संपादकीय
भोपाल में सडक़ हादसे

एक प्रमुख अखबार में मध्यप्रदेश की राजधानी में होने वाली सडक़ दुर्घटनाओं का विश्लेषण प्रकाशित हुआ है। यह भोपाल ट्रैफिक पुलिस का ताजा विश्लेषण है और इसमें बताया गया है कि राजधानी में बीते 15 महीनों में 221 लोग सडक़ हादसों में जान गंवा चुके हैं। अधिकांश दुर्घटनाएं ट्रैफिक नियमों का उल्लंघन करने, ओवरस्पीडिंग और सडक़ों के खराब इंजीनियरिंग के कारण हुई हैं। इनमें सबसे ज्यादा 106 मौत दो पहिया वाहन चालकों की हुई हैं। 2022 में मौत का ये आंकड़ा 90 था।
अखबार कहता है कि यह स्थिति तब है जब सर्वोच्च न्यायालय ने सडक़ हादसों में कमी लाने और उनमें होने वाली मौतों को 50 प्रतिशत तक कम करने के निर्देश वर्ष 2015 में सभी राज्यों को दिए थे। भोपाल की यातायात पुलिस ने 2023 के आंकड़ों के साथ वर्ष 2024 के तीन महीनों को भी जोड़ा है। 15 महीनों यानि सवाल के दौरान दो पहिया वाहन चलाने वालों के साथ 1700 सडक़ हादसे हुए हैं। इसमें 1516 लोगों को मामूली चोटें आईं और 80 लोग गंभीर जख्मी हुए। 106 लोगों की जान गई जिनमें दो साइकिल सवार भी शामिल थे। कम से कम ये तो ओवर टेकिंग या तेज रफ्तार से नहीं चला रहे होंगे।
केवल वाहनों से ही नहीं राजधानी की सडक़ों पर खराब इन्फ्रास्ट्रक्चर और अतिक्रमण के चलते भी दुर्घटनाएं होती हैं और इसका खामियाजा इस अवधि में 65 लोगों को अपनी जान गंवाकर भुगतना पड़ा है। भोपाल में फुटपाथ वाली सडक़ें कम हैं। जहां फुटपाथ हैं वहां अतिक्रमण है। भोपाल डीसीपी ट्रैफिक संजय सिंह का अखबार में यह कथन आया है कि हर सडक़ हादसे का अलग कारण होता है। इसकी मॉनिटरिंग थाना स्तर पर की भी जाती है। भोपाल में तेज रफ्तार में वाहन चलाना, ट्रैफिक नियमों का पालन न करना हादसों की वजह बनती है। एक बड़ी वजह शराब पीकर वाहन चलाना भी है, जिसमें ज्यादातर दो पहिया वाहन चालकों को नुकसान होता है।
यह तो हुई खबर की बात। अब आते हैं भोपाल के यातायात पर। देखा जाए तो यहां यातायात नाम की कोई चीज ही नहीं है। यातायात पुलिस का पूरा ध्यान केवल चौथ वसूली पर ही ज्यादा होता है। वे पुलिस प्रशासन का चालान वाला टार्गेट पूरा करते अधिक दिखाई देते हैं, जो उनकी मजबूरी होती है। यातायात सुगम बनाने से उन्हें कोई लेना देना नहीं होता। हां, इनके पास वीआईपी ड्यूटी के दौरान भी वाहनों को रोकना या डपटने का काम भी होता है, जो राजधानी होने के कारण लगातार चलता रहता है।
भोपाल की सडक़ों की बात करें तो एकाध सडक़ भी ऐसी नहीं है, जिसे हम सुरक्षित कह सकें। जिला प्रशासन से लेकर जो यातायात के लिए समिति बनाई जाती है, और यातायात पुलिस, सभी की स्थिति जैसे मूक दर्शक वाली हो गई है। पहली बात तो यह है कि अधिकांश सडक़ें तकनीकी दृष्टि से सौ फीसदी सही नहीं बनी हैं या बनाई गईं हैं। आईआरसी यानि भारतीय सडक़ कांग्रेस के प्रावधान कितने लागू होते हैं, यह इंजीनियरों को तो पता होगा, लेकिन उनका पालन कितना हो रहा है, सडक़ों पर नहीं दिखता। सडक़ विभाजक से लेकर चौराहों पर लगे यातायात नियंत्रक भी तकनीकी रूप से एकदम सही नहीं बताए जाते हैं।
