MP: नागर की कहानी कटनी खनन क्षेत्र में एकाधिकार से जुड़ी…! खनन किंग पूर्व मंत्री की इसमें अहम भूमिका…?

भोपाल। मंत्री नागर सिंह चौहान से वन विभाग छीने जाने को लेकर राजनीतिक और प्रशासनिक गलियारों में चर्चाओं का दौर अभी भी जारी है। प्रमुख मामला कटनी का ही बताया जा रहा है। इसमें एक पक्ष तो मंत्री द्वारा एसएलपी वापस लेने वाली नोटशीट पर हस्ताक्षर करने का है, लेकिन इसमें एक और राजनीतिक पक्ष जुड़ गया है। इसके पीछे कटनी के खनन क्षेत्र में एकाधिकार का मामला भी है। फिलहाल पूर्व मंत्री संजय पाठक का यहां दबदबा है। और वो किसी और के पक्ष में कोई फैसला नहीं होने देना चाहते हैं।
पाठक पिछले दिनों हुए चुनावों के दौरान प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष वीडी शर्मा के साथ पूर्व मंत्री नरोत्तम मिश्रा ने पार्टी में बाहरी लोगों की एंट्री करवाई, उसमे संजय पाठक की भूमिका रही। माना जा रहा है कि कांग्रेस नेता सुरेश पचौरी और उनके समर्थक रहे संजय शुक्ला को बीजेपी में शामिल करने में अहम भूमिका पाठक की ही रही। इसके उल्लेख यहां इसलिए करना जरूरी है क्योंकि कटनी को लेकर जिस तरह से बीजेपी ने अनुसूचित जाति के एसीएस और अनुसूचित जनजाति के मंत्री को विभाग से हटाया, उससे राजनीतिक और प्रशासनिक हलकों में जातिगत संघर्ष की नई जमीन तैयार हुई है।
पाठक ने पीआरओ के माध्यम से बाकायदा सीएम को चिट्ठी लिखवा कर इस मामले की शिकायत करवाई थी। इसमें वन भूमि को
यह पूरा मामला कटनी के ढीमरखेड़ा तहसील के झिन्ना और हरैया की 148 एकड़ जमीन के खनन के लिए देने से जुड़ा है। इसको लेकर सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी दायर की गई है। इसमें से एक पक्ष वन विभाग का है तो दूसरा पक्ष खनन कारोबारी आनंद गोयंका (मेसर्स सुखदेव प्रसाद गोयनका) का है। मंत्री नागर सिंह चौहान ने इन्हीं कारोबारी के लिए वन विभाग को एसएलपी वापस लिए जाने के लिए नोट शीट लिखी थी। तत्कालीन प्रमुख सचिव वन विभाग जेएन कंसोटिया ने मंत्री की नोट शीट को आगे बढ़ते हुए डीएफओ गौरव चौधरी को एसएलपी वापस लिए जाने के लिए लिख दिया था।
हाल में वन विभाग में पदस्थ हुए नए अपर मुख्य सचिव अशोक वर्णवाल ने मंत्री के फैसले वाली नोट शीट को हटाते हुए लिखा कि एसएलपी वापस नहीं ली जाए। साथ ही कटनी डीएफओ सरकार के अगले आदेश का इंतजार भी करें, ऐसा लिखा। वन विभाग का दावा है कि यह जमीन फॉरेस्ट की है सिर्फ रेवेन्यू रिकॉर्ड में दर्ज नहीं है। हालांकि गोइंग का पक्ष हाईकोर्ट में फैसला अपने पक्ष में ले चुका है इसके बाद वन विभाग ने सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी दायर की थी।
तत्कालीन वन मंत्री चौहान ने 23 अप्रैल को एसएलपी वापस लेने की नोटशीट पर मंजूरी दी थी। इसके बाद, यह फाइल तत्कालीन अपर मुख्य सचिव जेएन कंसोटिया के पास भेजी गई, और उसी तारीख को सचिव और फिर ओएसडी तक पहुंच गई। हालांकि, इसके क्रियान्वयन में बाद में बाधा उत्पन्न हो गई, और कटनी डीएफओ ने कलेक्टर के पास अपील कर दी।
फॉरेस्ट सेटलमेंट ऑफिसर के आदेश अब अंतिम हो चुके हैं। वन और राजस्व विभाग के संयुक्त सीमांकन के आधार पर कार्यवाही की जाए। मुख्य सचिव की अध्यक्षता में आयोजित बैठक में विधि विभाग के प्रमुख सचिव भी मौजूद थे। विधि विभाग और महाधिवक्ता की राय भी प्राप्त है। इसलिए, पूर्व में अनुमोदित निर्णय के अनुसार प्रकरण को तुरंत वापस लिया जाए। इससे शासन को किसी भी राजस्व हानि का सामना नहीं करना पड़ेगा।
वहीं सुप्रीम कोर्ट ने मामले की जांच के लिए सेंट्रल एंपावर्ड कमेटी को अधिकृत किया था। इस कमेटी की अनुशंसा के आधार पर, फोरेस्ट सेटलमेंट ऑफिसर (एफएसओ) ने जमीन को डी-नोटिफाई करने के आदेश जारी किए थे। एफएसओ के आदेश के खिलाफ कटनी डीएफओ गौरव चौधरी ने कलेक्टर कोर्ट में अपील की है। इसके अतिरिक्त, मंत्री चौहान द्वारा एसएलपी वापस लेने की सिफारिश की गई फाइल पर आगे की कार्रवाई भी रोक दी गई है। इससे पहले भी, कलेक्टर ने इस जमीन को डी-नोटिफाई करने के आदेश पर स्टे जारी किया था। फिलहाल, कलेक्टर कोर्ट में सुनवाई जारी है।
