बेवजह कवायद नहीं- बल्कि एक सुनियोजित कदम है मंत्री विजय शाह की माफ़ी

रंजन श्रीवास्तव
मध्य प्रदेश के जनजातीय कार्य विभाग मंत्री विजय शाह का एक और माफीनामा और वह भी तब जबकि सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर स्पेशल इन्वेस्टीगेशन टीम गठित होकर उनके कथित अपराध की जांच कर रही है, बेवजह कवायद नहीं है बल्कि एक सुनियोजित कदम है यह देखते हुए कि उनके अभी तक के माफ़ी मांगने के तरीके से ना ही उच्च न्यायालय और ना ही उच्चतम न्यायालय संतुष्ट था। इसके उलट दोनों न्यायालयों द्वारा उनको डांट पिलाई गई उनके गैर जिम्मेदाराना व्यवहार और रवैये को लेकर।
उच्च न्यायालय ने विजय शाह के बयान की भाषा को गटर की भाषा कह दिया और उनके माफ़ी मांगने के तरीके पर भी आपत्ति दर्ज कराई वहीँ उच्चतम न्यायालय ने अपनी टिप्पणी में यह तक कह डाला कि कई बार लोग मगरमच्छ के आंसू वाली भी माफी मांगते हैं।
कल का जो 39 सेकण्ड्स का वीडियो मंत्री ने अपने एक्स (X) अकाउंट पर पोस्ट किया कर्नल सोफिया, सेना और पूरे देश से मांगने के लिए और साथ ही अपने लेटरहेड पर भी अपनी उन्हीं “भावनाओं” को व्यक्त किया, उसकी भाषा बेहद संतुलित और सधी हुयी थी जैसे पिछले 8 दिनों की चुप्पी के बाद उनके सलाहकार या सलाहकारों के कहने पर वह लिखा गया हो और वीडियो में रिकॉर्ड किया गया हो।
“भाषाई भूल” इस बार एक नया वाक्यांश दिखा उनके माफीनामे में। उसमें किसी भी तरह का किन्तु परन्तु नहीं था जैसे पहले माफीनामे में प्रयोग किया गया था कि “यदि किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचा हो तो मैं माफ़ी मांगता हूँ” इत्यादि।
वीडियो में क्षणिक मात्र भी मुस्कराहट नहीं दिखी। याद कीजिये पहले माफी वाले वीडियो को जिसमें मंत्री यह मानने को तैयार नहीं थे कि उनसे गलती हुयी है। उन्होंने कहा था कि “यदि” किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचा हो”। उनके इसी तरीके पर उच्च न्यायालय ने नाराजगी दिखाई थी।
इस बार कपड़ों का चयन भी गंभीरता से किया गया। कल के वीडियो में वो कुर्ता के ऊपर गहरे नीले रंग का जैकेट पहने हुए दिखे जिसका चयन संभवतः उनके चेहरे पर गंभीरता के साथ मेल खाने के लिए किया गया था।
माफीनामे को एक औपचारिक सन्देश का जामा पहनाने की कोशिश थी जबकि पिछले वीडियो में वो पीले रंग का कुर्ता पहने हुए थे और चेहरे पर वो गंभीरता नहीं थी जो कल के वीडियो में दिखी।
लोगों के मस्तिष्क में यह सवाल लाजिमी है कि जब स्पेशल इन्वेस्टीगेशन टीम अपनी जांच कर रही है तो ऐसा माफीनामा चाहे वह लेटरहेड पर हो या वीडियो में उसका फायदा क्या है? क्या इससे जांच टीम उनके अपराध की गंभीरता को कम करके आंकेगी अगर वाकई यह पाया जाता है कि उन्होंने अपराध कारित किया है या इससे न्यायालय अपना रूख थोड़ा नरम कर लेगा?
इसमें कोई संदेह नहीं है कि मंत्रिमंडल से इस्तीफ़ा नहीं देने का निर्णय करके मंत्री वह हर संभव कोशिश करेंगें कि यथास्थिति बनी रहे यानी वो आगे भी मंत्री बने रहें। यह तभी संभव है जब उनके विरुद्ध अपराध ना पाया जाये या जांच टीम भी उनके बयान को उस श्रेणी का अपराध ना माने जिस श्रेणी का अपराध उच्च न्यायालय की नजरों में प्रथम दृष्टया है जिसके लिए न्यायालय ने पुलिस को अपने 14 मई के आदेश में प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज करने को कहा था।
विजय शाह जानते हैं कि परिस्थिति उनके विरुद्ध है। वे बयान को बदल सकते नहीं हैं और वैसे भी पूरे मामले पर अब सुप्रीम कोर्ट की नज़र है। विजय शाह यह भी जानते हैं कि मंत्रिमंडल से उनको भले ही हटाया ना गया हो और भले ही पुलिस ने पहली एफआईआर ढीली ढाली दर्ज की हो सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद स्पेशल इन्वेस्टीगेशन टीम का गठन और उसमें तीन आईपीएस ऑफिसर्स का होना, उनके लिए अच्छा संकेत नहीं हो सकता।
विजय शाह सुप्रीम कोर्ट गए थे हाई कोर्ट के आदेश के खिलाफ रियायत पाने के लिए पर हुआ यह कि सुप्रीम कोर्ट ने भी उनके बयान को उचित नहीं माना और स्पेशल इन्वेस्टीगेशन टीम द्वारा जांच कराने का आदेश दे दिया । हाँ, उनको इतनी राहत जरूर मिली है कि सुप्रीम कोर्ट ने उनके गिरफ़्तारी पर रोक लगा दी है।
आगे परिस्थितियों में जो भी बदलाव होगा वह इस बात पर निर्भर करता है कि स्पेशल इन्वेस्टीगेशन टीम की रिपोर्ट क्या आती है। अगर उनके बयान को अपराध या गंभीर अपराध की श्रेणी में पाया जाता है और उनकी गिरफ़्तारी होती तो उनका मंत्रिमंडल में रहना संभव नहीं होगा। ऐसे में विजय शाह की कोशिश यही होगी कि उनकी “भाषाई गलती” वाली बात से स्पेशल इन्वेस्टीगेशन टीम संतुष्ट हो जाए नहीं तो कम से कम उच्चतम न्यायालय उनके इस माफीनामे की “गंभीरता” को सही माने अगर इस वीडियो को न्यायालय के सामने प्रस्तुत करने का विचार उनके विधिक सलाहकारों का होता है तो।