देश में जल-जंगल-ज़मीन बचाने की बहस हुई तेज़, जनमानस उद्वेलित..बचेंगी अरावली पर्वतमाला? सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद दिल्ली से राजस्थान तक सड़कों पर उतरे लोग…

जिस तरह से मध्य प्रदेश के सिंगरौली और छत्तीसगढ़ के बस्तर या अंबिकापुर के कुछ जंगलों में सरकार के द्वारा विकास के नाम पर कटाई हो रही है और खनिज संपदा का दोहन हो रहा है, ऐसा ही मसला अब अरावली पर्वतमाला को लेकर देशभर में उठ खड़ा हुआ हैं। इंदौर के बगल का चोरल जंगल भी विकास की भेंट चढ़ने वाला हैं। ऐसे में अरावली पर्वतमाला पर आए संकट ने देश व और प्रदेशों में पर्यावरण को लेकर नई बहस छेड़ दी हैं। अच्छी बात ये है  कि इस मसले पर जनमानस भी इस बार उद्वेलित हो आंदोलन को राह पर सड़क पर उतर आया हैं। बस इंदौर और मालवा अंचल में ही इस मुद्दे पर सन्नाटा हैं, जो चिंताजनक हैं। क्योंकि मालवा-निमाड़ के जंगलों की कटाई, मालवा को भी मरुस्थल बना देगी। ऐसा ही ख़तरा देश की राजधानी दिल्ली पर भी मंडराया हैं।_*
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*नितिनमोहन शर्मा*

अरावली पर्वतमाला का विस्तार गुजरात से लेकर राजस्थान के उदयपुर जिले में है, जो दक्षिणी अरावली क्षेत्र का हिस्सा है और घनी व ऊँची पहाड़ियों के लिए जाना जाता है, जबकि इसका सबसे कम विस्तार अजमेर जिले में मिलता है। सुप्रीम कोर्ट के हाल के एक फैसले ने अरावली पहाड़ियों को लेकर पर्यावरणविदों और आम जनता के बीच बहस छेड़ दी है। इस फैसले को ‘100-मीटर का फैसला’ कहा जा रहा है, जिसमें यह साफ किया गया है कि अरावली इलाके में 100 मीटर से कम ऊंचाई वाली पहाड़ियों को अपने आप ‘जंगल’ के तौर पर क्लासिफाई नहीं किया जा सकता। सेव अरावली ट्रस्ट’ ने इस फैसले पर गंभीर चिंता जताई है। ट्रस्ट का कहना है कि हरियाणा में सिर्फ दो चोटियां ही 100 मीटर से ऊपर हैं – एक तोसाम (भिवानी जिला) और दूसरी मधोपुरा (महेंद्रगढ़ जिला)। बाकी क्षेत्र अब संरक्षण से बाहर हो सकता है।
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*पर्यावरणविदों को सताई चिंता*

पर्यावरण पर चिंता करने वालों का मानना है कि इससे पूरे इकोसिस्टम को खतरा है। अरावली थार मरुस्थल की धूल को रोकती है। भूजल रिचार्ज करती है और जैव विविधता बनाए रखती है। अगर संरक्षण कमजोर हुआ, तो धूल और प्रदूषण बढ़ेगा। दिल्ली में पहले से ही ये समस्या गंभीर है। भूजल स्तर गिरेगा, बोरवेल सूखेंगे। गर्मी अधिक तेज होगी। सांस संबंधी समस्याओं का इज़ाफ़ा होगा। लोगों का पलायन हो सकता है। उद्योगपतियों को फायदा होगा। खनन और निर्माण आसान हो जाएगा।
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*अरावली पर्वतमाला न होगी तो दिल्ली क्षेत्र रेगिस्तान हो जाएगा*

पर्यावरण विशेषज्ञों का मानना है कि अरावली पर्वतमाला का महत्व उनकी ऊंचाई में नहीं, बल्कि उनके कार्यों में है। ये पर्वतमालाएं एक प्राकृतिक जल संग्रहण प्रणाली की तरह काम करती हैं, जहां इनकी पथरीली संरचना वर्षा के पानी को धीरे-धीरे भूमिगत रिसने देती है और जलभंडारों को भर देती है। ये जलभंडार राजस्थान के कई कस्बों और दिल्ली, गुरुग्राम, फरीदाबाद और अलवर जैसे बड़े शहरों को पानी की आपूर्ति करते हैं। अध्ययनों से यह भी पता चलता है कि बड़े पैमाने पर खनन और पर्वतमाला की कटाई से यह प्रक्रिया बाधित होती है, जिससे भूजल का दीर्घकालिक नुकसान होता है।अरावली पर्वतमाला थार रेगिस्तान के पूर्वी भारत की ओर फैलने की गति को धीमा करने में भी सहायक हैं। वैज्ञानिकों का मानना है कि यदि पर्वतमाला को नुकसान पहुंचाना जारी रहा, तो दिल्ली व उसके आसपास मरुस्थलीकरण बढ़ सकता है।
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*विवाद की वजह क्या है?*

नवंबर में, सुप्रीम कोर्ट ने अरावली पहाड़ियों की आधिकारिक पहचान के संबंध में केंद्र सरकार के एक प्रस्ताव से सहमति जताई। कोर्ट ने कहा कि नियामक उद्देश्यों के लिए, केवल वे पहाड़ियां जो आसपास की भूमि से कम से कम 100 मीटर ऊपर उठती हैं, या एक-दूसरे के निकट स्थित ऐसी पहाड़ियों के समूह, अरावली पर्वतमाला का हिस्सा माने जाएंगे। अदालत ने केंद्र सरकार को क्षेत्र का सावधानीपूर्वक मानचित्रण करने और इसके प्रबंधन के लिए एक स्पष्ट योजना तैयार करने का भी निर्देश दिया। इस योजना में यह नियम शामिल होंगे कि खनन कहाँ किया जाना है।
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*अरावली को लेकर भृम- केंद्रीय मंत्री यादव*

केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव ने अरावली क्षेत्र में 100 मीटर की सुरक्षा सीमा को लेकर फैले भ्रम को दूर किया है। उन्होंने स्पष्ट किया कि यह सुरक्षा सीमा पहाड़ी के निचले आधार से मानी जाएगी, न कि पहाड़ी के ऊपर से। इस क्षेत्र में किसी भी तरह की खुदाई या गतिविधि की अनुमति नहीं होगी। यह कदम सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के तहत उठाया गया है, जिसका उद्देश्य अरावली क्षेत्र में खनन पर सख्त और स्पष्ट नियम लागू करना है। भूपेंद्र यादव ने बताया कि अरावली को लेकर कानूनी प्रक्रिया कोई नई नहीं है। 1985 से इस मामले में याचिकाएं चल रही हैं। इन याचिकाओं का मुख्य मकसद अरावली क्षेत्र में खनन के लिए कड़े और साफ नियम बनाना था।

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