Loksabha Election: मध्य प्रदेश में कम वोटिंग ने बढ़ाई भाजपा की चिंता

भोपाल। प्रदेश में लोकसभा चुनाव के सभी 4 चरणों के मतदान खत्म हो चुके हैं. हालांकि, इस दौरान 2019 के मुकाबले मतदान के लिए लोग घरों से कम निकले. वहीं, चुनाव में कोई लहर नहीं दिखी. ऐसे में सवाल यह उठ रहे हैं कि क्या 29 कमल खिलाने का बीजेपी का दावा सही होगा या कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पटवारी का, जिन्होंने लगभग 40 फीसद सीटें जीतने का  दावा किया है ।

राज्य में तीसरा चरण सबसे रोमांचक था. दरअसल, इस चरण में 3 बड़े नाम मैदान में थे. पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह और केंद्रीय नागरिक उड्डयन मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के किस्मत का फैसला भी इसी चरण में जनता ने किया. हालांकि, इस चरण में मतदान में मामूली बढ़त दर्ज की गई. इस चरण में 66.75% मतदान हुआ, जो 2019 के 66.63% से ज्यादा है.

राजगढ़ में अधिकतम 76% मतदान हुआ, शिवराज की विदिशा में 75% मतदान और सिंधिया की गुना 72.5% मतदान हुआ. हालांकि, फिर भी ये 2019 के मुकाबले कम है. राजगढ़ में मुकाबला कड़ा माना जा रहा है. वहीं, गुना में सिंधिया की जीत आसान मानी जा रही है. विदिशा की लड़ाई को शिवराज रिकॉर्ड मतों से जीत के तौर पर ले रहे हैं, ताकि राष्ट्रीय राजनीति में अपनी मजबूत दावेदारी पेश कर सकें।

मत प्रतिशत में आई गिरावट
राज्य में चार चरणों में कुल 66.87% मतदान हुआ, जो 2019 के 71.16% से कम है. पूरे राज्य में पुरुष और महिला दोनों के मतदान प्रतिशत में 3-4% की गिरावट आई है. कुछ जानकार कहते हैं इसके दो पहलू है. कई पारंपरिक बीजेपी के वोटरों ने अति आत्मविश्वास के कारण मतदान में भाग नहीं लिया कि मोदी लहर में उनका वोट उतनी अहमियत नहीं रखता है. वहीं, कुछ पुराने और वफादार कांग्रेस मतदाताओं ने भी मतदान में कम रुचि दिखाई होगी, जिन्हें लगता है कि पीएम मोदी की लोकप्रियता, अयोध्या राम मंदिर के मद्देनजर, मुख्य विपक्षी दल को हासिल करने के लिए कुछ भी नहीं बचा है.

कई सीटों पर  कड़ा मुकाबला
मध्य प्रदेश में 2003 से यानी लगभग 19 सालों से बीजेपी का राज है ( अगर 2018 में 15 महीने के कांग्रेस शासनकाल को छोड़ दें ) 2019 के चुनाव में बीजेपी 29 में 28 सीटें जीतने में कामयाब हुई थी, जबकि उस दौरान राज्य की सत्ता पर कमलनाथ काबिज थे, लेकिन इस बार 3 मौजूदा विधायकों सहित कई कार्यकर्ताओं के कांग्रेस छोड़ने के बावजूद छिंदवाड़ा और मंडला सहित 7-8 सीटें ऐसी हैं, जहां मुकाबला कड़ा माना जा रहा है।

छिंदवाड़ा पर रही बीजेपी की विशेष निगाह

छिंदवाड़ा जो कांग्रेस और पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ का गढ़ है. वहां बीजेपी ने आक्रामक रणनीति अपनाई. कमलनाथ के हनुमान यानी पूर्व मंत्री दीपक सक्सेना, उनके बेटे, छिंदवाड़ा महापौर ( हालांकि चुनाव के दिन उन्होंने घर वापसी का वीडियो जारी किया) और अमरवाड़ा से मौजूदा विधायक कमलेश शाह बीजेपी में शामिल हो गए. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह का रोड शो हुआ, बीजेपी का पूर्व शीर्ष नेतृत्व वहां डटा रहा. सामने कमलनाथ परिवार मोर्चा लेता रहा. कमलनाथ के अलावा उनकी पूर्व सांसद पत्नी अलका नाथ, सांसद और कांग्रेस उम्मीदवार बेटे नकुल नाथ और नकुल की पत्नी प्रिया नाथ आठों विधानसभा क्षेत्रों में आक्रामक प्रचार किया. नाथ सीनियर ने छोटी-छोटी चुनावी सभाओं में यह बताते हुए भावनात्मक कार्ड खेला कि कैसे उन्होंने अपने युवा दिनों में छिंदवाड़ा के लिए लगातार काम किया. उनके बेटे और बहू ने पूर्व मंत्री दीपक सक्सेना, मौजूदा विधायक कमलेश शाह और भगोड़ों पर जमकर निशाना साधा।

वैसे बीजेपी की सबसे बड़ी चिंता ग्वालियर-चंबल का इलाका हो सकता है, क्योंकि 2023 विधानसभा चुनावों में भी यहां बीजेपी को सिर्फ 18 सीटें मिलीं, जो कांग्रेस के 16 से सिर्फ 2 ज्यादा थी. यहां केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया तो जीत की दहलीज पर दिख रहे हैं, लेकिन बाकी की 3 सीटों पर ये विश्लेषण शायद उतना सटीक ना बैठे।

