संपादकीय
राज्यपालों की भूमिका और जस्टिस की टिप्पणी…


क्या वाकई राज्यपाल अब एक पार्टी के नेता बनकर काम रहे हैं? जिस तरह से राज्य सरकारों और राज्यपालों के बीच शीतयुद्ध और कई जगह तो सीधे विवाद की स्थितियां बन रही हैं, उन्हें देखते हुए तो यही लग रहा है। और शायद तभी सर्वोच्च न्यायालय ने भी इन मुद्दों को बार-बार रेखांकित किया है। हाल में सुप्रीम कोर्ट की जज जस्टिस बीवी नागरत्ना ने राज्यपालों की भूमिका पर टिप्पणी की है और उनके द्वारा विधेयकों को रोके जाने की आलोचना की है।
जस्टिस बीवी नागरत्ना ने कहा है कि राज्यपालों का काम विधेयकों को रोकना नहीं बल्कि उन पर फैसला लेना है। यह शर्म की बात है कि अदालत को राज्यपालों को उनकी ड्यूटी याद दिलानी पड़े। जस्टिस नागरत्ना हैदराबाद की नलसार यूनिवर्सिटी में एक कायक्रम को संबोधित कर रही थीं। इसी कार्यक्रम में उन्होंने नोटबंदी का भी विरोध किया और कहा कि इससे काला धन जमा करने वालों को फायदा हुआ जबकि आम लोगों को परेशानी झेलनी पड़ी।
जस्टिस नागरत्ना ने कहा कि आजकल देश में राज्यपालों का एक नया रुझान देखने को मिल रहा है। अदालतों को राज्यपालों को यह बताना अच्छा नहीं लगता है कि उन्हें बताया जाए कि आप संविधान के मुताबिक अपना काम करें और विधेयकों को मंजूरी देने में देरी नहीं करें। जस्टिस नागरत्ना उस पांच-जजों वाली पीठ का हिस्सा थीं जिसने केंद्र सरकार के नोटबंदी के फैसले को सही ठहराया था, लेकिन वह इकलौती जज थीं जिन्होंने फैसले में इस बात को लेकर असहमति जताई थी कि यह फैसला जल्दबाजी में लिया गया और लागू किया गया है।
महाराष्ट्र और पंजाब के राज्यपालों के फैसलों का जिक्र करते हुए जस्टिस नागरत्ना ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट को चीजें ठीक करने के लिए बीच में आना पड़ा। उन्होंने कहा, महाराष्ट्र (उद्धव ठाकरे सरकार के मई 2023 में गिरने के बाद विधानसभा में फ्लोर टेस्ट) के मामले में, यह सवाल था कि क्या राज्यपाल के पास फ्लोर टेस्ट कराने के लिए कोई ठोस सबूत थे। उनके पास कोई भी सबूत नहीं था जो यह बताए कि मौजूदा सरकार विधायकों का विश्वास खो चुकी है।’
जज ने कहा कि 2023 एक महत्वपूर्ण साल था क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने लोकतांत्रिक संस्थाओं की ईमानदारी बनाए रखने और उनकी परंपरा को सुरक्षित रखने के लिए कई फैसले सुनाए थे। उन्होंने कहा कि पंजाब के मामले में, राज्यपाल ने चार विधेयकों को रोक लिया था। अदालत ने राज्यपाल को याद दिलाया कि वह अनिश्चितकाल तक मंजूरी नहीं रोक सकते। उन्होंने कहा, वह बिलों पर बैठकर मुकदमे का विषय बन गए हैं। उन्होंने कहा कि राज्यपालों को अदालतों में खींचना संविधान के तहत एक स्वस्थ्य प्रवृत्ति नहीं है। राज्यपाल का पद एक गंभीर संवैधानिक पद है। उन्हें अपने कर्तव्यों का निर्वाह जिम्मेदारी से करना चाहिए।
नोटबंदी के बारे में, जस्टिस नागरत्ना ने कहा कि भले ही इसका मकसद काला धन खत्म करना था, लेकिन केंद्र सरकार ने जिस तरह से अचानक से इसे लागू किया, इससे तो सिर्फ कानून तोडऩे वालों को ही फायदा हुआ, जिन्होंने अपना काला धन सफेद बना लिया। उन्होंने आगे कहा कि इसके अलावा इससे आम लोगों को भी काफी परेशानी हुई। लोगों को अपने पुराने नोटों को नए रूप में बदलने में काफी मुश्किल हुई। उन्होंने बताया कि इस पर किसी भी स्तर पर कोई चर्चा नहीं हुई। कोई निर्णय लेने की प्रक्रिया भी नहीं अपनाई गई। एक शाम संबंधित विभागों को इस नीति के बारे में बताया गया और अगली शाम से यह नीति लागू हो गई।
जस्टिस नागरत्ना की टिप्पणी लोकतंत्र में वास्तव में बहुत महत्वपूर्ण है। क्योंकि वर्तमान में राजनीतिक दलों द्वारा बनाए गए राज्यपाल संवैधानिक दायित्वों को भी  अपनी पार्टी के नजरिये से ही देखते हैं। वे संविधान के बजाय नियोक्ता के प्रति अपनी वफादारी दिखाने के प्रयास अधिक करते हैं। जिन राज्यों में विरोधी दलों की सरकारें हैं, वहां के राज्यपाल और सरकारों के बीच शीतयुद्ध लगातार चलता रहता है। जबकि राज्यपाल बनने के बाद उनकी सक्रिय राजनीति से विदाई कर दी जाती है। और राज्यपाल केवल राष्ट्रपति के प्रतिनिधि बन कर दायित्वों का निर्वहन करने तक सीमित रह जाते हैं। यही कारण है कि सर्वोच्च न्यायालय की  जज को भी इस पर गंभीर टिप्पणी करनी पड़ी है। परंतु माहौल ऐसा है, जिसे देखकर लगता नहीं कि कुछ बदलाव आ सकता है।
– संजय सक्सेना

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Sanjay Saxena

BSc. बायोलॉजी और समाजशास्त्र से एमए, 1985 से पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय , मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल के दैनिक अखबारों में रिपोर्टर और संपादक के रूप में कार्य कर रहे हैं। आरटीआई, पर्यावरण, आर्थिक सामाजिक, स्वास्थ्य, योग, जैसे विषयों पर लेखन। राजनीतिक समाचार और राजनीतिक विश्लेषण , समीक्षा, चुनाव विश्लेषण, पॉलिटिकल कंसल्टेंसी में विशेषज्ञता। समाज सेवा में रुचि। लोकहित की महत्वपूर्ण जानकारी जुटाना और उस जानकारी को समाचार के रूप प्रस्तुत करना। वर्तमान में डिजिटल और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से जुड़े। राजनीतिक सूचनाओं में रुचि और संदर्भ रखने के सतत प्रयास।

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