Editorial: हास्य व्यंग्य और राजनीति…!

एक समय था, जब साहित्य और खासकर कविताओं के माध्यम से राजनीति पर बहुत तगड़े व्यंग्य कसे जाते थे। दौर आज भी जारी है, लेकिन न तो पहले जैसा व्यंग्य रहा और न ही राजनेताओं की सहनशीलता की क्षमता। अब तो राजनीति में उत्तेजना और हिंसा ने प्रवेश ले लिया है। कहीं न कहीं ये शुभ संकेत तो नहीं कहे जा सकते।
हालिया मामला स्टैंडअप कामेडियन कुणाल कामरा का है, जिसके शो के बाद गुस्साए शिवसैनिकों ने आयोजनस्थल में तोडफ़ोड़ मचाई और बड़े-दिग्गज नेताओं ने धमकियां दीं, वह न केवल कानून-व्यवस्था के हालात पर प्रतिकूल टिप्पणी है बल्कि हास्य-व्यंग्य को बर्दाश्त करने की राजनीति की क्षमता पर भी सवाल उठाता है। चिंता इस बात की है कि देश में ऐसे मामले बढ़ते जा रहे हैं, जिनमें आहत होती भावनाएं अभिव्यक्ति की आजादी पर भारी पड़ जाती हैं।
जहां तक मुंबई पुलिस की इस घटना पर प्रतिक्रिया का सवाल है तो यह अच्छी बात है कि उसने दोनों पक्षों की शिकायतों पर ध्यान दिया है। कामेडियन कुणाल कामरा के खिलाफ मामला दर्ज किया गया है तो तोडफ़ोड़ करने वालों के खिलाफ भी एफआईआर दर्ज की गई है। लेकिन यह पहला ही कदम है। आगे उसकी जांच किस तरह से आगे बढ़ती है और दोनों पक्षों के खिलाफ कार्रवाई कैसी दिशा लेती है, यह देखना बाकी है।
इस प्रकरण का एक निराशाजनक नतीजा मुंबई के खार स्थित हैबिटेट कॉमिडी क्लब बंद किए जाने की घोषणा के रूप में सामने आया है। क्लब के मालिकों का कहना है कि जब भी किसी शो को लेकर विवाद होता है तो उन्हें टारगेट किया जाने लगता है। हालांकि शो के दौरान जो भी परफॉरमेंस होती है, उसके कंटेंट से उनका कोई लेना-देना नहीं होता। बहरहाल, इस तरह के क्लब का बंद होना कला और संस्कृति की उन्नत चेतना के लिए जाने जाने वाले महाराष्ट्र जैसे राज्य की छवि के लिए नुकसानदेह कही जा सकती है। अब कार्यक्रम के लिए आयोजन स्थल देने के पहले पूरा कंटेंट देखना पड़ेगा, पता नहीं कौन क्या बोल जाए और स्थल वालों को नुकसान उठाना पड़े।
मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने इस मामले में शो के कंटेंट पर आपत्ति जताते हुए कहा है कि राज्य में कॉमिडी करने की स्वतंत्रता है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कई कुछ भी बोले। इसमें दो राय नहीं कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के साथ जिम्मेदारी भी आती है। और हर कोई अपने बोले शब्दों के लिए कानून के आगे जिम्मेदार है। लेकिन क्या यह जिम्मेदारी सुनिश्चित करने के लिए किसी ग्रुप को कानून अपने हाथ में लेने की अनुमति दी जा सकती है? और क्या जिस तरह से बड़े नेताओं ने खुलकर धमकी दी, अपने समर्थकों को एक तरह से हिंसा के लिए उकसाया, वह उचित कहा जा सकता है?
हालांकि कामेडियन के वाक्यांशों में साफ तौर पर किसी का नाम नहीं लिया गया, लेकिन इस शो में निशाना महाराष्ट्र के उप-मुख्यमंत्री और शिवसेना नेता एकनाथ शिंदे को बनाया गया था। शो में कही गई बातों से सहमत होना आवश्यक नहीं है, लेकिन इसकी प्रतिक्रिया भी ऐसी नहीं होना चाहिए। वैसे, अब अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और कानून दोनों ही देश में आमने-सामने आ जाते हैं, इसलिए इसे लेकर व्यापक बहस और विचार-विमर्श की आवश्यकता है।

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