IAS Story : घरवाले बनाना चाहते थे डॉक्टर, पर किस्मत ने पलटी बाजी और 22 साल में IAS बन गईं सुलोचना मीणा

IAS story: सुलोचना मीणा ने मात्र 22 वर्ष कि उम्र में IAS बनकर अपने इलाके में नया कीर्तिमान रच दिया. वह अपने इलाके में IAS बनने वाली पहली महिला हैन. लोकल 18 को एक इंटरव्यू में बताया कि उनके पिता और मां उन्हें डॉक्टर बनाना चाहते थे, लेकिन उन्होंने प्रशासनिक सेवा में जाने का फैसला करके अपने सपनों के साथ पिता की उम्मीदों को भी एक नई दिशा दी.

राजस्थान के सवाई माधोपुर जिले के आदलवाड़ा गांव की रहने वाली सुलोचना मीणा एक साधारण परिवार की असाधारण बेटी हैं. साल 2021 में उन्होंने यूपीएससी की परीक्षा में हिस्सा लिया, तब उनकी उम्र मात्र 22 वर्ष थी. 2022 में जारी हुए परिणाम में उन्होंने ऑल इंडिया रैंक 415 हासिल की और एसटी श्रेणी में छठा स्थान प्राप्त किया. कम उम्र में सफलता हासिल करके वे उन युवा उम्मीदवारों की सूची में शामिल हुईं, जिन्होंने कठिन परीक्षा को पहली प्रयास में ही शानदार सफलता के साथ उत्तीर्ण किया. वहीं वर्तमान में वो पलामू में कार्यरत है.

सुलोचना मीणा ने एक इंटरव्यू में बताया कि उनके पिता और मां उन्हें डॉक्टर बनाना चाहते थे, लेकिन उन्होंने प्रशासनिक सेवा में जाने का फैसला करके अपने सपनों के साथ पिता की उम्मीदों को भी एक नई दिशा दी. आज वे न सिर्फ परिवार का गर्व हैं, बल्कि गांव की उन सभी बेटियों की प्रेरणा बन चुकी हैं, जो अब बड़े सपने देखने लगी हैं. उनकी सफलता ने यह साबित कर दिया है कि अगर संकल्प मजबूत हो और दिशा सही हो, तो किसी भी मंज़िल को पाना असंभव नहीं. सुलोचना आज हर उस बेटी की उम्मीद बन चुकी हैं, जो आसमान छूना चाहती है.

सुलोचना बताती हैं कि उन्होंने बचपन में सुना था कि आईएएस ‘जिले का बॉस’ होता है. बस वहीं से उनके सपनों ने उड़ान भरनी शुरू कर दी. अपने सपने को सच करने के लिए उन्होंने 12वीं के बाद दिल्ली यूनिवर्सिटी में बीएससी बॉटनी में दाखिला लिया. पढ़ाई के साथ-साथ वे कॉलेज में एनएसएस (नेशनल सर्विस स्कीम) की सक्रिय सदस्य रहीं. समाज सेवा के इन अनुभवों ने उनमें जिम्मेदारी और नेतृत्व के गुणों को और मजबूत किया, जिसने आगे चलकर प्रशासनिक सेवा में कदम रखते समय बहुत मदद की.

सुलोचना सिर्फ अपने परिवार की ही नहीं, बल्कि अपने गांव की भी पहली बेटी हैं जो आईएएस अधिकारी बनीं. जिले में महिला वर्ग से इतनी कम उम्र में चयनित होने वाली वे पहली अभ्यर्थी हैं. उनकी सफलता ने पूरे गांव का माहौल बदल दिया है. जहां पहले बेटियों को छोटे सपनों तक सीमित किया जाता था, वहीं अब लड़कियां यूपीएससी की तैयारी का सपना देखने लगी हैं. कई परिवार अपनी बेटियों को दिल्ली या जयपुर भेजकर उनकी पढ़ाई को आगे बढ़ा रहे है. सुलोचना का यह सफर आज गांव क नई पीढ़ी के लिए प्रेरणा बन गया है.

Exit mobile version