Openion: पालकों के हित में कदम, लेकिन उन्हें भी जागना होगा…

मध्य प्रदेश सरकार ने प्राइवेट स्कूलों की मनमानी रोकने ले लिए सख्त कदम उठाते हुए अभिभावकों को बड़ी राहत देने की कोशिश की है। इसे लेकर पहले तो आदेश जारी किया, जिसमें कहा गया कि अब प्राइवेट स्कूल किसी भी निर्धारित दुकान से ही किताबें, यूनिफॉर्म और बाकी टीचिंग मटेरियल खरीदने के लिए पैरेंट्स पर दबाव नहीं बनाएंगे। अगर कोई ऐसा करता पाया गया तो उसके खिलाफ एक्शन लिया जाएगा। इस आदेश के बाद शिक्षा विभाग के साथ ही राजधानी भोपाल सहित अन्य जिलों का प्रशासन भी सक्रिय हो गया है और आदेश की अनदेखी करने वाले के खिलाफ एक्शन ले रहा है।

इसी के तहत भोपाल प्रशासन ऐसे स्कूलों पर एक्शन ले रहा है जो बच्चों के पैरेंट्स पर निर्धारित दुकानों से किताबें और स्कूल ड्रेस खरीदने का दबाव बना रहे हैं। शहर में ऐसे 16 स्कूलों के साथ 3 बुक स्टोर पर एक्शन लिया गया है। इसके साथ ही जबलपुर में 18 स्कूलों पर एक्शन लिया गया है। एक अधिकारी ने बताया कि इन स्कूलों को नोटिस जारी किया गया है। यदि उनका जवाब संतोषजनक नहीं पाया गया तो आगे के कदम उठाए जाएंगे।

भोपाल की बात करें तो लगातार सोने वाले शिक्षा विभाग ने स्कूलों पर एक्शन लेने का फैसला दो दुकानों की जांच के बाद लिया है। देखा जाए तो शिक्षा विभाग तो अभी भी ढीला है, जिला प्रशासन सख्त दिख रहा है। एमपी नगर की दो दुकानों पर एसडीएम एलके खरे की टीम ने जांच की थी। जहां पर सामान खरीद रहे परिजनों ने खुलासा किया था कि एक दुकान में 11 स्कूलों का सामान था जबकि दूसरे दुकान में 5 स्कूलों का सामान मिला है। पैरेंट्स ने बताया कि उनको स्कूल ने इन दुकानों से सामान खरीदने के लिए मजबूर किया था।

एसडीएम की रिपोर्ट के आधार पर भोपाल जिला कलेक्टर कौशलेंद्र विक्रम सिंह ने प्रशासन को तलाशी लेने वाले 16 स्कूलों और तीन बुक स्टोर्स को नोटिस जारी करने के निर्देश दिए हैं। यदि ये इस नोटिस पर उचित जवाब देते है तो उन पर धारा 144 के तहत जुर्माना और कानूनी कार्रवाई का सामना करना पड़ सकता है। वहीं, दोषी पाए जाने पर उन पर 2-2 लाख रुपये का जुर्माना और जेल की सजा हो सकती है। अगर स्कूल की तरफ से फिक्स की गई किताबों की कीमतों और दुकान में मिलने वाली बुक्स की वास्तविक कीमतों के बीच अंतर अधिक पाया जाता है। इसके लिए भी एक्शन लिया जाएगा। इस कार्रवाई का उद्देश्य पैरेंट्स को उचित कीमत पर बुक्स दिलाना है।

भोपाल कलेक्टर आशीष सिंह ने हाल ही में प्राइवेट स्कूलों के पुस्तक प्रकाशकों और विक्रेताओं और वर्दी विक्रेताओं के एकाधिकार को समाप्त करने के उद्देश्य से धारा 144 के तहत एक आदेश जारी किया था। आदेश के बाद शिक्षा विभाग ने विभिन्न माध्यमों से निजी स्कूलों और पुस्तक विक्रेताओं पर निगरानी शुरू कर दी है। शहर के स्कूलों, किताबों और यूनिफार्म की दुकानों की जांच के लिए उडऩदस्ते का भी गठन किया गया है।

