MP BJP:  गुटबाजी बनाम दिग्गज नेताओं के खिलाफ साजिश…?
सत्ता और संगठन में समन्वय के लिए बनाना पड़ी व्यवस्था…

संजय सक्सेना
जो बुराई किसी समय कांग्रेस में हुआ करती थी, अब भारतीय जनता पार्टी में भी आ चुकी है। यूं तो गुटबाजी भाजपा के शुरुआती दौर में ही पनपने लगी थी, लेकिन उस समय इसे दबा दिया जाता था। उस समय एक गुट असंतुष्ट कहा जाता था, उसकी आवाज दबाने में दूसरा गुट सफल हो जाता था। तब हाईकमान  का हाथ ही एक खेमे पर हुआ करता था। आज परिस्थितियां कुछ बदली हुई हैं। तब सत्ता बहुत कम मिल पाती थी, अब सत्ता स्थाईभाव जैसी हो गई है। सो अब सत्ता का मद और सत्ता की बुराइयां भी पार्टी के अंदर स्थाई भाव बन गई हैं। लेकिन खास बात यह देखने में आ रही है कि सत्ता का शीर्ष खुद ही दिग्गज और प्रभावशाली नेताओं का प्रभाव खत्म करने की साजिशों को हवा देता है और किसी को भी ऐसी स्थिति में नहीं पहुंचने देता कि वो नेतृत्व को चुनौती देने की स्थिति में पहुंच सके।

