Editorial:
अस्पतालों में आग की बढ़ती घटनाएं

मध्यप्रदेश के मुरैना जिला अस्पताल की पुरानी बिल्डिंग के मुख्य ओटी, बर्न यूनिट और सर्जिकल वार्ड में कल शाम 6 बजे आग लग गई। जैसे ही आग लगी सभी अटेंडर अपने मरीज को लेकर बाहर की तरफ भागे। जल्दबाजी में एक मरीज का ऑक्सीजन मास्क निकल गया। जब तक उसे बाहर लाया गया, तब तक उसकी मौत हो चुकी थी।
पहले इस घटना पर नजर डालते हैं। अस्पताल में आग लगते ही सर्जिकल वार्ड के बगल वाली गैलरी में धुआं फैल गया। सर्जिकल वार्ड और 1 वार्ड के सभी मरीजों को फौरन बाहर निकाला गया। कुछ मरीजों को अटेंडर बाहर लाए तो कुछ मरीज ड्रिप निकालकर खुद बाहर निकले। एक मरीज घिसटते हुए बाहर आते दिखा। किसी ने इसकी सूचना फायर ब्रिगेड को दी। दमकल वाहन आया भी, लेकिन वह अंदर तक नहीं पहुंच सका।
हालांकि कर्मचारियों ने समय पर आग बुझाकर उसे पर काबू कर लिया। हादसे के दौरान बड़ी लापरवाही भी दिखी। जिला अस्पताल में फायर सेफ्टी सिस्टम की पाइपलाइन डाली गई है। लेकिन उसकी न तो सीटी बजी और ना ही सायरन बजा। शॉर्ट सर्किट की मुख्य वजह ओवरलोड के कारण हुआ फ्लक्चुएशन बताया जा रहा है। जिस समय आग लगी उस समय अस्पताल में 200 से ज्यादा मरीज थे। बहुत बड़ी घटना होते-होते बच गई।
हाल ही में यूपी की राजधानी लखनऊ के सरकारी लोकबंधु अस्पताल में आग लगने की घटना हुई, इस दुर्घटना में भी एक मरीज की मौत हुई। एक अंग्रेजी अखबार ने कुछ माह पहले 2019 से 2024 तक के बीच भारत के विभिन्न अस्पतालों में आग लगने की घटनाओं पर शोध किया था। इसमें पाया कि इस अवधि में 11 प्रमुख अस्पतालों में आग लगने के कारण 107 लोगों की जान गई। इनमें से अधिकतर घटनाएं कोविड-19 के दौरान हुईं, जब अस्पतालों पर अत्यधिक दबाव था।
इन घटनाओं में से कुछ मामलों में अस्पताल के मालिकों या प्रमुखों को जमानत मिल चुकी है, और अधिकतर मामलों में अभी तक न्यायिक प्रक्रिया पूरी नहीं हो पाई है। ये घटनाएं इस बात का संकेत हैं कि अस्पतालों में सुरक्षा को लेकर गंभीर चूक हो रही है।
आग लगने की घटनाओं के प्रमुख कारणों में शॉर्ट सर्किट, खराब बिजली का रखरखाव और अग्नि सुरक्षा उपकरणों की कमी शामिल हैं। कई अस्पतालों में अग्निशामक यंत्र, नलियां और स्प्रिंकलर सिस्टम जैसी जरूरी चीजें अनुपलब्ध थीं। इसके अलावा, कुछ अस्पतालों ने सुरक्षा प्रमाणपत्रों का नवीनीकरण तक नहीं कराया था, जिससे उनका संचालन अवैध हो गया था। कई मामलों में यह भी पाया गया कि अस्पतालों में निर्माण के मानदंडों का उल्लंघन किया गया और अवैध रूप से नए निर्माण किए गए थे, जो आग के खतरे को बढ़ाते हैं।
कोविड-19 महामारी के दौरान जब अस्पतालों का दबाव बहुत बढ़ गया था, तब आग की घटनाओं में वृद्धि हुई। इन घटनाओं में सबसे प्रमुख गुजरात के पटेल वेलफेयर अस्पताल, महाराष्ट्र के विजय वल्लभ अस्पताल और दिल्ली के बेबी केयर न्यू बोर्न अस्पताल शामिल हैं। इन घटनाओं में शॉर्ट सर्किट, खराब रखरखाव और अग्निशमन सुरक्षा प्रणालियों की कमी के कारण मौतें हुईं।
दिल्ली के बेबी केयर न्यू बोर्न अस्पताल में इस साल मई में आग लगी, जिसमें छह नवजात शिशुओं की जान चली गई। जांच में पाया गया कि अस्पताल में स्वीकृत बेड से ज्यादा बेड लगाए गए थे और सुरक्षा उपकरणों की भी कमी थी। वहीं, महाराष्ट्र के विजय वल्लभ अस्पताल में आग लगने से 15 लोग मारे गए थे। यहां की जांच में पाया गया कि अस्पताल में स्प्रिंकलर सिस्टम काम नहीं कर रहा था और अग्निशमन प्रणालियों में गंभीर खामियां थीं। इसी तरह, गुजरात के श्रेय अस्पताल में भी एक शॉर्ट सर्किट के कारण आग लगी, जिसमें आठ लोगों की मौत हुई। यहां की जांच में यह सामने आया कि अस्पताल ने अग्निशमन सुरक्षा नियमों का पालन नहीं किया था।
कुल मिलाकर, मुरैना सहित तमाम अस्पतालों में आग की घटनाओं ने यह स्पष्ट कर दिया है कि अस्पतालों में आग की सुरक्षा प्रणाली पर गंभीरता से ध्यान अभी नहीं दिया जा रहा है। कई अस्पतालों में अग्नि सुरक्षा उपायों की कमी, खराब रखरखाव, और अदालती मामलों में लंबी प्रक्रिया ये सभी समस्याएं अस्पतालों में आग की घटनाओं को बढ़ावा दे रही हैं। फायर आडिट भी कागजों में ही कर दिया जाता है, जबकि इसके लिए मध्यप्रदेश में तो अभियान चलाने के आदेश जारी किये गये थे। किसी अस्पताल में आग लगती है, तभी प्रशासन जागता है। जबकि छोटा हो गया बड़ा, हर अस्पताल में सुरक्षा के प्रबंधों पर विशेष ध्यान दिया जाना जरूरी है।
संजय सक्सेना