देखा जाए तो यह सही मायने में सरकार और प्रशासन की ओर से उठाया गया उचित कदम है, लेकिन हमारे यहां सबसे बड़ी परेशानी अभिभावकों की है। परेशान तो शत प्रतिशत लोग होते हैं, हो रहे हैं, लेकिन दस प्रतिशत भी ऐसे पालक नहीं मिलते, जो सही बात बोलें। शिकायत करना तो दूर की बात है। कई ऐसे मौके आए, जब कोई पालक स्कूल में सीधे बात करने पहुंचा हो, नामी स्कूलों में तो प्राचार्य या संचालक से उसकी मुलाकात तक नहीं कराई जाती है। एक शिक्षक को ही यह अधिकार दे दिया जाता है और उसका अधिकांश जवाब यही होता है कि अकेले आप को ही शिकायत है, बाकी एक भी पालक को समस्या नहीं है। होती तो वो भी शिकायत करते। और इस तरह से आपकी शिकायत सीधे खारिज कर दी जाती है।

शिक्षा विभाग की बात करें तो वहां के संकुल प्रभारी से लेकर जिला शिक्षा अधिकारी तक को प्राइवेट स्कूल सीधे-सीधे रिश्वत देकर चुप रखते हैं। जो रिश्वत नहीं देते, उनका रसूख इतना होता है कि शिक्षा अधिकारी उनकी तरफ आंख उठाकर भी नहीं देख पाते। शिक्षा माफिया से राजनीतिक दलों का सीधा संबंध बन गया है। तमाम नेताओं ने खुद ही स्कूल खोल रखे हैं तो कई प्रशासनिक अधिकारियों या उनके परिजन भी स्कूल चलाने लगे हैं। क्योंकि यह बड़े लाभ का धंधा जो बन गया है।

अधिकांश निजी स्कूलों ने दुकानों से बाकायदा अनुबंध करके रखा हुआ है और वहीं से पूरा कोर्स मिलता है। यूनीफार्म के लिए अलग दुकान है। यूनीफार्म की हालत तो यह है कि बाजार के मुकाबले कई बार दो से तीन गुना मंंहगी यूनीफार्म खरीदनी पड़ती है। कोई सामान्य दुकानदार यदि वैसी यूनीफार्म बनवाकर बेचने लगता है तो ये लोगो बदल देते हैं या स्कूल वाले पहचान कर रिजेक्ट कर देते हैं। पालकों को प्रताडि़त अलग करते हैं। दोनों तरह की दुकानों से पैंतीस से लेकर पचास प्रतिशत तक कमीशन स्कूलों को मिलता है। यह बहुत बड़ा धंधा बन गया है। और एक खास बात यह भी कि निजी स्कूलों ने सीबीएसई वाली किताबों के साथ ही कुछ विशेष किताबें भी कोर्स में शामिल की हैं, जिन पर भारी कमीशन मिलता है। सीबीएसई वाली किताबें मुकाबले में सस्ती आती हैं। बाकी स्टेशनरी से उसकी पूर्ति कर ली जाती है।

कुल मिलाकर सरकार का कदम बहुत अच्छा है और प्रशासन अधिकांश जिलों में जो सख्ती दिखा रहा है, उससे पालकों को राहत मिल सकती है। लेकिन इसमें सबसे बड़ी बात पालकों की जागरूकता की है, जो अभी भी नहीं दिख रही है। यदि अभिभावक जागरूक हो जाएं, तो लुटने से बच सकते हैं। अभी तो शिक्षा माफिया कोई दूसरा रास्ता निकाल सकता है। लेकिन यदि जागरूकता आ गई, और पालक मजबूरी दिखाने के बजाय अपने शोषण के खिलाफ बोलने लग जाएं, तो एक बेहतर माहौल बन सकता है। और सामान्य वर्ग को बड़ी राहत मिल जाएगी।

– संजय सक्सेना 

Sanjay Saxena

BSc. बायोलॉजी और समाजशास्त्र से एमए, 1985 से पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय , मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल के दैनिक अखबारों में रिपोर्टर और संपादक के रूप में कार्य कर रहे हैं। आरटीआई, पर्यावरण, आर्थिक सामाजिक, स्वास्थ्य, योग, जैसे विषयों पर लेखन। राजनीतिक समाचार और राजनीतिक विश्लेषण , समीक्षा, चुनाव विश्लेषण, पॉलिटिकल कंसल्टेंसी में विशेषज्ञता। समाज सेवा में रुचि। लोकहित की महत्वपूर्ण जानकारी जुटाना और उस जानकारी को समाचार के रूप प्रस्तुत करना। वर्तमान में डिजिटल और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से जुड़े। राजनीतिक सूचनाओं में रुचि और संदर्भ रखने के सतत प्रयास।

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