इलाके के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि सिंधिया ने गुना में लड़ाई के दौरान बहुत मेहनत की है, लेकिन पड़ोसी ग्वालियर, मुरैना और भिंड-एससी सीटों पर, भाजपा को न केवल कांग्रेस से कड़ी प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ रहा है, बल्कि अपने खुद के कैडर की नाराजगी का भी भारी पड़ सकती है. ये कोई आश्चर्य की बात नहीं होगी. अगर पार्टी अपने तीन गढ़ों (मुरैना, ग्वालियर और भिंड-एससी) में से एक, दो या सबसे खराब स्थिति में तीनों ही हार जाए. मुरैना में, तोमर के वफादार शिवमंगल तोमर (जो लगातार 2 राज्य चुनाव हार गए) को पुराने बीजेपी सदस्य पूर्व विधायक सत्यपाल सिकरवार के खिलाफ खड़ा किया गया है और भिंड-एससी सीट पर मौजूदा सांसद संध्या राय, जो पहले से ही पार्टी में विरोधियों के निशाने पर रही हैं। उन्हें मौजूदा विधायक फूल सिंह बरैया से बड़ी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है, हालांकि, मुरैना और भिंड-एससी सीट पर बसपा उम्मीदवारों की उपस्थिति वास्तव में करीबी मुकाबले की स्थिति में निर्णायक भूमिका निभा सकती है।

ग्वालियर चंबल में चुनौती दे रही है कांग्रेस
ग्वालियर चंबल के वरिष्ठ पत्रकार देव श्रीमाली कहते हैं – ग्वालियर चम्बल में लोकसभा चुनाव भी विधानसभा की तर्ज पर होने से भाजपा चिंतित दिखी. 2023 के चुनाव में जब पूरे प्रदेश में कांग्रेस की हालत बदतर रही, तब भी इन अंचल में कांग्रेस ने कड़ी टक्कर दी. 34 में से 16 सीटें जीतीं. वजह चुनाव प्रत्याशी और जातियों पर केंद्रित होना था.लोकसभा में भी कांग्रेस ने चार सीट में से एक ब्राह्मण, एक ठाकुर, एक पिछड़ा और एक दलित को टिकट दिया. इसका असर भी दिखा भाजपा का कट्टर परंपरागत ब्राह्मण वोट इस बार जाति के चक्कर में कांग्रेस के पक्ष में एकजुट दिखा, तो इसका लाभ मुरैना में भी मिलता दिखा, मुरैना में हालांकि अंतिम समय मे कांग्रेस के दिग्गज नेता राम निवास रावत के भाजपा में जाने से भाजपा को थोड़ी बढ़त मिली लेकिन वहां काँग्रेस ने ठाकुर सत्यपाल सिकरवार  को ही केंडिडेट बनाकर चुनाव को तोमर बनाम आल करने की कोशिश की  एक बात और कि सिकरवार खुद और उनके पिता गजराज सिंह दोनो भाजपा से विधायक रहे है. गजराज सिंह भाजपा के जिला अध्यक्ष भी रहे हैं. इसलिए इस परिवार की भाजपा के कार्यकर्ताओं में भी गहरी पैठ है. इसके चलते बड़ी संख्या में कार्यकर्ता पर्दे के पीछे से उनका काम करते दिखे।

इन सीटों पर भी है कांटे की टक्कर
दो-तीन अन्य सीटों पर कांटे की टक्कर वाली सीटों में से राजगढ़ भी है जहां मौजूदा सांसद रोडमल नागर ने 2019 में 4.35 लाख वोटों से जीती थी, वह अब बहुत दिलचस्प हो गई है, क्योंकि क्षेत्र के सबसे बड़े कांग्रेस नेता और पूर्व सीएम दिग्विजय सिंह अपने गृह निर्वाचन क्षेत्र में लौट आए हैं (जो उन्होंने 1984 और 1991 में जीता था, लेकिन 33 साल बाद उम्मीदवार के रूप में 1989 में हार गए ) शिवराज सिंह चौहान के वफादार रोडमल नागर को “नॉन-परफॉर्मेंस” के लिए मतदाताओं और पार्टी कार्यकर्ताओं के भारी विरोध का सामना करना पड़ रहा है।

मालवा-निमाड़ में भी बाजपा खस्ताहाल

आदिवासी बहुल मालवा-निमाड़ जो कई सालों से आरएसएस-बीजेपी का सबसे बड़ा आधार माना जाता है, वहां भी दो-तीन सीटें हैं, जिन पर करीबी मुकाबला हो सकता है. कांग्रेस का गढ़ कहे जाने वाले रतलाम-एसटी सीट पर (जिसे बीजेपी केवल दो बार 2014 और 2019 में जीत पाई है ), पांच बार के कांग्रेस सांसद और पूर्व केंद्रीय मंत्री कांतिलाल भूरिया का मुकाबला राज्य में कैबिनेट मंत्री नागर सिंह चौहान की पत्नी अनीता नागर सिंह चौहान से है इस लड़ाई को भील बनाम भिलाला जनजाति की लड़ाई के रूप में भी देखा जा रहा है.।

Sanjay Saxena

BSc. बायोलॉजी और समाजशास्त्र से एमए, 1985 से पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय , मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल के दैनिक अखबारों में रिपोर्टर और संपादक के रूप में कार्य कर रहे हैं। आरटीआई, पर्यावरण, आर्थिक सामाजिक, स्वास्थ्य, योग, जैसे विषयों पर लेखन। राजनीतिक समाचार और राजनीतिक विश्लेषण , समीक्षा, चुनाव विश्लेषण, पॉलिटिकल कंसल्टेंसी में विशेषज्ञता। समाज सेवा में रुचि। लोकहित की महत्वपूर्ण जानकारी जुटाना और उस जानकारी को समाचार के रूप प्रस्तुत करना। वर्तमान में डिजिटल और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से जुड़े। राजनीतिक सूचनाओं में रुचि और संदर्भ रखने के सतत प्रयास।

Related Articles