जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में मंगलवार दोपहर हुए आतंकवादी हमले में 27 लोगों की मौत हो गई। इस हमले में 20 से ज्यादा लोग घायल बताए जा रहे हैं। हमले की जिम्मेदारी लश्कर-ए-तैयबा के विंग द रजिस्टेंस फ्रंट यानी टीआरएफ ने ली है। फायरिंग के बाद आतंकी भाग निकले। इंटेलिजेंस सूत्रों ने बताया कि पहलगाम अटैक में दो फॉरेन टेररिस्ट और दो लोकल आतंकी शामिल थे। इस बीच, उरी में घुसपैठ की कोशिश कर रहे 2 आतंकवादियों को सेना ने मार गिराया है।
मीडिया रिपोर्ट्स में कहा जा रहा है कि पर्यटकों को गोली मारने से पहले आतंकियों ने उनके नाम पूछे और कलमा भी पढ़वाया। अटैक के बाद देश के अन्य शहरों में हाई अलर्ट जारी किया गया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सऊदी अरब का दो दिन दौरा छोड़ बुधवार सुबह भारत लौट आए हैं। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, एलजी सिन्हा और मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला श्रीनगर पहुंच गए हैं। नेता विपक्ष राहुल गांधी ने भी शाह से फोन पर बातचीत की है। अमेरिका, ईरान, रूस, इटली, यूएई सहित अन्य देशों ने पहलगाम हमले की निंदा की है।
देखा जाए तो कश्मीर के मशहूर टूरिस्ट डेस्टिनेशन यानि पर्यटन स्थल पहलगाम, जिसे मिनी स्विटजरलैंड भी कहा जाता है, वहांं आतंकी हमले के लिए जो टाइमिंग चुनी गई है, वह बहुत ही महत्वपूर्ण है। जम्मू और कश्मीर से आर्टिकल 370 हटने के बाद यह सबसे बड़ा आतंकी हमला है। पहलगाम में आम लोगों के नरसंहार की यह घटना 25 साल पहले छत्तीसिंहपुरा नरसंहार की याद ताजा कर रही है। जम्मू और कश्मीर में 2024 के आखिर में ही वर्षों के अंतराल के बाद एक लोकतांत्रिक सरकार बनी है। ऐसे समय में यह हमला और ज्यादा चिंताजनक है।
इसी समय अमेरिकी उपराष्ट्रपति जेडी वेंस भारत यात्रा पर आए हुए हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की नीतियां अक्सर पाकिस्तान को परेशान करती रही हैं। उनके कार्यकाल में भारत-अमेरिकी दोस्ती में नई मजबूती देखने को मिली है। आतंकवाद को लेकर अमेरिका की मौजूदा सरकार का रुख हमेशा से सख्त रहा है। ऐसे में इस हमले से कहीं न कहीं अमेरिका को भी संदेश देने की कोशिश की गई है कि कश्मीर अभी भी शांत नहीं हुआ है। करीब 25 साल पहले 21 मार्च 2000 को भी पाकिस्तानी आतंकियों ने छत्तीससिंहपुरा में इसी तरह से 36 सिखों का नरसंहार कर दिया था। यह हमला तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन के भारत दौरे से ठीक पहले किया गया था। उनकी तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के साथ बातचीत होने वाली थी। जांचकर्ताओं ने उस वारदात के लिए भी लश्कर-ए-तैयबा को ही जिम्मेदार माना था।
एक बात और गौर करने लायक है। पिछले हफ्ते ही पाकिस्तानी सेना प्रमुख असीम मुनीर ने कश्मीर को लेकर बहुत ही भडक़ाऊ टिप्पणियां की हैं। उनके बयान कहीं न कहीं आतंकवादियों के लिए एक संदेश का काम किया है कि जम्मू-कश्मीर को रक्तरंजित करने के लिए यही उचित समय है। आम नागरिकों को निशाना बनाना इन आतंकियों के लिए बेहद आसान रहता है, क्योंकि साधारण से हथियारों का इस्तेमाल करके ये बड़े नरसंहारों को अंजाम दे देते हैं, जिसकी जांच भी आसान नहीं होती। इसके ठीक उलट ऐसी घटनाओं की दहशत बहुत ज्यादा होती है और पूरी दुनिया तक संदेश पहुंचाया जा सकता है कि कश्मीर में अब भी कुछ नहीं बदला है।
असल में जम्मू और कश्मीर में देशी-विदेशी सैलानियों की तादाद पिछले वर्षों में लगातार बढ़ रही है। सडक़, रेल और हवाई यातायात के माध्यमों ये यह केंद्र शासित प्रदेश पूरे देश से जुड़ चुका है और लगातार जुड़ता जा रहा है। जिस कश्मीर को आर्टिकल 370 खत्म होने से पहले डर की भावना से देखा जाता था, वह अब पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र बन चुका है।
ऐसे में कथित रूप से पाकिस्तान समर्थित आतंकियों ने पर्यटकों को निशाना बनाकर उनके मन में फिर से खौफ पैदा करने की कोशिश की है और वह भी ठीक सालाना सीजन की शुरुआत में। यही नहीं, आने वाले महीनों में पवित्र अमरनाथ यात्रा भी शुरू होनी है और उससे पहले माहौल बिगाडऩे की भी यह बड़ी कोशिश कही जा सकती है। इसके बाद भी, आतंकवादियों के खिलाफ मुहिम थमने वाली नहीं है, उलटे और तेज होगी। देखा जाए तो उनके साथ कश्मीर के लोग भी नहीं हैं।
Editorial:
पहलगाम में आतंकवादी हमला