उस पर शहर के वाहन चालक। हालांकि कुछ प्रतिशत लोग यातायात नियमों का पालन करते दिख जाते हैं, लेकिन अधिकांश चालान के भय के कारण ही नियम पालन करते हैं, अपनी सुरक्षा या एक बेहतर नागरिक होने के कारण नहीं। दुपहिया वाहन चालक ठीक चलते हैं और चार पहिया वाहन चालक दादागिरी से चलने लगते हैं। और यातायात पुलिस साल में एक बार यातायात सुरक्षा पखवाड़ा मनाकर फुर्सत हो जाती है। इंजीनियरों और विशेषज्ञों का मानना है कि भोपाल में सबसे ज्यादा दुर्घटनाएं सडक़ों की तकनीकी खराबी, डिवाइडर के साथ ही सडक़ों पर होने वाले अतिक्रमण के चलते ही होती हैं। लापरवाही तो स्वाभाविक रूप से ही बड़ा कारण होता है, लेकिन इसके चलते देर रात वाली दुर्घटनाएं ज्यादा होती हैं।
भोपाल में सडक़ें पार्किंग स्थल ज्यादा बनी होती हैं। सडक़ों के किनारे बने फुटपाथ तो दस प्रतिशत भी चलने के लिए नहीं रह गए हैं। सारे के सारे अतिक्रमण के शिकार हो चुके हैं। और गाडिय़ां सडक़ों पर खड़ी की जाती हैं, जिससे उनकी चौड़ाई कम रह जाती है। प्रशासन की ओर से कभी फुटपाथ को अतिक्रमण मुक्त कराने की मुहिम नहीं चलाई गई। और चलाई गई, तो वो दो-चार दिन में ही फुस्स हो गई, क्योंकि इसमें राजनीतिक के साथ ही प्रशासनिक हस्तक्षेप भी बहुत होता है। एक उदाहरण अभी सामने आ रहा है। कोलार में सिक्स लेन सडक़ बन रही है, कई तकनीकी खामियां हैं, लेकिन निर्माण पूरा होने के पहले ही दिखने लगा कि वाहन चलाने के लिए कितनी सडक़ मिलेगी। सडक़ों पर वाहन पार्किंग अभी से शुरू हो गई है और फुटपाथ तो दिखता ही नहीं है। पैदल यात्री भी मुख्य सडक़ों पर चलने के लिए मजबूर हैं।
राजधानी की बहुत बड़ी विडम्बना यही है कि यहां नागरिक जागरूकता कस्बों से भी कम है। किसी को सडक़ दुर्घटनाओं की चिंता नहीं। किसी को फैलते अतिक्रमण की चिंता नहीं। जिसके परिजन दुर्घटनाओं के शिकार होते हैं, वो कुछ दिन शासन-प्रशासन और भाग्य को कोसकर फिर शांत हो जाते हैं। प्रशासन की ओर से सबसे ज्यादा सुस्ती सडक़ और फुटपाथ को अतिक्रमण से मुक्त कराने में दिखती है और इसके लिए निश्चित तौर पर राजनीतिक और प्रशासनिक हस्तक्षेप भी जिम्मेदार हैं। बस ऐसे ही लापरवाह बने रहें। अपनी-अपनी व्यवस्थाओं लगे रहें। दुर्घटनाओं का ग्राफ बढ़ता रहे। किसी को क्या…! सब चलता है।
जय भोपाल और जय भोपाली सुस्ती।
– संजय सक्सेना

Sanjay Saxena

BSc. बायोलॉजी और समाजशास्त्र से एमए, 1985 से पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय , मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल के दैनिक अखबारों में रिपोर्टर और संपादक के रूप में कार्य कर रहे हैं। आरटीआई, पर्यावरण, आर्थिक सामाजिक, स्वास्थ्य, योग, जैसे विषयों पर लेखन। राजनीतिक समाचार और राजनीतिक विश्लेषण , समीक्षा, चुनाव विश्लेषण, पॉलिटिकल कंसल्टेंसी में विशेषज्ञता। समाज सेवा में रुचि। लोकहित की महत्वपूर्ण जानकारी जुटाना और उस जानकारी को समाचार के रूप प्रस्तुत करना। वर्तमान में डिजिटल और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से जुड़े। राजनीतिक सूचनाओं में रुचि और संदर्भ रखने के सतत प्रयास।

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