Report में दावा: 12 राज्यों ने महिलाओं को बांटे 1.68 लाख करोड़, नकद योजनाएं बढ़ा रहीं सरकारों का घाटा

नई दिल्ली। हाल के वर्षों में देश की राजनीति में एक बड़ा बदलाव देखा जा रहा है। राजनीति महिला कल्याण केंद्रित होती जा रही है और विभिन्न राज्यों द्वारा महिलाओं के बैंक खातों में सीधे पैसे ट्रांसफर करने की योजनाएं संचालित की जा रही हैं। अब एक रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि देशभर में 12 राज्यों में महिलाओं को नकद पैसे ट्रांसफर करने की योजनाएं चल रही हैं और इनके चलते राज्यों के खजाने पर भारी दबाव पड़ रहा है।

थिंक टैंक PRS लेजिस्लेटिव रिसर्च की रिपोर्ट के अनुसार, वित्तीय वर्ष 2025-26 में देश के कुल 12 राज्यों ने महिला कल्याण योजनाओं पर 1.68 लाख करोड़ रुपये खर्च किए। इन योजनाओं के तहत महिलाओं को बिना शर्त नकद पैसे ट्रांसफर की योजनाएं संचालित हो रही हैं। तीन साल पहले देश में सिर्फ दो राज्यों द्वारा महिलाओं को नकद पैसे ट्रांसफर करने की योजनाएं चलाई जा रहीं थी। अब इनकी संख्या बढ़कर 12 पहुंच गई है। रिपोर्ट के अनुसार, महिलाओं को बिना शर्त नकद ट्रांसफर (UCT) स्कीम लागू करने वाले 12 राज्यों में से छह घाटे में चल रहे हैं। हालांकि, UCT स्कीम पर खर्च को छोड़कर इन राज्यों के वित्तीय संकेतकों में सुधार दिखाई दे रहा है।’

दो से बढ़कर 12 हुए राज्य
बिना शर्त कैश ट्रांसफर (UCT) योजना का मकसद हर महीने सीधे बेनिफिट पेमेंट के जरिए आर्थिक रूप से कमजोर परिवारों की महिलाओं को सशक्त बनाना है। कई राज्यों में ये योजनाएं सरकारों की प्रमुख योजना बन गई हैं। महिलाओं को बड़े पैमाने पर बिना शर्त कैश ट्रांसफर (UCT) देने वाले राज्यों की संख्या 2022-23 में दो राज्यों से बढ़कर 2025-26 में 12 राज्य हो गई है।

इन योजनाओं के मुख्य लाभार्थियों का चयन आय वर्ग, आयु वर्ग और अन्य कारकों के आधार पर किया जाता है। असम और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों ने पिछले साल की तुलना में महिला कल्याण योजनाओं के लिए अपने आवंटन में क्रमशः 31 प्रतिशत और 15 प्रतिशत की भारी वृद्धि की है। तमिलनाडु की कलाईनार मगलीर उरीमाई थोगई थिट्टम, मध्य प्रदेश की लाडली बहना योजना और कर्नाटक की गृह लक्ष्मी योजना शामिल हैं, जिनमें से परिवारों की महिलाओं को हर महीने 1,000 रुपये से 1,500 रुपये तक की सहायता प्रदान की जाती है।

राज्यों के खजानों पर पड़ रहा दबाव
हालांकि, रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि ये योजनाएं राज्य के बजट पर दबाव डाल रही हैं। वित्तीय अनुमानों से पता चलता है कि अगर महिला केंद्र योजनाओं के खर्च को हटा दिया जाए तो राज्यों की वित्तीय स्थिति सुधर सकती है। रिजर्व बैंक ऑफ़ इंडिया भी राज्यों को चेतावनी दे चुका है कि महिलाओं, युवाओं और किसानों के लिए सब्सिडी और कैश ट्रांसफर पर बढ़ता खर्च उत्पादक खर्च को कम कर सकता है।

Sanjay Saxena

BSc. बायोलॉजी और समाजशास्त्र से एमए, 1985 से पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय , मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल के दैनिक अखबारों में रिपोर्टर और संपादक के रूप में कार्य कर रहे हैं। आरटीआई, पर्यावरण, आर्थिक सामाजिक, स्वास्थ्य, योग, जैसे विषयों पर लेखन। राजनीतिक समाचार और राजनीतिक विश्लेषण , समीक्षा, चुनाव विश्लेषण, पॉलिटिकल कंसल्टेंसी में विशेषज्ञता। समाज सेवा में रुचि। लोकहित की महत्वपूर्ण जानकारी जुटाना और उस जानकारी को समाचार के रूप प्रस्तुत करना। वर्तमान में डिजिटल और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से जुड़े। राजनीतिक सूचनाओं में रुचि और संदर्भ रखने के सतत प्रयास।

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