संपादकीय
जल संकट: हालात चिंताजनक.. नजरअंदाज न करें

विश्व बैंक के कुछ आँकड़े देखें। 163 मिलियन भारतीयों की सुरक्षित पेयजल तक पहुँच नहीं है। 210 मिलियन भारतीयों की बेहतर स्वच्छता तक पहुँच नहीं है। 21 प्रतिशत संचारी रोग असुरक्षित जल से संबद्ध हैं, और भारत में हर दिन पाँच वर्ष से कम आयु के 500 बच्चे डायरिया से मर जाते हैं।
अब एक नजर नीति आयोग की रिपोर्ट पर। इसमें अनुमान लगाया गया है कि वर्ष 2030 तक देश की जल की मांग उपलब्ध आपूर्ति से दोगुनी हो जाएगी, जिससे लाखों लोगों के लिये जल की गंभीर कमी उत्पन्न होगी और अंतत: देश की जीडीपी को नुकसान होगा। एक नई रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2041-2080 के दौरान भारत में भूजल की कमी की दर ‘ग्लोबल वार्मिंग’ के साथ वर्तमान दर से तीन गुना अधिक होगी। विभिन्न जलवायु परिवर्तन परिदृश्यों में, शोधकर्ताओं ने पाया है कि वर्ष 2041 से 2080 तक भूजल स्तर में गिरावट का उनका अनुमान वर्तमान गिरावट दर का औसतन 3.26 गुना होगा।
आशय यह है कि गर्मी का मौसम दस्तक ही नहीं दे चुका, देश के अनेक अंचलों में अपनी भीषणता भी दिखाने लगा है। और इसके साथ ही जल संकट की आहट भी तेज होती जा रही है। गर्मी के मौसम से पहले भारत के 150 प्रमुख जलाशयों में भंडारण क्षमता उनकी कुल क्षमता का केवल 38 प्रतिशत है, जो पिछले दशक की इसी अवधि के औसत से कम है। आधिकारिक आंकड़ों से यह जानकारी मिली है। पिछले कई दिनों से देश की सिलिकान वैली बेंगलुरू जल संकट को लेकर सुर्खियों में है, जहां लोग पानी की किल्लत के चलते शहर छोडऩे को मजबूर हो रहे हैं। बेंगलुरु जैसे शहर पहले से ही दस लाख लीटर प्रतिदिन की मांग के मुकाबले लगभग 500 एमएलडी पानी की कमी से जूझ रहे हैं।
केंद्रीय जल आयोग के साप्ताहिक बुलेटिन के अनुसार, अन्य राज्यों में से कर्नाटक में पिछले साल की समान अवधि की तुलना में जल भंडारण के स्तर में कमी दर्ज की गई। हिमाचल प्रदेश, पंजाब, मध्य प्रदेश, त्रिपुरा, राजस्थान, बिहार, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, गुजरात, छत्तीसगढ़, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना (दोनों राज्यों में दो संयुक्त परियोजनाएं) और तमिलनाडु सहित कई अन्य राज्यों ने भी पिछले वर्ष की तुलना में कम भंडारण स्तर की सूचना दी है। आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, इन 150 जलाशयों की कुल भंडारण क्षमता 178.784 अरब घन मीटर (बीसीएम) है, जो देश की कुल अनुमानित भंडारण क्षमता 257.812 बीसीएम का लगभग 69.35 प्रतिशत है। बृहस्पतिवार को जारी जलाशय भंडारण बुलेटिन के अनुसार, इन जलाशयों में उपलब्ध भंडारण 67.591 बीसीएम है, जो उनकी कुल भंडारण क्षमता का 38 प्रतिशत है।
मीठे जल यानि पीने के पानी की बात करें तो विश्व की 17 प्रतिशत आबादी होने के बावजूद भारत के पास विश्व के मीठे जल संसाधनों का केवल 4 प्रतिशत मौजूद है। जनसंख्या में लगातार वृद्धि हो रही है और इससे इसकी विशाल आबादी की जल आवश्यकताओं को पूरा करना चुनौतीपूर्ण हो गया है।
नीति आयोग द्वारा जून 2018 में प्रकाशित ‘समग्र जल प्रबंधन सूचकांक’  शीर्षक रिपोर्ट में उल्लेख किया गया कि भारत अपने इतिहास में सबसे गंभीर जल संकट का सामना कर रहा है। इसके लगभग 600 मिलियन लोग चरम जल तनाव का सामना कर रहे हैं; और सुरक्षित जल की अपर्याप्त पहुँच के कारण हर वर्ष लगभग 2 लाख लोग मृत्यु का शिकार हो रहे हैं।
