Ajeevika Mission Ghotala : पूर्व IFS ललित मोहन बेलवाल समेत तीन की अग्रिम जमानत खारिज, 1 अप्रैल को दर्ज हुई थी FIR

भोपाल। EOW द्वारा राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन (एसजीआरएएम)  घोटाले में आरोपी बनाए गए पूर्व  IFS अधिकारी एवं मिशन के पूर्व CEO ललित मोहन बेलवाल, तत्कालीन अतिरिक्त  CEO विकास अवस्थी तथा पूर्व राज्य परियोजना प्रबंधक सुषमा रानी शुक्ला की अग्रिम जमानत याचिकाएं कोर्ट ने खारिज कर दी हैं।
अदालत ने कहा कि मामला “गंभीर प्रकृति” का है, शुरुआती जांच जारी है और इस चरण में जमानत मिलने से अनुसंधान प्रभावित होने की आशंका है। वहीं बचाव पक्ष ने दलील दी कि FIR दस वर्ष बाद दर्ज हुई, जिससे उनकी प्रतिष्ठा धूमिल हुई है। वकीलों का तर्क था कि “राजनीतिक प्रतिशोध” के तहत आरोपियों को झूठा फंसाया गया है। कोई आर्थिक लाभ साबित नहीं हुआ।
विशेष लोक अभियोजक कासिम अली ने याचिकाओं का विरोध करते हुए कहा – आरोपियों ने पद का दुरुपयोग कर चयन सूची में मनमानी की, दस्तावेजों से छेड़छाड़ कर संविदा नियुक्तियां बांटी। प्रारंभिक जांच में शिकायत पुष्ट होने के बाद ही 1 अप्रैल 2025 को IPC की धारा 420, 467, 468, 471 व भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत मुकदमा दर्ज किया गया। FIR होते ही सभी आरोपी फरार हो गए। गिरफ्तारी से बचने के लिए अग्रिम जमानत मांगी गई।
फरियादी राकेश कुमार मिश्रा ने वर्ष 2014-15 की नियुक्तियों में अनियमितताओं की लिखित शिकायत पहले ईओडब्ल्यू में की थी। कार्रवाई न होने पर उन्होंने जिला अदालत में निजी इस्तगासा दायर किया। अदालत के निर्देश पर ईओडब्ल्यू ने केस दर्ज कर विस्तृत पड़ताल शुरू की। वहीं आगे के लिए अब विशेष पुलिस स्थापना (EOW) ने आरोपियों की गिरफ्तारी के लिए टीमें गठित कर दी हैं। वहीं वित्तीय रिकॉर्ड, नियुक्ति फाइलें और ई-मेल संवाद जब्त कर फोरेंसिक ऑडिट कराया जा रहा है।

इस तरह की गड़बड़ी के आरोप
मानव संसाधन मार्गदर्शिका को अनुमोदित दर्शाने के बाद, उसी आधार पर राज्य, जिला और ब्लाक स्तर के पदों पर संविदा नियुक्तियां की गईं।
इन नियुक्तियों के लिए जो मापदंड निर्धारित किए गए- जैसे योग्यता, अनुभव, चयन पद्धति आदि वे मिशन कार्यालय स्तर पर ही बनाए गए, जबकि ऐसे मापदंडों को शासन से अनुमोदित कराना आवश्यक होता है।
कई पदों पर ऐसे अभ्यर्थियों को नियुक्तियां दी गईं जिनकी योग्यता या अनुभव न तो निर्धारित मानकों के अनुरूप थे, न ही वे पद के लिए उपयुक्त थे।
सुषमा रानी शुक्ला को नियुक्त करने के मात्र चार माह में अवैध तरीके से 70 हजार प्रतिमाह का मानदेय स्वीकृत किया गया।
अन्य कर्मचारियों को जिनके पास अपेक्षित अनुभव था, उन्हें यह लाभ नहीं दिया गया। इससे साफ है कि चयन और मानदेय निर्धारण की प्रक्रिया पक्षपातपूर्ण और चहेतों को लाभ देंने के उद्देश्य से की गई।

एचआर मैन्युअल के रूप में प्रस्तुत
मानव संसाधन नीति को छलपूर्वक एचआर मैन्युअल के रूप में प्रस्तुत किया जांच में यह भी पता चला है कि ललित मोहन बेलवाल द्वारा मप्र राज्य आजीविका मिशन की मानव संसाधन नीति (एचआर पॉलिसी) को बेईमानीपूर्वक एचआर मैन्युअल के रूप में प्रस्तुत किया गया, जबकि मैन्युअल को राज्य आजीविका फोरम द्वारा अनुमोदन प्राप्त नहीं था।

विधानसभा में उठा था मामला
विधानसभा के बजट सत्र में राज्यपाल के अभिभाषण पर कृतज्ञता ज्ञापन चर्चा के दौरान उप नेता प्रतिपक्ष हेमंत कटारे ने भी घोटाले को सदन में उठाया था। इसे एक्स पर पोस्ट कर उन्होंने कहा था कि आजीविका मिशन भर्ती घोटाला एक महाघोटाला है। इक़बाल सिंह बैस इस महाघोटाले के सरगना थे, उन्होंने नियमों को ताक पर रखकर यह नियुक्तियां करवाईं थी। यहां तक कि विभागीय मंत्री की नोटशीट को ताक पर रखकर उन्होंने नियुक्तियां करवाईं थी। इक़बाल सिंह बैस पर एफआईआर दर्ज होनी चाहिए।लेकिन बैंस का नाम एफ आई आर में नहीं है।

Sanjay Saxena

BSc. बायोलॉजी और समाजशास्त्र से एमए, 1985 से पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय , मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल के दैनिक अखबारों में रिपोर्टर और संपादक के रूप में कार्य कर रहे हैं। आरटीआई, पर्यावरण, आर्थिक सामाजिक, स्वास्थ्य, योग, जैसे विषयों पर लेखन। राजनीतिक समाचार और राजनीतिक विश्लेषण , समीक्षा, चुनाव विश्लेषण, पॉलिटिकल कंसल्टेंसी में विशेषज्ञता। समाज सेवा में रुचि। लोकहित की महत्वपूर्ण जानकारी जुटाना और उस जानकारी को समाचार के रूप प्रस्तुत करना। वर्तमान में डिजिटल और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से जुड़े। राजनीतिक सूचनाओं में रुचि और संदर्भ रखने के सतत प्रयास।

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