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praoject cheetah:कूनो नेशनल पार्क में क्यों हुई थी चीतों की मौत? प्रोजेक्ट के चीफ ने खोला राज…

Bhopal।प्रोजेक्ट चीता के प्रमुख एसपी यादव के अनुसार पहले वर्ष में भारत में चीतों की देखभाल में आई मुख्य चुनौती यह थी कि कुछ चीतों ने अफ्रीका की सर्दी की अवधि (जून से सितंबर) के पूर्वानुमान के अनुसार भारत में गर्मी और मानसून के मौसम में अपने शरीर पर मोटी फर विकसित कर ली थी. इसकी उम्मीद अफ्रीकी विशेषज्ञों को भी नहीं थी।

पिछले साल सितंबर महीने में 20 चीतों को नामीबिया और दक्षिण अफ्रीका से लाया गया था, जिसमें से कुछ की मौत हो गई थी. इस बार चीतों की देखभाल के लिए अलग तैयारी की गई है।राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण के प्रमुख एसपी यादव के अनुसार इस अभयारण्य में चीतों को छोड़ने की तैयारी साल के अंत तक पूरी कर ली जाएगी।

प्रोजेक्ट चीता के प्रमुख एसपी यादव ने कहा, ”इस बार भारत वहां से ऐसे चीते मंगवाएगा, जिनमें जाड़े के मौसम में मोटी फर (रोंएदार चमड़े की एक खास परत) नहीं विकसित होती हो. दरअसल, अफ्रीका से भारत लाए गए चीतों में से कुछ मोटी फर विकसित होने के कारण गंभीर संक्रमण की चपेट में आए थे. इसी वजह से तीन चीतों की मौत भी हुई थी.”

चीतों के लिए दो नए स्थान

इस प्रोजेक्ट के प्रमुख एसपी यादव ने कहा, ”चीता कार्रवाई योजना में इस बात का जिक्र है कि कूनो में 20 चीतों को रखे जाने की क्षमता है. इस वक्त वहां एक शावक सहित कुल 15 चीते हैं. जब हम देश में चीतों की अगली खेप लाएंगे, तो इन्हें किसी और क्षेत्र में रखेंगे. हम मध्य प्रदेश में दो ऐसे स्थान तैयार कर रहे हैं, जिसमें से एक गांधी सागर अभयारण्य और दूसरा नौरादेही है.”

उन्होंने चीतों में संक्रमण और मौत की पूरी घटना को विस्तार से बताया. उन्होंने कहा, ”मोटी फर, अधिक उमस और तेज तापमान, इन सबके कारण चीतों को खारिश होती है और वे पेड़ों के तनों या जमीन पर अपनी गर्दन रगड़ते हैं. इससे पशुओं की गर्दनों की खाल फट जाती है जिस पर मक्खियां बैठती है और अंडे देती हैं. इससे पशुओं में विषाणु का संक्रमण होने के साथ सेप्टिसीमिया (सड़न) की समस्या होती है और पशुओं की मौत हो जाती है।

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