भारत विश्व में भूजल का सबसे बड़ा उपयोगकर्ता देश है, वैश्विक उपयोग के एक चौथाई भाग से अधिक है।
60 प्रतिशत से अधिक सिंचित कृषि और 85 प्रतिशत पेयजल आपूर्ति भूजल पर निर्भर है तथा बढ़ते औद्योगिक/शहरी उपयोग के साथ यह बेहद महत्त्वपूर्ण संसाधन है। अनुमान लगाया गया है कि वर्ष 2025 में प्रति व्यक्ति जल की उपलब्धता लगभग 1400 एमएक्स तक कम हो जाएगी और वर्ष 2050 तक यह 1250 एमएक्स तक कम हो जाएगी। भूजल संदूषण घरेलू सीवेज सहित मानवीय गतिविधियों के कारण जल में बैक्टीरिया, फॉस्फेट और भारी धातुओं जैसे प्रदूषकों की उपस्थिति है। नीति आयोग की रिपोर्ट में बताया गया है कि भारत जल गुणवत्ता सूचकांक में 122 देशों की सूची में 120वें स्थान पर है, जिसका लगभग 70 प्रतिशत जल संदूषित है। भूजल में प्राकृतिक रूप से आर्सेनिक, फ्लोराइड, नाइट्रेट और आयरन का उच्च स्तर भी पाया जाता है, जिनकी सांद्रता में जल स्तर की गिरावट के साथ वृद्धि की संभावना है।
हम भले ही चुनाव में लगे हुए हैं और सही मायने में जनता को उसके ही मुद्दों से भटकाने में सफल हो रहे हैं, लेकिन पानी और खासकर शुद्ध पानी का मामला चुनाव से हटकर भी महत्वपूर्ण है। जल ही जीवन है, तो हम जीवन से खिलवाड़ करने से तो बचें। खुद नीति आयोग मानता है कि लाखों भारतीयों की सुरक्षित पेयजल और बेहतर स्वच्छता तक पहुँच नहीं है, जिससे जलजनित बीमारियों के मामले बढ़ रहे हैं। और सच्चाई यह भी है कि भारत में जल संकट विशेष रूप से तेज़ी से बढ़ते मध्यम वर्ग की ओर से स्वच्छ जल की बढ़ती मांग और खुले में शौच के व्यापक अभ्यासों के कारण बढ़ गया है, जिससे स्वास्थ्य संबंधी चिंताएँ पैदा हो रही हैं।
फिर हम ऐसी रिपोर्टों को क्यों फाइलों में दबाकर रखने के आदी होते जा रहे हैं? पिछले दिनों जल जीवन मिशन बड़े जोर-शोर से चलाया गया। प्रचार पर ही हजारों करोड़ रुपए खर्च कर दिए गए। बड़े- बड़े दावे किए गए। फिर पेयजल संकट की भीषणता क्यों? आंकड़ों और समस्याओं को नजरअंदाज करने या इसे किसी भी सत्ता के खिलाफ साजिश बताने से काम नहीं चलता। काम तो जमीन पर परिणाम से ही दिखता है। फिलहाल पानी के लिए गंभीरता से काम होना चाहिए, यह समय की दरकार है। नहीं तो हर शहर बेंगलुरू होने में देर नहीं। और हां, देश में पानी बचाओ अभियान भी तेज होना चाहिए। साथ ही हर घर में वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम अनिवार्य होना चाहिए। पानी की सुरक्षा सर्वोच्च प्राथमिकता हो। 
– संजय सक्सेना

img 20240323 1515053368363836094572515

Sanjay Saxena

BSc. बायोलॉजी और समाजशास्त्र से एमए, 1985 से पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय , मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल के दैनिक अखबारों में रिपोर्टर और संपादक के रूप में कार्य कर रहे हैं। आरटीआई, पर्यावरण, आर्थिक सामाजिक, स्वास्थ्य, योग, जैसे विषयों पर लेखन। राजनीतिक समाचार और राजनीतिक विश्लेषण , समीक्षा, चुनाव विश्लेषण, पॉलिटिकल कंसल्टेंसी में विशेषज्ञता। समाज सेवा में रुचि। लोकहित की महत्वपूर्ण जानकारी जुटाना और उस जानकारी को समाचार के रूप प्रस्तुत करना। वर्तमान में डिजिटल और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से जुड़े। राजनीतिक सूचनाओं में रुचि और संदर्भ रखने के सतत प्रयास।

Related Articles