गुलाम नबी आजाद का कांग्रेस छोडऩा सामान्य घटना नहीं है। यह सही है कि कांग्रेस में आज भी ऐसी अनेक कमजोरियां हैं, जिनका खामियाजा उसे भुगतना ही है, लेकिन आजाद का मामला कुछ अलग जान पड़ता है। कांग्रेस में आज हाईकमान को लेकर जहां असमंजस की स्थिति है, वहीं वर्षों से सख्त एक्शन लेने से परहेज किया जाता रहा है। अनुशासन जैसी कोई चीज नहीं बची और न ही हाईकमान किसी मुद्दे पर संवाद करना चाहता है। फिर भी आजाद का कदम निराश होकर या केवल नाराजगी में उठाया गया नहीं लगता।
सही बात तो यह है कि जम्मू कश्मीर में केंद्र को मिली कथित असफलता को देखते हुए वहां जिन नए समीकरणों की जरूरत है, आजाद का कदम उसका ही एक प्रमुख हिस्सा है। सीधे शब्दों में कहा जाए कि आजाद का कदम कांग्रेस को नुकसान कम, भाजपा के लिए फायदेवाला अधिक होगा। असल में भाजपा को लंबे समय से लग रहा है कि जम्मू कश्मीर में सरकार बनाने के लिए घाटी में उसे एक साथी की जरूरत है। ऐसा साथी जो दिखने में तो भाजपा से अलग हो, लेकिन अंदर से उसके साथ हो। भाजपा के इस सपने को गुलाम नबी आजाद ही पूरा कर सकते हैं। और इसी दिशा में काम करते हुए भाजपा ने आजाद को पद्म सम्मान दिलाया था। पिछले साल भर में गुलाम नबी आजाद जम्मू कश्मीर में करीब 100 से ज्यादा रैलियां कर चुके हैं। ऐसे में साफ था कि वह यहां की राजनीति में एंट्री करने वाले हैं। आजाद की पार्टी कश्मीर में 10 या इससे ज्यादा सीटें जीतने में कामयाब होती है तो इससे भाजपा की मदद से सरकार भी बन सकती है।
कश्मीर के जानकार कहते हैं कि प्रदेश में विधानसभा चुनाव से पहले आजाद की पार्टी शायद भाजपा से किसी तरह का गठबंधन नहीं करे, लेकिन चुनाव के बाद ऐसा हो सकता है। यहां लोग नए विकल्प की तालाश में हैं ऐसे में पुराने नेता होने और कश्मीरियत की बात करने की वजह से आजाद की पार्टी को लाभ मिल सकता है। फरवरी 2022 के बाद गुलाम नबी आजाद लोकसभा और राज्यसभा किसी भी सदन के सदस्य नहीं हैं। उनके पास कोई दूसरा अहम पद भी नहीं है। इसके बावजूद लुटियंस में उनका बंगला खाली नहीं कराया गया, यह भाजपा की रणनीति का ही अंग था और अगस्त 2022 में ही उनके बंगले का एक्सटेंशन दे दिया गया। यही कारण रहा कि 29 अगस्त को गुलाम नबी आजाद ने एक सवाल के जवाब में कहा, मैं तो मोदी जी को क्रूर आदमी समझता था। मुझे लगता था कि उन्होंने शादी नहीं की है और उनके बच्चे नहीं हैं तो उन्हें कोई परवाह नहीं है, लेकिन कम से-कम इंसानियत तो उनमें है।
आखिर जिस कांग्रेस में उन्होंने अद्र्धशतक पूरा किया, जीवन के महत्वपूर्ण साल गुजारे, उसकी अचानक तीखी आलोचना और मोदी के लिए तारीफ के शब्द, इनके कुछ तो मायने होंगे। कांग्रेस ने हाल ही में उन्हें कश्मीर के लिए ही एक पद दिया था, पर उन्होंने तत्काल छोड़ दिया और फिर कांग्रेस से भी अलविदा कह दिया। यह सही है कि कांग्रेस नेतृत्व पहले इतना उदासीन और ढुलमुल रवैये वाला रहा। भाजपा ने हमेशा संगठन को सर्वोपरि रखा, संगठन पर ध्यान दिया, कांग्रेस में ऐसा नहीं हुआ। नेताओं के क्षेत्र बन गए, जातियों के हिसाब से उन्हें नवाजा गया, टिकटों की ठेकेदारी की प्रथा चली। और फिर राज्यों में भी नेताओं ने नेतृत्व को अनदेखा करना शुरू किया। मध्यप्रदेश जैसे राज्य के मामलों में कई बार नेतृत्व को मजबूर देखा गया। दूसरी तरफ भाजपा ने आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी जैसे नेताओं को हाशिए पर कर दिया, नए नेतृत्व को पूरा मौका दिया गया, कांग्रेस में ऐसा कुछ नहीं किया गया। कोई नेता पार्टी छोड़ रहा है, तो उससे संवाद की परंपरा भी नहीं रखी गई।
अब आजाद कांग्रेस से आजाद हैं, परंतु क्या भाजपा की मेहरबानी के बिना कश्मीर में आजाद रह पाएंगे? सीधी बात है यदि भाजपा के हिसाब से नहीं चलेंगे तो उनकी राजनीति शुरुआती दौर में ही खत्म हो सकती है। फिलहाल कांग्रेस का विरोध और मोदी की प्रशंसा ही उनका भविष्य है, बाद में क्या होगा, नहीं कहा जा सकता है। अभी तो उन्हें कश्मीर में एक सुनहरे भविष्य के रूप में कुर्सी दिखाई दे रही है, लेकिन यदि भाजपा की सरकार बनती है तो उन्हें मुख्यमंत्री बनाया जाएगा या बनने दिया जाएगा, ऐसा कतई नहीं लगता। हां, उनकी पार्टी के साथ मिलकर सरकार अवश्य बनाई जा सकती है। देखना होगा, भाजपा जम्मू कश्मीर को लेकर अपनी इस नई रणनीति पर कितना सफल होती है।
-संजय सक्सेना
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