MP DISPLACEMENT: 50 हजार आबादी वाले शहर का मिटेगा नामोनिशान, सुनते ही सिहर उठते हैं मोरवावासी

सिंगरौली। एशिया में सबसे बड़ा विस्थपान का दर्द झेलने वाले हरसूद की कहानी अब पुरानी पड़ चुकी है. अब मध्य प्रदेश एशिया का दूसरा सबसे बड़ा विस्थापन होने जा रहा है. ऊर्जाधानी के नाम से मशहूर सिंगरौली जिले के मोरवा शहर को पूरा का पूरा शिफ्ट करने की प्लानिंग जोरों पर चल रही है. कोल इंडिया की इकाई कंपनी नॉर्दर्न कोलफील्ड लिमिटेड द्वारा कोयला खनन के विस्तार के लिए ये विस्थापन किया जा रहा है. इस प्रकार मोरवा शहर में रहने वाले 50 हजार लोगों की नींद उड़ी हुई है. विस्थापन के दौरान मोरवा के 22 हजार घर जमींदोज हो जाएंगे.
नए सिरे से शुरू करनी होगी जिंदगी की जद्दोजहद
इस विस्थापन में मोरवा जैसा पूरा बड़ा शहर ही खत्म हो जाएगा. ईटीवी भारत ने जब मोरवा शहर के लोगों से इस मुद्दे पर बात की तो जैसे उनका कलेजा फटने को आ गया. विस्थापन का नाम सुनते ही यहां के लोगों के चेहरों पर बेबसी और दर्द झलकने लगता है. एक ऐसा शहर जिसमें कई पीढ़ियों से लोग भाईचारे के साथ रहते हैं, अब इस शहर का नामोनिशान मिट जाएगा. अगली जिंदगी की जद्दोजहद कहां से और कैसे शुरू होगी, इसको लेकर लोगों के मन में कई सवाल हैं.
लोगों का सबसे बड़ा सवाल ये है कि हम कहां जाएंगे. मोरवा वासी राजेश गुप्ताकहते हैं “मोरवावासियों ने राष्ट्रहित में इस फैसले का स्वागत किया है. हमें इस विस्थापन को सोचकर डर लगता है कि जहां हमारी पीढ़ियां बीत गईं. यहां हमने बचपन से लेकर जवानी बिताई. जब बुढ़ापे का समय आ रहा है तो हमारा विस्थापन होने जा रहा है. यह सोचकर भी भयावह लगता है कि कई सालों से भाईचारा से हम लोग इस शहर में रहे हैं. अब हम लोग बिछड़ जाएंगे. यहां हमारे पूर्वजों की यादें हैं. इसके साथ ही हमारे बचपन की यादें हैं. एनसीएल को इसके लिए सभी को एक अलग शहर बनाकर देना चाहिए.”
सभी को एक समान मिले सुविधाएं
वन भूमि और प्रशासन की जमीन पर कई वर्षों से घर बनाकर रह रहे गरीब वर्ग के लोगों का कहना है “हम यही चाहते हैं कि एक समान सभी को मुआवजा मिले. जो लाभ भूमि मालिक और रजिस्ट्री वाले विस्थापित को मिले, वही लाभ सरकारी जमीन पर घर बनाकर गुजारा करने वाले लोगों को मिले.” वहीं, व्यापारियों का कहना है “जिस तरह हम लोगों को जीवनयापन के लिए व्यापार को खड़ा करने और व्यवस्थित करने में पीढ़ियां लग गईं, अब यह सब छोड़कर जा पाना हमारे लिए बहुत पीड़ादाई होगा.

विस्थापन तय है, विस्थापितों के लिए कोई योजना नहीं
लोगों का कहना है “किसी नए जगह जाकर नया व्यापार या काम-धंधा खड़ा करना बहुत बड़ी चुनौती है. हमें फिर 50 वर्ष पीछे हो जाएंगे. इस विस्थापन को सोचकर भी डर लगता है लेकिन देश हित में कोयले का खनन होना भी जरूरी है. इसलिए मोरवावासी इस विस्थापन का समर्थन कर रहे हैं लेकिन एनसीएल के पास विस्थापितों के लिए कोई ब्ल्यू प्रिंट नहीं है. कोई योजना नहीं है.” इससे मोरवावासी और भी सहमे हुए हैं. इस मामले में एनसीएल के जनसंपर्क अधिकारी उत्कर्ष अग्रवालने बताया “अब तक जगह का चयन नहीं किया गया है कि मोरवा शहर के विस्थापितों को कहां बसाया जाएगा. यह इस बात पर निर्भर है कि कितने लोग प्लॉट लेने के लिए इच्छुक हैं. उसके आधार पर जगह का चयन किया जाएगा.”






