आईआईटी बॉम्बे में हाल ही में एक दलित छात्र की कथित आत्महत्या की घटना का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि समाज के वंचित समुदायों के छात्रों में ऐसी घटनाएं आम होती जा रही हैं। नेशनल एकेडमी ऑफ लीगल स्टडीज एंड रिसर्च (एनएएलएसएआर) में कॉन्वोकेशन को संबोधित करते हुए प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि सामाजिक बदलाव को बढ़ावा देने के लिए अदालत के कमरे के अंदर और बाहर के समाज के साथ बातचीत करने में भारत में न्यायाधीशों की महत्वपूर्ण भूमिका है। न्यायधीश ने संस्थानों से पूछा कहां हो रही है गलती।
न्यायधीश ने आगे कहा कि हाल ही में, मैंने आईआईटी बॉम्बे में एक दलित छात्र की आत्महत्या के बारे में पढ़ा था। इस घटना ने मुझे पिछले साल ओडिशा में नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी में एक आदिवासी छात्र की आत्महत्या के बारे में याद दिलाया। मैं इन छात्रों के परिवार के प्रति संवेदनाएं व्यक्त करता हुं। तो वहीं उन्होंने सवाल करते हुए कहा कि लेकिन मैं यह भी सोच रहा हूं कि हमारे संस्थान कहां गलत हो रहे हैं कि छात्रों को अपना कीमती जीवन छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है।
आत्महत्या के कारणों का लगाना होगा पता'
गुजरात के रहने वाले छात्र दर्शन सोलंकी ने 12 फरवरी को आईआईटी बॉम्बे में आत्महत्या कर ली थी। न्यायधीश ने कहा कि ये कुछ उदाहरण हैं जो यह स्पष्ट करते हैं कि सामज में वंचित समुदायों में आत्महत्या की घटनाएं आम हो रही हैं। उन्होंने कहा कि ये आंकड़े सिर्फ आंकड़े नहीं हैं। वे कभी-कभी सदियों के संघर्ष की कहानियां होती हैं। जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि मेरा मानना है कि अगर हम इस मुद्दे को सुलझाना चाहते हैं तो पहला कदम समस्या को स्वीकार करना और समझना है जिसके बाद समस्याओं के समाधान के लिए हल निकालना है।
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