Editorial
दुर्घटना नहीं, व्यवस्थाओं का आइना है


पुणे देश की सांस्कृतिक राजधानी कही जाती है और वर्तमान में युवाओं के लिए रोजगार का बहुत बड़ा हब भी है, वहां हाल ही में एक लग्जरी कार से हुई सडक़ दुर्घटना का जो मामला सामने आया, वह पुणे के लिए तो बदनुमा दाग है ही, हमारे शहरी जीवन और व्यवस्था से जुड़ी दुर्भाग्यपूर्ण विसंगतियां भी उजागर करता है। आरोपी को जिस तरह से अदालत ने बचाने का प्रयास किया, वह हमारी न्याय व्यवस्था की खामी को उजागर करने के लिए काफी है। वो तो गनीमत है कि मीडिया में हुए शोरगुल और कुछ बड़े नेताओं के विरोध के बाद, केस को पटरी पर लाने के प्रयास शुरू हुए, नहीं तो यह मामला कानून व्यवस्था पर भी एक बड़ा दाग छोडक़र जाता।
घटना से जुड़ी शुरुआती सूचनाएं इस बात की ओर ध्यान खींचती हैं कि कैसे हमारे समाज का एक तबका नियम-कानून को अपनी जेब में लिए चलता है। मामले का मुख्य आरोपी एक नाबालिग है, जो पुणे के एक जाने-माने बिल्डर का बेटा है। अमीर पिता ने यह महंगी गाड़ी अपने नाबालिग बेटे के हवाले कर दी थी। इस साल मार्च में खरीदी गई इस गाड़ी पर लाइसेंस नंबर तक नहीं था क्योंकि रोड टैक्स के 44 लाख रुपये नहीं दिए गए थे। गाड़ी चला रहे नाबालिग लडक़े के पास कोई ड्राइविंग लाइसेंस भी नहीं था।
यही नहीं, मिली सूचनाओं के मुताबिक दुर्घटना से पहले यह लडक़ा एक नहीं दो अलग-अलग बार में जाकर शराब पीता है। ध्यान रहे कि महाराष्ट्र में शराब पीने की न्यूनतम उम्र 25 साल है, लेकिन बार में कोई भी यह पता करने की जरूरत नहीं समझता कि शराब मांगते इस लडक़े की उम्र शराब पीने की हुई है या नहीं।
गौर करने वाली बात यह कि शराब पीकर गाड़ी चलाने और दुर्घटना में दो लोगों की मौत से जुड़े इस मामले में आरोपी को जमानत मिलने में भी कोई दिक्कत नहीं हुई। पुलिस ने जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड के सामने आवेदन दिया था कि उसे इस मामले में आरोपी के साथ वयस्क की तरह व्यवहार करने की इजाजत दी जाए। लेकिन इस आवेदन को अलग रखकर बोर्ड ने आरोपी को जमानत दे दी। उसे हादसे पर एक निबंध लिखने और 15 दिनों तक यातायात पुलिस की मदद करने को कहा गया।
स्वाभाविक ही इस पूरे घटनाक्रम के सामने आने के बाद इस पर कड़ी प्रतिक्रियाएं आने लगीं। इन्हें संज्ञान में लेते हुए महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फड़णवीस ने भी माना कि बोर्ड का रुख घटना की गंभीरता के अनुरूप नहीं है। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने तो बाकायदा एक्स पर पोस्ट कर दिया कि कानून अमीरों और गरीबों के बीच फर्क कर रहा है। इसके बाद पुलिस ने इस मामले में ऊपरी अदालत का रुख किया है। इस बीच बिल्डर पिता समेत कई और लोगों को गिरफ्तार किया गया है।
इस दुर्घटना में दो युवा इंजीनियरों की मौत हुई, जो मध्यप्रदेश के रहने वाले थे। लेकिन हमारे प्रदेश में इस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई, यह सोचने वाली नहीं, शर्म करने वाली बात है। यह सामान्य दुर्घटना कतई नहीं थी। यह एक अमीरजादे के शौक का घिनौना स्वरूप था। इसे ईश्वर की मर्जी कहकर टालने से काम नहीं चलेगा, इसमें लोगों को हमारी कानून व्यवस्था और समाज में जो अमीरों की मनमर्जियां चल रही हैं, उसके खिलाफ आवाज उठानी होगी। हम अपनी मजबूरियों में उलझ कर यदि इन्हें माफ करते रहेंगे, जैसा कि होता आया है, तो ऐसा ही आगे भी होता रहेगा। वो अपराध करते रहेंगे और हम ईश्वर की मर्जी कहकर अपनी जिम्मेदारी से बचकर अंधेरी खाई में गुम हो जाएंगे।
यहां मामला केवल एक पुणे के अमीरजादे की और उसके परिजनों की घोर लापरवाही का नहीं है। हमारी सामाजिक व्यवस्था पर भी सवाल खड़े करता है। बात सिर्फ कुछ गिरफ्तारियों की नहीं है। बड़ा सवाल यह है कि क्या वाकई हमारे सरकारी तंत्र का निचला हिस्सा लुंजपुंज और अप्रभावी होता जा रहा है। आखिर कैसे समाज का एक प्रभावशाली और ताकतवर हिस्सा उससे इस कदर बेपरवाह हो सकता है कि नियम-कानूनों की न्यूनतम चिंता करना भी उसे गैरजरूरी लगने लगे। इस मामले में सभी दोषियों के खिलाफ उपयुक्त कार्रवाई सुनिश्चित करना जितना जरूरी है उतना ही अहम है यह संदेश देना कि कानून सभी देशवासियों के लिए समान हैं। वैसे सब जानते हैं कि हमारे देश में कानून की हालत क्या है? वो तो वर्तमान प्रधान न्यायाधीश ने कुछ नजीरें पेश नहीं की होतीं, तो अदालतों को लेकर हमारी मानसिकता बिल्कुल भी नहीं बदलती।
और यदि हम समाज की बात करें तो, आज का समाज जातिवादी भी है और अमीर-गरीब के बीच स्पष्ट तौर पर बंटता चला जा रहा है। पूरी दुनिया के साथ ही हमारे देश में भी अमीरों और गरीबों के बीच खाई बढ़ती जा रही है। हम कुछ मुट्ठी भर अमीरों के साथ करोड़ों की संख्या वाले गरीबों को मिलाकर औसत आय घोषित करके खुश हो रहे हैं। लेकिन जो आय का अंतर है, वो पुणे की घटना से साबित कर दिया है। यह एक सडक़ दुर्घटना नहीं है, हमारी कानून  व्यवस्था की असलियत का आइना और एक वर्ग का समाज पर बढ़ते प्रभुत्व का प्रमाण है। हमारी आज की असलियत यही है।
– संजय सक्सेना

Sanjay Saxena

BSc. बायोलॉजी और समाजशास्त्र से एमए, 1985 से पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय , मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल के दैनिक अखबारों में रिपोर्टर और संपादक के रूप में कार्य कर रहे हैं। आरटीआई, पर्यावरण, आर्थिक सामाजिक, स्वास्थ्य, योग, जैसे विषयों पर लेखन। राजनीतिक समाचार और राजनीतिक विश्लेषण , समीक्षा, चुनाव विश्लेषण, पॉलिटिकल कंसल्टेंसी में विशेषज्ञता। समाज सेवा में रुचि। लोकहित की महत्वपूर्ण जानकारी जुटाना और उस जानकारी को समाचार के रूप प्रस्तुत करना। वर्तमान में डिजिटल और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से जुड़े। राजनीतिक सूचनाओं में रुचि और संदर्भ रखने के सतत प्रयास।

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