओ पर हर साल करोड़ों रुपए खर्च करती है। इस पैसे में भ्रष्टाचार कितना होता है, इसकी जमीनी सच्चाई भी पता की जाए तो आंखें खुल जाएंगी। 
सरकारी फंड का दुरुपयोग और भ्रष्टाचार अब प्रदेश में बहुत सामान्य बात हो गई है। इसके लिए कोई इफ एंड बट मुझे नहीं लगता कि बचा है। फिर भी जिस तरह से ये अपराध बढ़ रहे हैं, इससे साफ है कि हमारे प्रदेश की सामाजिक स्थिति क्या है? इधर महिलाओं के प्रति हो रहे अपराध बढ़ रहे हैं, उधर बच्चों में अपराध करने की प्रवृत्ति बढ़ रही है, यानि कहीं न कहीं समाज में अराजकता तो बढ़ रही है। क्या हम समाज में बढ़ रही इस अराजकता को भी बहानेबाजी से कवर करने के प्रयास करेंगे? सरकार इतनी योजनाएं चला रही है कि उनकी गिनती आसान नहीं। अरबों रुपए खर्च हो रहे हैं, तो क्या सरकार में बैठे और प्रशासन में बैठे लोग इस समाज का हिस्सा नहीं हैं? कहीं तो हमें अपनी जिम्मेदारी का भान होना चाहिए। समाज का नेतृत्व करने वाले लोग राजनीति के लिए तो समाज का समर्थन देने के लिए सौदेबाजी कर लेते हैं, लेकिन इसके बदले समाज को दे क्या रहे हैं? केवल अराजकता? 
ये बच्चे अपराध की ओर प्रेरित क्यों हो रहे हैं, इसके पीछे के कारणों को जानने और उनके निदान की आवश्यकता सबसे पहले है। अनपढ़ अपराधियों का प्रतिशत अधिक है, इधर हमें साक्षरता और शिक्षा में प्रतिशत सौ तक बता देते हैं, फिर ये अनपढ़ अपराधी कहां से आ गए? दावों और बहानों से काम नहीं चलने वाला। कहीं न कहीं सामाजिक के साथ ही आर्थिक परिस्थितियां भी इनके पीछे बड़ा कारण हैं। इसलिए हमें योजनाओं पर पैसा बहाने के बजाय यह भी देखना होगा कि समाज का हर तबका आत्मनिर्भर कैसे हो। केवल दावे करने से काम नहीं चलेगा। एक समय था कि कोई बच्चा सडक़ पर बीड़ी या सिगरेट पीता दिख जाता था, तो अड़ोसी-पड़ौसी कोई भी उसे थप्पड़ मार देता था। आज कोई बोल नहीं सकता। तलवारें चल जाती हैं। बच्चे, बच्चियां खुले आम अराजक हरकतें करते हैं, कोई रोक नहीं सकता। यह भी कहीं न कहीं हमें इस अपराध की दुनिया तक ले जाता है। इसलिए बेहतर यही होगा कि सरकार में बैठे लोग खुद को समाज का हिस्सा समझें और समाज के लोग अपनी जिम्मेदारी। 
-संजय सक्सेना

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