Editorial:
शहर सरकार को आत्मनिर्भर बनना होगा…

सामान्य तौर पर घाटों में चल रहे नगरीय निकायों को लेकर सरकार की चिंता में भी इजाफा हुआ है। राज्य सरकार पर खुद भी कर्ज बढ़ता जा रहा है, सो अब ये साफ कर दिया गया है कि नगर निगमों को अपना खर्च चलाने के लिए खुद को आत्मनिर्भर बनाना होगा और इसके उपाय भी खुद ही करने होंगे। नगर निगम आयुक्तों से कहा गया है कि वे महापौरों के साथ तालमेल बनाकर काम करें, ताकि निकायों को आत्मनिर्भर बनाया जा सके।
महापौरों के एक प्रतिनिधिमंडल ने मुख्यमंत्री से मुलाकात की तो कई बातें सामने आईं। और कई बातें उनके बीच हुईं। मुख्यमंत्री मोहन यादव कहते हैं कि प्रदेश के सभी नगर निगमों में विकास समिति बनाई जाएगी। अपने शहर के विकास के लिए डॉक्टर, इंजीनियर, सिटी प्लानर, प्रोफेसर, लेक्चरर, टीचर सब मिलकर काम करेंगे। इसी बजट में शहरों में विकास समिति बनाने का प्रावधान किया गया है। सीएम कहते हैं, महापौर शहर के प्रथम नागरिक हैं। नगर और नागरिकों के विकास के लिए पूरी क्षमता, समर्पण और सेवा भावना से काम करें। उन्होंने कहा कि हमारे शहर विकास के मामले में अव्वल रहे इसके लिए नगर विकास के रोडमेप पर लगातार चर्चा की जाएगी।
मुख्यमंत्री से सौजन्य भेंट के दौरान महापौरों ने शहर के विकास के लिए अपनी-अपनी बात रखी। मुख्यमंत्री डॉ. यादव को महापौर संघ के अध्यक्ष ने मांग पत्र भी सौंपा। मांग पत्र में महापौरों के लिए प्रोटोकॉल बनाए जाने, इनके वित्तीय अधिकार बढ़ाए जाने, नगर निगमों में अधिकारियों व कर्मचारियों की कमी की पूर्ति किए जाने और महापौरों को एक-एक सुरक्षाकर्मी भी दिए जाने की मांग की गई है।
वहां मौजूद नगरीय विकास एवं आवास मंत्री कैलाश विजयवर्गीय ने कहा कि प्रदेश के 16 नगर निगमों को आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर और सशक्त बनाने में राज्य सरकार की और से हरसंभव मदद की जाएगी। उन्होंने कहा कि निकायों को और अधिक अधिकार देकर सशक्त बनाया जाएगा। नगर निगम महापौरों को सुरक्षा की दृष्टि से गनमैन दिलाने के लिए गृह विभाग को पत्र लिखा जाएगा।
यहां बड़ा मुद्दा नगरीय निकायों यानि शहर सरकारों की आत्मनिर्भरता का है। असल में सरकारों ने इन्हें स्वशासी जैसा बनाकर इसीलिए शहरों और कस्बों को इनके हवाले किया है, ताकि उन शहरों में नागरिक सुविधाएं उपलब्ध कराई जाएं और शहरों का सुनियोजित विकास हो सके। लेकिन विडम्बना यह है कि अधिकांश निकाय अपनी जिम्मेदारी ठीक तरह से निभा नहीं रहे हैं या निभा नहीं पा रहे हैं।
निकायों का फंड होता है, सरकार भी बजट उपलब्ध कराती है, लेकिन इसके बाद भी अधिकांश शहरी निकाय, जिनमें नगर निगम प्रमुख हैं, अपना ही खर्च नहीं निकाल पाते हैं। निगमों का ज्यादातर बजट अधिकारियों-कर्मचारियों का वेतन और निर्वाचित प्रतिनधियों के वेतन, भत्तों और अनुदान राशि में ही खर्च हो जाता है। हाल ही में यह भी सामने आया था कि भोपाल जैसे नगर निगम द्वारा तो सम्पत्ति कर तक सौ प्रतिशत नहीं वसूला जा रहा है। और भी तमाम मुद्दे ऐसे हैं, जिन पर विचार होना चाहिए। इनमें भ्रष्टाचार भी एक बड़ा मुद्दा है। तमाम घोटाले होते हैं, उनकी जांच होती है, दस प्रतिशत भी ऐसे मामले नहीं हैं, जिनमें कार्रवाई हुई हो। करोड़ों के घोटाले आसानी से दबा दिये जाते हैं, इनमें राजनीतिक हस्तक्षेप और संरक्षण भी रहता है।
कुल मिलाकर निकायों को आत्मनिर्भर बनाने की बात यदि कही जा रही है, तो इस पर काम होना चाहिए। निकाय सरकार पर बोझ बनने के बजाय यदि आत्मनिर्भर हो जाएं, तो निश्चित तौर पर शहरों का विकास भी सुनियोजित तरीके से हो सकेगा और नागरिक सुविधाओं की उपलब्धता भी बेहतर हो सकेगी।