मध्यप्रदेश में इसकी झलक काफी समय से देखने को मिल रही है। जब शिवराज सिंह चौहान मुख्यमंत्री बने, उन्होंने संगठन और संघ के एक वर्ग को इस तरह से कब्जे में ले लिया था कि बाकी तमाम नेताओं को उनके क्षेत्रों में तक ही समेट दिया था। हाईकमान ने शिवराज के बढ़ते कद को छांटने की कोशिश की, लेकिन शिवराज आज भी हाईकमान के लिए चुनौती बने हुए हैं। इसके चलते हाईकमान की तरफ से प्रदेश के बाकी दिग्गज और प्रभावशाली नेताओं को दिल्ली से वापस प्रदेश में भेज दिया। ये शिवराज के कद के बराबर थे और शिवराज के प्रयासों के बाद भी अपना दबदबा कायम किये हुए हैं। इनमें प्रहलाद पटेल, कैलाश विजयवर्गीय, नरेंद्र सिंह तोमर प्रमुख हैं। तोमर को स्पीकर बनाकर उनकी बोलती बंद कर दी गई, लेकिन प्रहलाद पटेल और विजयवर्गीय का कद कम करने में शीर्ष नेतृत्व से लेकर प्रदेश नेतृत्व तक नाकाम ही रहा।
नेतृत्व प्रदेश में दूसरी-तीसरी कतार के नेताओं को ऊपर लेकर तो आ गया, लेकिन उनमें राजनीति करने की कुव्वत ही नहीं। मुख्यमंत्री डा. मोहन यादव को भी दूसरी कतार से निकाल कर कुर्सी पर बैठा तो दिया गया, लेकिन कहीं न कहीं उन्हें भी दिग्गज नेताओं से खतरा बना हुआ है। या फिर ये कहें कि वे खतना महसूस कर रहे हैं।
इसके पीछे प्रमुख कारण उनकी राजनीतिक क्षमताएं ही मानी जा रही हैं। एक ओर तोमर, पटेल, विजयवर्गीय के अलावा गोपाल भार्गव, राकेश सिंह और कुछ अन्य वरिष्ठ नेताओं से मुख्यमंत्री आज भी खतरा महसूस तो कर रहे हैं, लेकिन वो अपनी क्षमताओं को और निखारने में उतने सफल नहीं हो पा रहे हैं। यही कारण है कि बार-बार दिल्ली में बड़े नेताओं को हाशिये पर भेजने का अनुरोध किया जाता है। साथ ही साथ कुछ दूसरी और तीसरी कतार के नेताओं को इन बड़े नेताओं के खिलाफ ताकत देने का काम भी किया जा रहा है। तोमर के क्षेत्र में तो पहले से सिंधिया खेमे के नेताओं की चुनौती है, प्रहलाद पटेल के क्षेत्र में पहले कैलाश सोनी जैसे अनजान नेता को राज्यसभा भेजा गया। साथ ही राकेश ङ्क्षसह को प्रदेश भाजपा अध्यक्ष बनाया गया। सोनी पार्षद के कद से ऊपर नहीं निकल पाए। राकेश सिंह भी फेल हो गए, तो कांग्रेस से आए राव उदय प्रताप को भारी भरकम विभाग देकर चुनौती दी गई। पटेल के जिले में जिला अध्यक्ष तो छोड़ो मंडल अध्यक्ष तक विरोधी बनाए गए। पूर्व में तो पटेल परिवार के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज करने की साजिश भी की जा चुकी है। नेताओं ही नहीं, कारोबारियों को भी उनके खिलाफ बोलने के लिए उकसाया जा रहा है। सिलसिला आज भी चल रहा है।
जहां तक कैलाश विजयवर्गीय का सवाल है, उनका पूरे मालवा में प्रभाव रहा है, लेकिन उन्हें इंदौर में ही समेटने की कोशिशें चल रही हैं। पहले शिवराज ने राजनेताओं से लेकर अधिकारियों तक के माध्यम से विजयवर्गीय को समेटने के प्रयास किये, अब वर्तमान नेतृत्व यही कर रहा है। सिंधिया खेमे के तुलसी सिलावट को लगातार ताकत देना इसी का प्रमाण है। सिलावट को जहां इंदौर में सीएम का वरदहस्त मिला हुआ है, वहीं कलेक्टर तक को निर्देश हैं कि विजयवर्गीय खेमे को किसी तरह की मदद नहीं करनी है, उलटे निपटाना ही है। संगठन में भी उनके विरोधियों को आगे लाया जा रहा है।
ये तो कुछ उदाहरण हैं, पूर्व प्रदेश अध्यक्ष राकेश सिंह को भी दिल्ली से वापस भेजा गया। सांसद रीति पाठक को विधानसभा भेज दिया गया। नौ बार के विधायक गोपाल भार्गव को तो पूरी तरह से घर बैठा दिया गया है। बाकी कई नेताओं को भी हाशिये पर भेज दिया गया। लेकिन इस सबके चलते कहीं न कहीं भाजपा के अंदरखाने में उठापटक बढ़ रही है। कांग्रेस से आए नेताओं को महत्व दिये जाने का भी विरोध तेज हुआ है। इस सरकार में तो अभी तक निगम मंडलों  में भी नियुक्तियां नहीं की गई हैं। दिग्गज नेताओं का प्रभाव वर्तमान प्रदेश नेतृत्व कम नहीं कर पा रहा है और न ही अपना बढ़ा पा रहा है, यही कारण है कि उन नेताओं के खिलाफ माहौल बनवाया जा रहा है। लेकिन कहीं न कहीं ये पार्टी के ही खिलाफ जा रहा है।
जब पार्टी के अंदर प्रदेश नेतृत्व को लेकर असंतोष बढऩा शुरू हुआ, तो दिल्ली में उन नेताओं के खिलाफ ही शिकायत की गई, जिन्हें प्रदेश नेतृत्व पसंद नहीं करता। अब एक पहल और की गई है। इसमें संगठन और सत्ता दोनों का समन्वय हो जिसके लिए एक व्यवस्था बनाई गई है। इसके तहत भारतीय जनता पार्टी प्रदेश कार्यालय में सरकार के मंत्रीगण हर दिन 2 घंटे दोपहर 1 से 3 बजे तक नियमित रूप से बैठेंगे। उपमुख्यमंत्री जगदीश देवड़ा ने मीडिया को इसके बारे में बताया। उनका कहना था कि प्रदेश के विभिन्न अंचलों के कार्यकर्ता  कार्यालय जाकर मंत्रीगणों के साथ बैठकर अपनी समस्या बता सकें और मंत्री कोशिश करेें कि उन समस्याओं का समाधान यथासंभव जल्द से जल्द हो जाए।   हालांकि यह व्यवस्था संगठन की नाराजगी दूर करने के लिए की जा रही है, लेकिन जब मंत्रियों के पास ही सीमित अधिकार हों, तो वे समस्याएं कैसे दूर कर पाएंगे, यह देखना होगा। साथ ही यह व्यवस्था कितने दिन चलती है, यह भी देखना होगा। सही मायने में असंतोष और गुटबाजी दूर करने के लिए पार्टी को कोई ठोस कदम उठाना होगा। और यदि, नेतृत्व की तरफ से ही अपने नेताओं के खिलाफ साजिशों का दौर चलाया जाता रहा, तो निश्चित तौर पर आने वाले दिनों में भाजपा की हालत कांग्रेस से भी बदतर हो जाएगी। आखिर दिल्ली और मैनेजमेंट के दम पर कब तक जीत हासिल करते रहेंगे?

इस सम्बन्ध में मीडिया इंटेलीजेन्स से जुड़ी एजेंसी नेक्स्ट प्रेस ने एक्सरसाइज के साथ है एक सैंपल सर्वे भी किया है। अगली कड़ी में इस सम्बन्ध में एक विश्लेषण पढ़ सकेंगे।

Exit mobile version