Water man of MP : IAS अधिकारी ने किया नदियों को फिर से जीवित, भारत सरकार से भी मिला सम्मान

सिंगरौली। भारत के जलपुरुष का खिताब राजेंद्र सिंह को मिला हुआ है। उनके जल संरक्षणवादी मॉडल दुनियाभर में प्रसिद्ध है। कुछ इसी तरह मध्यप्रदेश के एक आईएएस अफसर ने 8 नदियों को पुनर्जिवित करने का काम प्रारंभ कर दिया है। प्रदेश में चल रहे जल गंगा संवर्धन अभियान के दौरान यह अफसर चर्चा में आ गए हैं। छिंदवाड़ा में उनके द्वारा किया गया जल प्रबंधन के मॉडल के चलते उन्हें भारत सरकार जल प्रहरी सम्मान से सम्मानित कर चुकी है। अब सिंगरौली में उन्होंने एक नदी को पुनर्जिवित भी कर दिखाया है। इस आईएएस अफसर का नाम गजेंद्र सिंह है और वे सिंगरौली जिला में मुख्य कार्यपालन अधिकारी के पद पर कार्यरत हैं।
कंचन नदी को कर दिया जीवित
कंचन नदी सिर्फ बारिश में ही बहती थी, दिसंबर से पहले ही नदी सूख जाती थी। लेकिन यहां कार्यभार संभालने के बाद सीईओ गजेंद्र सिंह ने ‘नदियों के पुनर्जीवन’ का अभियान प्रारंभ कर दिया। जिला पंचायत सिंगरौली द्वारा जिले में वर्ष 2022-23 से कुल 8 छोटी, बड़ी नदियों के पुनर्जीवन परियोजनाओं पर कार्य किया जा रहा है। ‘रिज़ टू वैली’ के सिद्धांत पर किये जा रहे नदी संरक्षण अभियान पर आईएएस गजेंद्र सिंह ने बताया कि मनरेगा योजना (महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम) अपने बनावट में ही मुख्यतः मिट्टी और पानी के संवहनीय संरक्षण का मॉडल प्रस्तुत करती है।
नदी को ऐसे मिला पुनर्जीवन
गजेंद्र सिंह ने बताया कि नदी पुनर्जीवन के प्रथम चरण में इन चिन्हित ग्रामों में नदी में गाद निकासी, तटों की प्रोफाइलिंग के कार्य वर्षाकाल के पूर्व कराए गए। चूंकि नदी के दोनों तरफ ज्यादा हिस्सों में निजी भूमियां थीं। अतः उनसे समन्वय कर, मेड़ बंधान और नदी की परिसीमा बनाने का कार्य किया गया। वर्षा काल में चिह्नित शासकीय भूमियों पर व्यापक पौधारोपण का कार्य किया गया। कटे घाटों को प्लग कर सुदृढ़ करने कार्य किया गया। जिला खनिज प्रतिष्ठान से नदी की संरचना में ग्राम गडहरा में गैवियन सह स्टॉप डैम 50 लाख की लागत से स्वीकृत किया गया।
अलग-अलग संरचनाओं से जल संरक्षण
सिंह ने बताया कि इसी प्रकार के तीन अन्य स्ट्रक्चर भी नदी में स्वीकृत किए गए हैं। जल के स्थाई भरण से भूगर्भीय जल स्तर में व्यापक सुधार दृष्टिगत हुआ है। सूखे हुए हैंडपंप और कुओं में जल की धारा प्रवाहित हो पाई है। विशेषकर कृषकों को पानी की उपलब्धता होने से उनके द्वारा भी नदी पुनर्जीवन के कार्य में रुचि प्रकट की जा रही है। व्यापक जन समर्थन की प्राप्त हो रहा है। उनके मध्य इस प्रकार के संरक्षण कार्य तथा मानव दखल को कम से कम करने के लिए प्रेरित किया जा रहा है, ताकि व्यवस्थाएं निरंतर रह सकें।