Editorial : आयकर प्रावधानों का सरलीकरण!

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने जो नया इनकम टैक्स बिल लोकसभा में पेश किया है, उसमें दो बातें प्रमुख रही हैं। टैक्स की सीमाएं बढ़ाने की घोषणा तो पहले ही हो चुकी है, इसमें प्रावधानों का सरलीकरण महत्वपूर्ण माना जा रहा है। पिछले दिनों बजट पेश करते हुए भी उन्होंने इसका जिक्र किया था। तभी से निगाहें इस बात पर टिकी थीं कि प्रस्तावित बिल के जरिए किस तरह के बदलाव लाए जाने वाले हैं। इस लिहाज से यह राहत की बात कही जा सकती है कि यह बिल इनकम टैक्स प्रावधानों को सरल और आसान बनाने के बड़े मकसद से जुड़ा है, जिसका फायदा आने वाले वर्षों में दिख सकता है।
असल में 1961 में जब यह कानून लाया गया था, तब से न केवल देश की अर्थव्यवस्था अपितु हमारे आसपास की पूरी दुनिया बदल चुकी है। बदलती अवश्यकतओं के अनुसार टैक्स कानून में नए-नए संशोधन होते रहे हैं, जिससे इस कानून की जटिलता बढ़ती चली गई। यह जटिलता न केवल करदाताओं को उलझन में डालती है, बल्कि कानूनी प्रावधानों की कई तरह से व्याख्या की गुंजाइश भी बनाए रखती थी।
इसके चलते देश में टैक्स को लेकर विवाद इतना बढ़ गया कि भारत को दुनिया की टैक्स विवादों की राजधानी तक कहा जाने लगा था। खासकर पिछले करीब डेढ़ दशक में यह ट्रेंड बहुत तेजी से बढ़ा। हालात यहां तक पहुंच गये कि 2023-24 तक टैक्स संबंधी मुकदमों में विवादित रकम बढक़र 15.4 लाख करोड़ रुपये हो गई, जिसका करीब 87 प्रतिशत हिस्सा डायरेक्ट टैक्स से जुड़ा है। इस रकम की विशालता का अंदाजा इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि ताजा बजट में मध्यमवर्ग को मिली आयकर छूट भी 1 लाख करोड़ रुपये ही बैठती है। कई बार तो यह स्थिति भी बन जाती है कि जो टैक्स चोरी करते हैं, वो सुरक्षित होते हैं और टैक्स देने वाले कानूनों में उलझते चले जाते हैं।
ये आंकड़े वास्तव में डराने वाले हैं और इनके कारण टैक्स प्रावधानों के प्रति लोगों में भय भी है और नाराजगी भी। दिलचस्प है कि आयकर विभाग को इन विवादों से कोई फायदा भी नहीं होता क्योंकि इनमें जीत का उसका रेकॉर्ड बड़ा खराब रहा है। ऑर्गनाइजेशन फॉर इकॉनमिक कोऑपरेशन एंड डेवलपमेंट(ओईसीडी) की ओर से 34 देशों में टैक्स विवादों पर हुए एक अध्ययन के अनुसार 2015 में भारत में टैक्स विभाग को मात्र 11.5 प्रतिशत मामलों में ही जीत मिली थी। ओईसीडी देशों का औसत इस मामले में 65 प्रतिशत है।
ऐसे में चाहे असेसमेंट ईयर के बदले टैक्स ईयर जैसी शब्दावली तय करने की बात हो या सैलरी डिडक्शन से जुड़े तमाम प्रावधानों को एक सेक्शन में रखने की, या खेती से जुड़ी आमदनी संबंधी प्रावधानों पर स्पष्टता लाने की, प्रस्तावित बिल में इसकी व्याख्या बेहतर होने की बात कही जा रही है। यदि ऐसा है तो इसे आम आदमी को भी समझ में आना चाहिए। इस पर सही तरीके से अमल किया गया तो देश की टैक्स व्यवस्था में पारदर्शिता और सरलता के नए दौर की शुरुआत इससे हो सकती है। सबसे बड़ी उपलब्धि यह होगी कि लोग टैक्स के लिए किसी पर निर्भर नहीं हों, तभी हम इन प्रावधानों को बेहतर मानेंगे।
संजय saxena