Editorial:
बदलती जलवायु, सूखती नदियां

भारतीय हिमालय क्षेत्र में 9575 हिमनद हैं। इनमें से 968 हिमनद सिर्फ उत्तराखंड में हैं। यदि ये हिमनद तेजी से पिघलते हैं तो भारत, पाकिस्तान और चीन में भयावह बाढ़ की स्थिति पैदा हो सकती है। इसी तरह अंटार्कटिका में हर साल औसतन 150 अरब टन बर्फ पिघल रही है, जबकि ग्रीनलैंड की बर्फ और भी तेज़ी से पिघल रही है। वहां हर साल 270 अरब टन बर्फ पिघलने के आंकड़े दर्ज किए गए हैं। यदि यही हालात बने रहे तो समुद्र में बढ़ता जलस्तर और खारे पानी का नदियों के जलभराव क्षेत्र में प्रवेश इन विशाल डेल्टाओं के बड़े हिस्से को नष्ट कर देगा।
साफ है, इस तरह से यदि गंगा के उद्गम स्रोतों के हिमखंडों के टूटने का सिलसिला बना रहता है तो कालांतर में गंगा की अविरलता तो प्रभावित होगी ही, गंगा की विलुप्ति का खतरा भी बढ़ता चला जाएगा। यह हमारे लिये न केवल चिंतनीय है, अपितु बड़ी चेतावनी भी है।
वैश्विक मौसम जिस तरह से करवट ले रहा है, उसका असर अब पूरी दुनिया पर दिखाई देने लगा है। भविष्य में इसका सबसे ज़्यादा खतरा एशियाई देशों पर पड़ेगा। एशिया में गरम दिन बढ़ सकते हैं या फिर सर्दी के दिनों की संख्या बढ़ सकती है। एकाएक भारी बारिश की घटनाएं हो सकती हैं या फिर अचानक बादल फटने की घटनाएं बढ़ सकती हैं। न्यूनतम और अधिकतम दोनों तरह के तापमानों में खासा परिवर्तन देखने में आ सकता है। इसका असर परिस्थितिक तंत्र पर तो पड़ेगा ही, मानव समेत तमाम जंतुओं और पेड़-पौधों की जिंदगी पर भी पड़ेगा। स्लिम्स नदी का लुप्त होना और 10 हिमालयी नदियों के सूखने की चेतावनी दी जा रही है, जो गंभीर है।
अब बात करते हैं केंद्रीय जल आयोग यानि सीडब्ल्यूसी द्वारा जारी आंकड़ों की। इनके विश्लेषण से पता चलता है कि महानदी और पेन्नार के बीच पूर्व की ओर बहने वाली कम से कम 13 नदियों में इस समय पानी नहीं है। इनमें रुशिकुल्या, बाहुदा, वंशधारा, नागावली, सारदा, वराह, तांडव, एलुरु, गुंडलकम्मा, तम्मिलेरु, मुसी, पलेरु और मुनेरु शामिल हैं।
आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और ओडिशा राज्यों से होकर 86,643 वर्ग किलोमीटर (वर्ग किलोमीटर) क्षेत्र में बहने वाली ये नदियाँ सीधे बंगाल की खाड़ी में गिरती हैं। इस बेसिन में कृषि भूमि कुल क्षेत्रफल का लगभग 60 प्रतिशत है और गर्मी के चरम से पहले ही यह स्थिति चिंताजनक है। संयुक्त बेसिन में महत्वपूर्ण शहरी केंद्रों में विशाखापत्तनम, विजयनगरम, पूर्वी गोदावरी, पश्चिम गोदावरी, श्रीकाकुलम और काकीनाडा शामिल हैं।
सीडब्ल्यूसी द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार, इस साल बेसिन में भंडारण लगातार घट रहा है। देश के सबसे बड़े बेसिन गंगा बेसिन में जल संग्रहण अपनी कुल क्षमता के आधे से भी कम यानि 41.2 प्रतिशत दर्ज किया गया। यह पिछले वर्ष की इसी अवधि की तुलना में भी कम है। नर्मदा, तापी, गोदावरी, महानदी और साबरमती नदी बेसिनों में उनकी क्षमता के सापेक्ष क्रमश: 46.2 प्रतिशत, 56 प्रतिशत, 34.76 प्रतिशत, 49.53 प्रतिशत और 39.54 प्रतिशत भंडारण दर्ज किया गया। मध्यप्रदेश की जीवन रेखा नर्मदा का पानी भी कम हो रहा है। उद्गम स्थल से ही हालात खराब होते दिख रहे हैं।
आईआईटी गांधीनगर द्वारा संचालित इंडिया ड्राउट मॉनिटर ने बताया कि नदी घाटियों की सीमाओं के भीतर कई क्षेत्रों में अत्यधिक से लेकर असाधारण सूखे की स्थिति उत्पन्न हो रही है। भारत के 150 प्रमुख जलाशयों की वर्तमान भंडारण क्षमता उनकी कुल क्षमता के 36 प्रतिशत तक घट गई है, तथा कम से कम छह जलाशयों में जल भंडारण शून्य है। कम से कम 86 जलाशय ऐसे हैं जिनमें भंडारण 40 प्रतिशत या उससे कम है।
कुल मिलाकर परिस्थितियां बहुत जटिल होती दिख रही हैं। जलवायु परिवर्तन से पूरी दुनिया चौकन्नी है, लेकिन आज भी हमारे पास इससे निपटने के बेहतर उपाय नहीं हैं। हम प्रकृति का संरक्षण भी नहीं कर पा रहे हैं और न ही जंगलों को बचा पा रहे हैं। पारिस्थितिकी यानि ईकोसिस्टम हर जगह का बिगड़ रहा है। हिमालय से लेकर कन्याकुमारी तक नदियां और जलाशयों में पानी कम हो रहा है। संग्रहण यानि स्टोरेज की दिक्कत है और भूजल स्तर भी लगातार देश के लगभग सभी स्थानों का गिरता जा रहा है। हम इसे कैसे रोक सकते हैं, इस पर विचार चल रहा है, लेकिन सही तरीके से अमल नहीं हो पा रहा है। आने वाली पीढ़ी को बचाना है, तो प्रकृति का संरक्षण सर्वोच्च प्राथमिकता पर रखना होगा।