राजनीतिक और प्रशासनिक माफिया है भोपाल के मास्टर प्लान में बाधा.. हरेक को अपना अवैध, वैध करना है...

भोपाल। राजधानी का मास्टर प्लान 18 वर्ष से अटका हुआ है और लगता नहीं कि चुनाव के पहले आ पाएगा। इसके पीछे राजधानी में प्रशासनिक और राजनीतिक गठजोड़ जिम्मेदार है, जो सबसे बड़ा जमीन माफिया बन चुका है। मास्टर प्लान में बड़े तालाब के कैचमेंट एरिया का मामला भी आड़े आ रहा है, क्योंकि आम लोगों को तो उजाड़ दिया, अब नेताओ और अफसरों ने अवैध आशियाने तान दिए है। कई ने तो टीएनसीपी की अनुमति भी नहीं ली है। 
शहर के नियोजित विकास के लिए मास्टर प्लान जरूरी माना जाता है। पांच साल के लिए बनने वाला मास्टर प्लान माफिया के चक्कर में अठारह साल से नहीं बन पा रहा है। एक साल के दौरान तीन से अधिक बैठकें हो चुकी हैं। टीएनसीपी विभाग कहता है कि उसकी तरफ से तैयार है। ऊपर से अटकाया जा रहा है
बिना प्लानिंग के शहर में मेट्रो लाइन, सड़कों, नालियों और बहुमंजिला इमारतों का निर्माण किया जा रहा है। भोपाल के मास्टर प्लान की अवधि वर्ष 2005 में ही समाप्त हो चुकी है, लेकिन प्रदेश की राजधानी होने के बावजूद नया मास्टर प्लान अब तक नहीं बन पाया है। अब फिर इसके प्रारूप में हुए संशोधन को अधिसूचित करके फिर दावे-आपत्ति आमंत्रित किए जाएंगे। 
नगर तथा ग्राम निवेश संचालनालय ने तीन साल पहले मार्च 2020 को मास्टर प्लान का प्रारूप जारी कर दावे-आपत्ति बुलाए थे। इनकी सुनवाई करने के बाद संचालनालय स्तर पर प्रारूप में बदलाव किए गए। शासन स्तर पर भी कुछ संशोधन किए गए है। इन परिवर्तन को लेकर एक बार फिर से आमजन से दावे-आपत्तियां आमंत्रित किए जाएंगे। इसके लिए एक माह का समय दिया जाएगा। इस अवधि में प्राप्त दावे-आपत्ति का निराकरण करने के बाद ही मास्टर प्लान का अंतिम प्रकाशन होगा।
इस बीच प्रशासन में बैठे कई अधिकारियों ने बड़े तालाब के कैचमेंट एरिया में मकान तान दिए हैं। नीलबड़, कलखेडा, गोरेगांव, सूरज नगर आदि इलाकों में अवैध मकान बने हैं। उन्हें बचाने की कोशिश चल रही है। ऐसे तो यदि वैधता की जांच सही तरीके से की जाए तो चुना भट्टी सहित कई इलाके अवैध ही निकलेंगे। लेकिन माफिया ही सरकार चला रहा है, कौन बोलेगा?

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