Tiger Project : चीतों का पुनर्वास और हमारी मानसिकता..

सुदेश वाघमारे
अल्बर्ट आइंस्टीन ने कहा है कि यदि हमें मालूम है कि हम क्या कर रहे हैं तो वह रिसर्च नहीं है। पालपुर-कूनो नेशनल पार्क में नामीबिया और अफ्रीका से आये चीतों का पुनर्वास एक रिसर्च ही है। इससे तत्काल परिणामों की अपेक्षाकरना अनुसंधान की भावना के अनुरूप नहीं है।यह घटना पुनः विवाद में इसलिये आई कि मुक्त वातावरण में छोड़े गये चीते जंगल के बाहर रिहायशी इलाकों में शिकार करने आ गये और स्थानीय ग्रामीण लाठी,भाले,पत्थर मारकर उन्हें भगाने लगे। ग्रामीणों को न तो ईकोसिस्टम से मतलब है और न ही चीतों के संरक्षण से। रील देख रही पीढ़ी को इस ज़िंदा रील में ज़्यादा मजा आया और अपने शावकों को शिकार सिखाने निकली मादा चीता पथराव की जद में आ गई। मीडिया और प्रबुद्ध गैर जानकार इसे वन विभाग की विफलता करार देने लगे।
अब यह कैसे समझाया जाये कि चीता प्रोजेक्ट एक रिसर्च प्रक्रिया का अंग है। सितम्बर २२ और फ़रवरी २३ में नामीबिया और दक्षिण अफ्रीका से आये आठ और बारह कुल बीस चीते आये थे। भले विभिन्न कारणों से कुछ की मौत हुई है।मगर प्रजनन होने से संख्या बढ़ी भी है। बीस के मुकाबले अब छब्बीस चीते (१२ वयस्क और १४ शावक) नेशनल पार्क में हैं।यह उपलब्धि छोटी नहीं है।१९८१ में अभयारण्य और २०१८ में राष्ट्रीय उद्यान बने पालपुर कूनो का क्षेत्रफल ७५० वर्गकिलोमीटर है और चीते इसी क्षेत्र में घूमें यह जरूरी नहीं है। ७५० वर्ग किमी और उसके आसपास का क्षेत्र एक खुली प्रयोगशाला है।चीते हमेशा शिकार करने बाहर आते रहेंगे।जरूरी है कि पालतू पशु हानि का उचित मुआवजा यथासमय मिलता रहे।
बाघ,तेंदुए और भालू तथा मानव के बीच द्वंद कम नहीं होगा बल्कि बढ़ेगा। यदि राजनैतिक दृढ़ता नहीं आई और जन मानसिकता नहीं बदली तो नुकसान वन जीवों का ही होगा।
नगाड़े
और नाच
और रात
कबसे नहीं
सुने देखे
देखना सुनना हो
तो कहाँ जायें
अब कहाँ है
जंगल में मंगल
बल्कि कहो
कहाँ है जंगल
कहाँ है मंगल ।
-भवानी प्रसाद मिश्र
फेसबुक वाल से साभार




