Editorial:
भारत के लिए सुनहरा मौका…!

डोनॉल्ड ट्रंप ने तीन बार राष्ट्रपति पद का चुनाव लड़ा, तीनों ही चुनावों में उन्होंने टैरिफ का मुद्दा उठाया। पहले कार्यकाल में उन्होंने चीन के खिलाफ ट्रेड वॉर शुरू की। दूसरे कार्यकाल में उन्होंने रेसिप्रोकल टैरिफ के साथ समूची दुनिया के साथ व्यापार युद्धशुरू कर दिया है। अभी कोई बड़ा दावा तो नहीं किया जा सकता, लेकिन भारत जैसे देश के लिए एक सुनहरा अवसर अवश्य मिला है, यदि हम अपने तौर तरीके और श्रम कानूनों सहित तमाम प्रावधानों को सही तरीके से लागू कर सकें और अपनी मानसिकता को बदल सकें।
चीन पर दूसरे कार्यकाल में ट्रंप 54 प्रतिशत का टैरिफ लगा चुके हैं। पहले कार्यकाल में ट्रंप ने चाइनीज इंडस्ट्रियल गुड्स पर 25 प्रतिशत और कुछ कंस्यूमर गुड्स पर 7.5 प्रतिशत का टैरिफ लगाया था, जिसे जो बाइडन ने जस का तस रहने दिया। कुछ अनुमानों के मुताबिक, चीन पर अमेरिका का कुल टैरिफ अब 60 प्रतिशत हो गया है। यही हाल वियतनाम, थाइलैंड, इंडोनेशिया और बांग्लादेश जैसे देशों का है। इन सभी देशों पर भारत की तुलना में अधिक टैरिफ लगा है। बांग्लादेश पर उन्होंने 37 प्रतिशत का टैरिफ लगाया है और, जो पाकिस्तान एक के बाद एक आर्थिक संकट में फंसता रहता है, उस पर भी ट्रंप ने 29 प्रतिशत का आयात शुल्क लगा दिया है।
इतने भारी-भरकम टैरिफ के बाद चीन के लिए अमेरिकी बाजार में प्रतिस्पर्धी बने रहना मुश्किल होगा उसके हाथ से बहुत पहले ही सस्ते श्रम का लाभ निकल चुका है। फिर कोरोना महामारी के बाद पश्चिमी देशों को लगा कि चीन केंद्रित सप्लाई चेन व्यवस्था उनके लिए जोखिम भरी हो सकती है, तो थाइलैंड और वियतनाम जैसे देशों में पश्चिमी कंपनियों ने अपनी यूनिटें लगाई। चीन की कंपनियों ने भी ट्रंप के पहले ट्रेड वॉर से बचने के लिए यही रास्ता अपनाया।
वियतनाम पर 46 प्रतिशत और थाइलैंड पर 36 प्रतिशत का आयात शुल्क अमेरिका ने लगाया है, जबकि भारत के लिए यह 26 प्रतिशत है। इसलिए अगर भारत सरकार सही नीतियां अपनाती है और जरूरी रिफॉर्म्स करती है तो मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर की ग्रोथ तेज करने में कामयाबी मिल सकती है।
भारत के लिए अच्छी बात यह है कि टेक्सटाइल इंडस्ट्री में उसके पास विश्वस्तरीय कंपनियां हैं। उसकी इन देशों से मुकाबला करने की क्षमता सिर्फ लागत के स्तर पर प्रभावित हो रही थी। अब जबकि इन देशों पर अमेरिका ने भारत की तुलना में अधिक टैरिफ लगाया है तो भारतीय कंपनियों के पास प्राइसिंग को लेकर उनसे मुकाबला करने की क्षमता लौट आएगी। लेदर गुड्स पर भी यह बात लागू होती है, जिसमें वियतनाम बड़े पैमाने पर अमेरिका को निर्यात करता है इसलिए इस उद्योग में भी भारत अमेरिकी बाजार में उसका मुकाबला कर सकता है।
लेकिन यह भी सच है कि हाथ पर हाथ रखकर बैठने से कुछ नहीं होगा। कहा जाता है कि उद्योगों की ग्रोथ में सख्त श्रम कानून बाधा बने हुए हैं। अगर सरकार श्रम सुधार करती है तो टेक्सटाइल और लेदर गुड्स जैसी कंपनियों की प्रतिस्पर्धी क्षमता बेहतर होगी। वे जरूरत पडऩे पर अधिक लोगों को काम पर रख पाएंगी और जब काम कम हो तो उस हिसाब से वर्कफोर्स को भी सम्हाल पाएंगी। इसके साथ सरकार को चाइना प्लस वन का फायदा उठाने के लिए दूसरे सुधार भी करने होंगे ताकि अगर कोई कंपनी नया प्लांट लगाना चाहती है तो उसे जमीन सहित दूसरी सुविधाएं जल्द और बगैर परेशानी के मिलें।
कारों का टैरिफ भी अमेरिका को महंगा पडऩे वाला है। इससे चीन, भारत, मैक्सिको और इंडोनेशिया जैसे स्वाभाविक रूप से कम श्रम-लागत वाले देश बहुत कम कीमतों पर कारों का उत्पादन करने में सक्षम होंगे। लेकिन चीन और भारत में एक बड़ा अंतर यह भी है कि चीन कच्चा माल आयात करके भी भारत से सस्ता माल बनाने में माहिर है। भारत में उद्योगों के लिए कर्ज लिया जाता है और उसका भी लोग व्यक्तिगत हितों में उपयोग कर लेते हैं। लोन मिलते ही सबसे पहले तो उद्योग या कारोबार के बजाय अपने और परिवार के भोग विलास में बहुत सारी राशि खर्च कर दी जाती है। इसके अलावा उत्पादन लागत कम करने के उपाय भी नहीं किये जाते। कुल मिलाकर बहुत सारी जो कमियां हमारे औद्योगिक और कारोबारी जगत में हैं, यदि हम समय रहते उन्हें दूर कर पाए तो यही ट्रेड वार हमारे लिये वरदान साबित हो सकता है।

Sanjay Saxena

BSc. बायोलॉजी और समाजशास्त्र से एमए, 1985 से पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय , मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल के दैनिक अखबारों में रिपोर्टर और संपादक के रूप में कार्य कर रहे हैं। आरटीआई, पर्यावरण, आर्थिक सामाजिक, स्वास्थ्य, योग, जैसे विषयों पर लेखन। राजनीतिक समाचार और राजनीतिक विश्लेषण , समीक्षा, चुनाव विश्लेषण, पॉलिटिकल कंसल्टेंसी में विशेषज्ञता। समाज सेवा में रुचि। लोकहित की महत्वपूर्ण जानकारी जुटाना और उस जानकारी को समाचार के रूप प्रस्तुत करना। वर्तमान में डिजिटल और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से जुड़े। राजनीतिक सूचनाओं में रुचि और संदर्भ रखने के सतत प्रयास।

Related Articles