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अगले साल जिन राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं, उनमें छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश भी शामिल हैं। 2018 के विधानसभा चुनावों में इन दोनों राज्यों में बीजेपी को सत्ता गंवानी पड़ी थी। मध्य प्रदेश में 15 महीने बाद ही ज्योतिरादित्य सिंधिया के दलबदल के चलते बीजेपी सत्ता में लौट आई, लेकिन छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार मजबूती से डंटी है। स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव के साथ सीएम पद को लेकर झगड़े के बावजूद भूपेश बघेल, बीजेपी के हर हमले का सफलतापूर्वक मुकाबला कर रहे हैं। अब जबकि विधानसभा चुनावों में करीब एक साल का समय बचा है, बीजेपी ने छत्तीसगढ़ में संगठन में आमूलचूल बदलाव किए हैं। प्रदेश पार्टी अध्यक्ष के साथ विधानसभा मे नेता प्रतिपक्ष और प्रभारी महासचिव को बदल दिया गया है। इससे यह कयास लगने लगे हैं कि पार्टी मध्य प्रदेश में भी तो कहीं बदलाव तो नहीं करेगी।संजय सक्सेना
मध्य प्रदेश में बार बार नेतृत्व परिवर्तन की चर्चाएं ही मुख्यमंत्री शिवराज को और मजबूत करती दिख रही है। और माना भी यही जा रहा है कि जब भी दिल्ली कोई सूचना आती है, या नेतृत्व में बदलाव को हलचल होती है, प्रदेश में कई तरह की घटनाएं होने लगती है। विवादास्पद बयान आने लगते हैं। जो मंत्री और नेता सीएम बनना चाहते हैं, वो साथ खड़े दिखने लगते हैं। यही नहीं केंद्रीय नेतृत्व पर भी हमले तेज हो जाते हैं। कुल मिलाकर भ्रम और भाग्य के सहारे शिवराज को संजीवनी मिल जाती है। भले ही बीजेपी की इससे खराब हालत प्रदेश में पहले कभी नहीं रही, ना सरकार की और ना ही संगठन की। बावजूद इसके शिवराज डटे हुए हैं। अपने ही बन रहे दुश्मन
पोषण आहार में गड़बड़ी मीडिया की सुर्खी बनने के पीछे सरकार के किसी अपने का ही हाथ है। जिस रिपोर्ट के हवाले से घोटाले की खबरें सामने आई हैं, वह अंतिम नहीं है। सवाल उठ रहे हैं कि अकाउंटेंट जनरल की प्राथमिक रिपोर्ट को लीक किसने किया। इसमें रोचक यह भी है कि अकाउंटेंट जनरल का ऑफिस ग्वालियर में है।
दुश्मनों की दोस्ती
खबरें यह भी आ रही हैं कि पार्टी जल्द ही प्रदेश के 15 से ज्यादा जिलों में अध्यक्ष बदल सकती है। इसके लिए आंतरिक सर्वे कराया गया है। इसके आधार पर जिला अध्यक्षों की गोपनीय रिपोर्ट बनाई गई है। करीब छह महीने पहले आरएसएस के संगठन महामंत्री भी बदले जा चुके हैं। सुहास भगत की जगह हितानंद शर्मा को महामंत्री बनाया गया है।
शिवराज के लिए उम्मीद की किरण
सीएम शिवराज सिंह चौहान के नजरिये से देखें तो बीजेपी को प्रदेश में उनका विकल्प अब तक नहीं मिल पाया है। मुख्यमंत्री पद के लिए दावेदार तो कई हैं, लेकिन सर्वसम्मत चेहरे की कमी है। पार्टी नेतृत्व को यह अंदेशा भी सता रहा है कि चुनाव के नजदीक आने के बाद बड़े पैमाने पर बदलाव के नतीजे उल्टे भी हो सकते हैं। बड़ा फैक्टर यह भी है कि बीच के 15 महीनों को छोड़कर बीते करीब 20 साल से प्रदेश में बीजेपी की ही सरकार रही है। इससे एंटी-इनकम्बेंसी का भरपूर खतरा है। अपनी सरकार होने के चलते बीजेपी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे को बड़े पैमाने पर भुनाने को लेकर भी आश्वस्त नहीं है।
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