Loksabha Election: चर्चाओं में बिहार बीजेपी के तीन दिग्गज.. सुशील मोदी, अश्विनी चौबे और शाहनवाज हुसैन.. लगा जोर का झटका..

नई दिल्ली। भारतीय जनता पार्टी नेतृत्व ने बिहार में तीन दिग्गज नेताओं को जोर का झटका धीरे से दिया है। बिहार की राजनीति के दिग्गज सुशील कुमार मोदी भाजपा के मार्गदर्शक मंडल में चले गए। केंद्रीय मंत्री अश्विनी कुमार चौबे को सक्रिय राजनीति से संन्यास दे दिया गया। पूर्व केंद्रीय मंत्री शाहनवाज हुसैन के साथ साजिश हो गई। होली में यही चर्चा है।

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सुशील मोदी- न पटना के रहे, न दिल्ली के…

भारतीय जनता पार्टी में करीब दो दशक तक बिहार में सुशील कुमार मोदी का जलवा रहा। लालू प्रसाद यादव और राबड़ी देवी के मुख्यमंत्री रहते हुए विपक्षी नेता के रूप में, फिर नीतीश कुमार के साथ उप मुख्यमंत्री और वित्त मंत्री के रूप में। फिर 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में भाजपा विधायकों के हिसाब से दूसरे नंबर पर आयी तो उसके बाद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की चाहत और जिद के बावजूद सुशील मोदी किनारे कर दिए गए। उन्हें डिप्टी सीएम नहीं बनाया गया। इंतजार के बाद उन्हें राज्यसभा भेजा गया। अब वह राज्यसभा के भी पूर्व सांसद हैं। जब राज्यसभा के लिए नाम नहीं आया तो माना जा रहा था कि भागलपुर या पटना से लोकसभा चुनाव में प्रत्याशी बनाया जा सकता है। भागलपुर के वह सांसद रहे हैं। लेकिन,राज्यसभा-विधान परिषद् की घोषणा के बाद लोकसभा सीटों के लिए भी एलान हो गया, सुशील मोदी का नाम नहीं आया। ऐसे में हर तरफ यही सवाल उठ रहा है कि 28 जनवरी को बिहार में एनडीए सरकार की वापसी के पहले भी सुशील मोदी की सक्रियता की बात आ रही थी, लेकिन उन्हें कुछ सोचकर भाजपा ने दरकिनार किया है। भाजपा नेता खुलकर इसपर बात नहीं कर रहे हैं, लेकिन चाणक्या इंस्टीट्यूट ऑफ पॉलिटिकल राइट्स एंड रिसर्च के अध्यक्ष सुनील कुमार सिन्हा कहते हैं- “वैश्य समाज से राज्यसभा में महिला नेत्री को भेजने से जाति को मैनेज किया गया है, लेकिन सुशील मोदी को दरकिनार करने का गलत संदेश गया है। राजनीति में हर संदेश का फायदा-नुकसान होता है। चुनाव भी सामने है, लेकिन देखना होगा कि सुशील मोदी खुद क्या रुख अपनाते हैं।” लेकिन, सवाल यही है- क्या सुशील कुमार मोदी भाजपा के मार्गदर्शक मंडल में चले गए?

अश्विनी चौबे- केंद्रीय मंत्री तक की कुर्सी, अब राजनीति से विश्राम अवस्था
राजनीतिक बयानों को लेकर पूरे देश में चर्चा में रहने वाले अश्विनी चौबे अब शांत हो गए हैं। भागलपुर क्षेत्र से लंबे समय तक राज्य की राजनीति करते हुए बक्सर से देश की राजनीति तक पहुंचे अश्विनी कुमार चौबे केंद्रीय मंत्री हैं। 2024 के जून महीने में चाहे सरकार कोई बनाए, वह मंत्री नहीं होंगे। भाजपा ने उन्हें बक्सर से टिकट नहीं दिया। बक्सर में टिकट के पांच-छह दावेदार थे, लेकिन चौंकाते हुए चौबे का टिकट काटकर मिथिलेश तिवारी को दे दिया गया। चौबे भागलपुर से भी प्रयासरत बताए जा रहे थे। दोनों में से कहीं नाम नहीं आया। कहा जा रहा है कि उन्हें कुछ और मिलने का भरोसा दिलाया गया है। ऐसे में सवाल यह उठ रहा है कि क्या केंद्रीय मंत्री अश्विनी कुमार चौबे को सक्रिय राजनीति से संन्यास दे दिया गया?

शाहनवाज हुसैन- दरकिनार होने वाला समय नहीं, फिर क्या हो गया समझ से परे
केंद्रीय मंत्री रहने के बाद काफी समय तक संगठन में लगाए गए सैयद शाहनवाज हुसैन को 2020 में बिहार का उद्योग मंत्री बनाया गया था। विधान परिषद् के रास्ते उन्हें मुख्य धारा में लाया गया। काम की चर्चा खूब चल रही थी, लेकिन अचानक बिहार की नीतीश कुमार सरकार महागठबंधन सरकार में बदल गई तो वह भी बाकी भाजपाई मंत्रियों की तरह वह भी पूर्व हो गए। इस साल 28 जनवरी को फिर एनडीए सरकार की वापसी हुई तो उम्मीद जागी, लेकिन माना जा रहा था कि लोकसभा चुनाव में शाहनवाज हुसैन को मौका मिलेगा। राज्यसभा के लिए नाम नहीं आया और विधान परिषद् की उनकी सदस्यता भी खत्म होने दी गई तो लोकसभा की संभावना ज्यादा बढ़ गई। वह भागलपुर और किशनगंज के लिए प्रयासरत थे। भाजपा ने दोनों सीटें जदयू के खाते में जाने दी तो भी चर्चा थी कि सीतामढ़ी के सांसद सुनील कुमार पिंटू वाले फॉर्मूले के तहत इस बार हुसैन को मौका मिल जाएगा। लेकिन, अब हर दरवाजा बंद हो गया है। ऐसे में भाजपा के अंदर ही नहीं, बाहर भी चर्चा है कि पूर्व केंद्रीय मंत्री शाहनवाज हुसैन के साथ साजिश हो गई है। सवाल यह भी है कि कहीं मुख्तार अब्बास नकवी की तरह किनारे लगा दिए गए हैं?

Sanjay Saxena

BSc. बायोलॉजी और समाजशास्त्र से एमए, 1985 से पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय , मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल के दैनिक अखबारों में रिपोर्टर और संपादक के रूप में कार्य कर रहे हैं। आरटीआई, पर्यावरण, आर्थिक सामाजिक, स्वास्थ्य, योग, जैसे विषयों पर लेखन। राजनीतिक समाचार और राजनीतिक विश्लेषण , समीक्षा, चुनाव विश्लेषण, पॉलिटिकल कंसल्टेंसी में विशेषज्ञता। समाज सेवा में रुचि। लोकहित की महत्वपूर्ण जानकारी जुटाना और उस जानकारी को समाचार के रूप प्रस्तुत करना। वर्तमान में डिजिटल और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से जुड़े। राजनीतिक सूचनाओं में रुचि और संदर्भ रखने के सतत प्रयास।

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