Political

Supreme court: राजद्रोह कानून खत्म हो रहा है या उसे नया चोला पहना रही है सरकार? सुप्रीम कोर्ट तो अड़ ही गया

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 124ए के तहत निर्धारित देशद्रोह कानून की वैधता को चुनौती देने वाली कई याचिकाओं को कम से कम पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ के पास भेजने का फैसला किया है। इस फैसले ने एक बार फिर इस विवादास्पद औपनिवेशिक कानून को चर्चा में ला दिया है। प्रधान न्यायाधीश (CJI) डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली तीन न्यायाधीशों की पीठ ने स्पष्ट किया कि पिछले छह दशकों में संवैधानिक सिद्धांतों और कानून के विकास के साथ-साथ यह आवश्यक है कि धारा 124ए को हरी झंडी देने वाले सुप्रीम कोर्ट के 1962 के फैसले को इस मामले में आखिरी मानने से पहले एक बड़ी पीठ इस पर गंभीरता से विचार करे।

पीठ ने केंद्र सरकार की इस दलील को भी खारिज कर दिया कि इस मामले को तब तक के लिए टाल दिया जाए जब तक कि इस विषय पर एक नया कानून नहीं आ जाता है क्योंकि 124ए की समीक्षा प्रस्तावित प्रावधानों को प्रभावित कर सकती है। पीठ ने कहा कि नया कानून आ रहा है, इस आधार पर धारा 124ए को चुनौती देने वाली एक ‘जीवंत चुनौती’ पर विचार करने से हाथ पीछे नहीं खींचा जा सकता है। पीठ ने यह भी कहा कि धारा 124ए अभी भी कानून की किताब में है और इसके तहत पहले से ही दर्ज मामले तो चलते रहेंगे भले ही भविष्य में नया कानून बन जाए।

औपनिवेशक युग का यह कानून मूल रूप से आंदोलनों को कुचलने और सरकार की आलोचनाओं पर रोक लगाने के लिए लाया गया था जिसमें अधिकतम उम्रकैद की सजा का प्रावधान किया गया। इस कानून के तहत पुलिस किसी आरोपी को बिना किसी वारंट ही गिरफ्तार कर सकती है। स्वतंत्रता के बाद इस कानून में संशोधन करके इसे और सख्त बना दिया गया और बिना वारंट के गिरफ्तारी को तगड़ा कानूनी आधार दे दिया गया। केंद्र सरकार ने 11 अगस्त, 2023 को लोकसभा में एक नया कानून पेश किया, जिसे बाद में एक संसदीय समिति के पास भेज दिया गया। इस नए कानून में देशद्रोह को अलग नाम के तहत और एक व्यापक परिभाषा के साथ अपराध बनाए रखा गया है।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button