संपादकीय
बढ़ते मतदान प्रतिशत के मायने..

संजय सक्सेना
बिहार विधानसभा चुनाव के पहले चरण में मतदाताओं ने कथित तौर पर जबरदस्त जोश दिखाते हुए 60.13 प्रतिशत मतदान किया। दावा किया जा रहा है कि  मतदान में जनता की भागीदारी अधिक होने का मतलब यह है कि लोकतंत्र जीवंत है। इसका अर्थ यह भी है कि लोग राजनीति से उदासीन नहीं हैं। डेमोक्रेसी में ऐसा ही होना भी चाहिए।
पहले बात करते हैं वोटिंग की। पहले चरण में 121 सीटों के लिए वोटिंग हुई है। महागठबंधन के सीएम पद के उम्मीदवार तेजस्वी यादव, डिप्टी सीएम विजय कुमार सिन्हा, सम्राट चौधरी समेत कई बड़े नामों की किस्मत दांव पर लगी है इस चरण में। गुरुवार की वोटिंग अभिनेता से नेता बनने का सपना देख रहे खेसारी लाल यादव और मैथिली ठाकुर जैसे उम्मीदवारों की जीत-हार तय करेगी, तो यह लड़ाई अनंत सिंह जैसे बाहुबलियों की भी है।
इस चुनाव में एक नई बात यह है कि बिहार में दो दशकों से सत्तासीन नीतीश कुमार या उनकी जगह कोई और, यह सवाल इतनी मजबूती के साथ कभी नहीं पूछा गया, जितना इस बार उठ रहा है या उठाया जा रहा है। जनता जो निर्णय लेगी, वह राज्य की सामाजिक-राजनीतिक दिशा तय करेगा। इसे सकारात्मक ही माना जा रहा है कि बिहार के लोगों ने इस बात को समझा और 2020 की तुलना में 8.3 प्रतिशत ज्यादा वोटिंग की।
सामान्य तौर पर ज्यादा मतदान को बदलाव का संकेत माना जाता है। यह बात और है कि मतदान के बढ़े प्रतिशत के साथ ही बिहार में विपक्ष की तरफ से आरोपों की झड़ी लगा दी गई। कई खबरें भी मतदान के दौरान जिस तरह की आईं, या अभी तक आ रही हैं, उन्हे देखते हुए इस आंकड़े से एकदम से किसी  निष्कर्ष पर पहुंचना उचित नहीं होगा। यहां कई फैक्टर हैं। हां, इतना जरूर है कि पिछला विधानसभा चुनाव कोविड की छाया के बीच हुआ था, तो वोटिंग पर उसका असर पड़ा हो सकता है। लेकिन, इस बार भी एसआईआर में पक्षपात और वोट चोरी जैसे विवाद थे।
विपक्ष की ओर से चुनाव आयोग पर कई गंभीर आरोप लगाए गए हैं। वोटिंग के एक दिन पहले ही कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने नए आरोप लगाए। फिर एसआईआर का मुद्दा रहा, जिसकी अंतिम सूची में इंटेंसिव रिवीजन के पहले के मुकाबले करीब 47 लाख कम वोटर हैं। इसके बावजूद जब मतदान का प्रतिशत बढ़ता है, तो दो ही कारण हो सकते हैं। एक कारण सरकार के खिलाफ बढ़ता जनमत और दूसरा, कारण कहीं न कहीं सत्तापक्ष और दबंगों की तरफ उंगली उठाता दिखता है।
कई स्थानों से खबरें आईं कि लोगों का वोट होते हुए वोट नहीं डालने दिया गया, तो कई जगह लोगों को एक तरह से घरों में कैद करने की सूचनाएं भी आती रहीं। वोट काटे जाने की खबरें भी मतदान के दौरान बहुत बड़ी संख्या में आईं। ये ऐसे तथ्य हैं, जो चुनाव को सीधे प्रभावित करते हैं। वर्तमान समय में सत्तापक्ष में जो भी बैठता है, वो चुनाव और खासकर मतदान के दौरान प्रशासन का साथ तो लेता ही है। हम कुछ भी कहें, प्रशासन चुनाव के दौरान एकदम निष्पक्ष नहीं दिखाई देता, यह बात और है कि इस तरह की या इससे जुड़े समाचार गायब कर दिये जाते हैं।
कहने को पिछले विवादों को देखते हुए चुनाव आयोग ने इस बार रियल टाइम डेटा उपलब्ध कराने की तैयारी की है, बाद में वोटिंग पर्सेंटेज पर अंगुली न उठे। यह पहल इस मायने में अच्छी है कि चुनावी प्रक्रिया जितनी पारदर्शी, सरल और तेज हो, उतना ही बेहतर। लेकिन सवाल तो उठाये ही जा रहे हैं कि चुनाव आयोग पूरी तरह निष्पक्ष नहीं रहा है। यूट्यूब और सोशल मीडिया पर तमाम तरह की खबरें भरी पड़ी हैं।
एक अच्छी बात यह रही कि चुनाव प्रचार के दौरान जिस तरह की ङ्क्षहसा की आशंका व्यक्त की जा रही थी, मतदान के दौरान ऐसा नहीं हुआ। हालांकि अभी दूसरा चरण बाकी है, देखना होगा कि इस बार मतदान का प्रतिशत कैसा रहता है, और नतीजों पर यह बढ़ा हुआ प्रतिशत कैसा प्रभाव डालता है?

Sanjay Saxena

BSc. बायोलॉजी और समाजशास्त्र से एमए, 1985 से पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय , मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल के दैनिक अखबारों में रिपोर्टर और संपादक के रूप में कार्य कर रहे हैं। आरटीआई, पर्यावरण, आर्थिक सामाजिक, स्वास्थ्य, योग, जैसे विषयों पर लेखन। राजनीतिक समाचार और राजनीतिक विश्लेषण , समीक्षा, चुनाव विश्लेषण, पॉलिटिकल कंसल्टेंसी में विशेषज्ञता। समाज सेवा में रुचि। लोकहित की महत्वपूर्ण जानकारी जुटाना और उस जानकारी को समाचार के रूप प्रस्तुत करना। वर्तमान में डिजिटल और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से जुड़े। राजनीतिक सूचनाओं में रुचि और संदर्भ रखने के सतत प्रयास।

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