MP : दिग्गी बोले,दवा कंपनियों से बीजेपी को ₹945 करोड़ चंदा मिला, 35 फर्मों की दवाएं अमानक थीं, कफ सिरप कांड में डिप्टी सीएम इस्तीफा दें

भोपाल। मध्य प्रदेश में जहरीले कोल्ड्रिफ कफ सिरप के कारण दो दर्जन बच्चों की मौतों के मामले में पूर्व सीएम दिग्विजय सिंह ने डिप्टी सीएम राजेन्द्र शुक्ल का इस्तीफा मांगा है।

भोपाल में अपने आवास पर प्रेस कॉन्फ्रेंस कर कांग्रेस सांसद दिग्विजय सिंह ने कहा कि 2 सितंबर से अब तक परासिया में कोल्ड्रिफ कफ सिरप के कारण 26 बच्चों की मौतें हुई है। उन बच्चों को वह दवा दी गई, जिसमें डायथलीन ग्लायकॉल की मात्रा 48.6% से ज्यादा थी, जबकि 0.01% ज्यादा नहीं होना चाहिए।
पूर्व सीएम ने कहा- 2 अक्टूबर को उप मुख्यमंत्री जो कि एमपी के स्वास्थ्य मंत्री भी हैं उन्होंने क्लीनचिट दी कि इसमें कोई गड़बड़ नहीं ऐसे व्यक्ति का क्या इस्तीफा नहीं होना चाहिए था? दिसंबर 2022 और 2023 में हिंदुस्तान में बनी DEG के कारण उज्बेकिस्तान में 18 बच्चे मारे थे। इसकी जानकारी देश के स्वास्थ्य मंत्रालय के पास थी, लेकिन स्वास्थ्य मंत्रालय ने इस पर रोक नहीं लगाई।

दवा कंपनियों से बीजेपी ने 945 करोड़ का चंदा लिया
पूर्व सीएम ने कहा- भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने दवा कंपनियों से इलेक्टोरल बॉन्ड डोनेशन के नाम पर 945 करोड़ रुपए का चंदा लिया। इन कंपनियों में 35 फर्म ऐसी थीं जिनकी दवाओं की गुणवत्ता निर्धारित मापदंडों पर खरी नहीं पाई गई। ऐसी कंपनियों ने चंदा दो, धंधा लो का क्रूर खेल खेला।

दवा में सीधा जहर मिलाया गया
दिग्विजय सिंह ने कहा- मध्यप्रदेश एवं देश में नकली दवाओं का कारोबार फल-फूल रहा है। जहरीली कफ सिरप कोल्ड्रिफ से हाल ही में मध्यप्रदेश में 26 मासूम बच्चों की मौत हुई है। यह एक निरंकुश भ्रष्टाचार और मानव जीवन के साथ खिलवाड़ का ज्वलंत उदाहरण है। कफ सिरप में डाय-एथिलीन ग्लाइकोल (DEG) की स्वीकृत मात्रा 0.1 प्रतिशत है। उक्त कफ सिरप में यह मात्रा 48.6 प्रतिशत पाई गई जो सुरक्षित सीमा से 486 गुना ज्यादा थी। दवाई में सीधा-सीधा जहर मिलाया गया।

जिस समिति के सीएम अध्यक्ष उसने कोई ध्यान नहीं दिया
दिग्विजय ने कहा- इस सिरप को प्राइवेट डॉक्टरों द्वारा मरीजों के पर्चों पर लिखा गया और खुले बाजार में दवा की दुकानों से बेचा गया, लेकिन यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि राज्य स्वास्थ्य समिति जिसके अध्यक्ष स्वयं मुख्यमंत्री और सह-अध्यक्ष स्वयं स्वास्थ्य मंत्री हैं, किसी ने इस पर कोई ध्यान नहीं दिया।सरकारी संस्थाओं ने सार्वजनिक स्वास्थ्य कार्यक्रमों में गुणवत्ता नियंत्रण और निजी भागीदारी में सार्वजनिक-निजी साझेदारी (PPP) के जरिए निगरानी रखने के दायित्व को पूरी तरह नजर अंदाज किया।

दिग्विजय के मध्यप्रदेश सरकार से सवालः

मुख्यमंत्री राज्य स्वास्थ्य समिति के अध्यक्ष और स्वास्थ्य मंत्री स्वयं सह-अध्यक्ष हैं। इस समिति ने नागरिकों के स्वास्थ्य के प्रति अपनी जिम्मेदारी क्यों नहीं निभाई?
कोल्ड्रिफ जैसी जहरीली दवा प्राइवेट चिकित्सकों के माध्यम से बिक्री के लिए उपलब्ध कैसे होती रही, जबकि टेंडर और नियामक प्रक्रियाओं में एक्सिपिएंट्स (जैसे ग्लिसरीन) के लिए Type–I Drug Master File या Certificate of Suitability / Certificate of European Pharmacopoeia अनिवार्य होना चाहिए था?
क्या बच्चों की जान की कीमत पर कमीशन खाने का खेल सरकार की नाक के नीचे सरेआम नहीं चल रहा था?

पूर्व सीएम के केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा से सवालः

आपके मंत्रालय के तहत राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (National Health Mission) में 2022 के गाम्बिया और 2023 के उज्बेकिस्तान हादसों के बाद भी भारत से बिक्री होने वाली दवाओं में डाय-एथिलीन ग्लाइकोल (DEG) कंटेमिनेशन क्यों जारी रहा?
केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (Central Drugs Standard Control Organization) ने सिर्फ 9 प्रतिशत फैक्ट्रियों का ही निरीक्षण किया और इनमें से 36 प्रतिशत फेल पाई गईं। फिर भी केंद्र सरकार क्यों सोती रही?
केंद्र सरकार ने जन विश्वास अधिनियम 2023 से Not of Standard Quality दवाओं पर जेल की सजा हटाकर सिर्फ 5 लाख रुपए का जुर्माना लगाने का निर्णय किस आधार पर लिया? भाजपा पर आरोप है कि फार्मास्यूटिकल कंपनियों से इलेक्टोरल बॉन्ड के रूप में 945 करोड़ रुपए का चंदा लिया गया और कंपनियों को मनमानी करने की छूट दे दी गई।
केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (CDSCO) का अलर्ट 4 अक्टूबर 2025 को आया, लेकिन दवा के रिकॉल में औसतन 42 दिन क्यों लगे?

राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (NHM) राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना में सालाना 1,000 से ज्यादा नॉट ऑफ स्टेंडर्ड क्वालिटी सैंपल मिलते रहे। फिर सरकार ने सख्त कार्यवाही क्यों नहीं की?
जन औषधि केंद्रों में भी नकली दवाएं पकड़ी गईं, फिर भी क्वालिटी फर्स्ट प्रोक्योरमेंट मॉडल क्यों नहीं अपनाया गया?
क्या भारतीय जनता पार्टी की फार्मा फंडिंग के कारण नियामक संस्थाओं को अपना कार्य नहीं करने दिया जा रहा है?
क्या विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुमान के अनुसार 10-25 प्रतिशत दवाएं Spurious / Fake या नॉट ऑफ क्वालिटी स्टेंडर्ड होने से सरकारी कोष को सालाना 52,000 करोड़ रुपए का नुकसान नहीं हो रहा है?
Antimicrobial Resistance से 49,000 अतिरिक्त मौतें हो रही हैं। फिर भी निरीक्षकों की संख्या विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) मानक से 70 प्रतिशत कम क्यों है? सरकार एक दशक में भी पर्याप्त निरीक्षकों की भर्ती क्यों नहीं कर सकी है?

मुख्य सचिव से सवालः

दिग्विजय सिंह ने कहा- राज्य के मुख्य सचिव राज्य स्वास्थ्य समिति की गवर्निंग बॉडी के अध्यक्ष हैं। उन्होंने एक्टिव फार्मास्युटिकल इन्ग्रेडिएंट्स (API) टेस्टिंग, मेथड ऑफ एनालिसिस और गुड्स मेन्युफेक्चरिंग प्रेक्टिसेस (GMP) चेक करने को क्यों नजरअंदाज किया?
नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) ऑडिट 2023 में मध्यप्रदेश पब्लिक हेल्थ सर्विसेज कॉर्पोरेशन पर देरी और अतिरिक्त खर्च का आरोप लगाया था, फिर भी मुख्य सचिव ने अपना दायित्व क्यों नहीं निभाया?
ये सवाल तथ्यों पर आधारित हैं। तमिलनाडु ड्रग्स कंट्रोल डिपार्टमेंट की रिपोर्ट (3 अक्टूबर 2025), केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन सर्कुलर (4 अक्टूबर 2025), ऑटोप्सी रिपोर्ट्स (गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेज नागपुर) और नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक ऑडिट्स से साबित होता है कि किस तरह जहरीली सिरप का व्यवसाय कमीशनखोरी के कारण चलता रहा।

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Sanjay Saxena

BSc. बायोलॉजी और समाजशास्त्र से एमए, 1985 से पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय , मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल के दैनिक अखबारों में रिपोर्टर और संपादक के रूप में कार्य कर रहे हैं। आरटीआई, पर्यावरण, आर्थिक सामाजिक, स्वास्थ्य, योग, जैसे विषयों पर लेखन। राजनीतिक समाचार और राजनीतिक विश्लेषण , समीक्षा, चुनाव विश्लेषण, पॉलिटिकल कंसल्टेंसी में विशेषज्ञता। समाज सेवा में रुचि। लोकहित की महत्वपूर्ण जानकारी जुटाना और उस जानकारी को समाचार के रूप प्रस्तुत करना। वर्तमान में डिजिटल और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से जुड़े। राजनीतिक सूचनाओं में रुचि और संदर्भ रखने के सतत प्रयास।

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