अजय बोकिल
देश में अब जो हो रहा है, वो मानो ‘आॅपरेश सिंदूर पार्ट- टू’ है। भारतीय सेना ने पाकिस्तानी आतंकी और हवाई ठिकानों को ध्वस्त कर अपनी सैनिक श्रेष्ठता और पराक्रम साबित कर दिया, लेकिन हमारे राजनेता इस पराक्रम को जाति और मजहब के आईनों में तौलने की निहायत घटिया और अस्वीकार्य सियासत में जुट गए हैं। ‘आपरेशन सिंदूर’ ने राष्ट्रीय एकता का जो भाव विश्व खड़ा किया था, ये संकीर्ण सोच वाले राजनेता उसकी जडें खोदने में लगे हैं ताकि इन जड़ों के पानी से भी वोट बैंक को सींचा जा सके।
पहलगाम आंतकी हमले के बाद भारत की पाक पर सफल सैनिक कार्रवाई की रोजाना मीडिया ब्रीफिंग करने वाली देश की दो काबिल महिला अफसर कर्नल सोफिया कुरैशी और विंग कमांडर व्योमिका सिंह की असाधारण योग्यता, कार्यनिष्ठा और राष्ट्र के प्रति समर्पण की मुक्त मन से सराहना के बजाए इस देश में कई लोग इसी काम में लगे हैं कि भारतीय सेना के पराक्रम के रूमाल में जाति, धर्म और समुदाय की संकीर्ण सोच की झालर टांक कर कैसे उसे चिंदी में तब्दील किया जाए। भारतीय सेना और सैनिकों के असंदिग्ध शौर्य, राष्ट्र भक्ति, और देश की एकता, अखंडता के सतर्क रक्षक के रूप में उनकी महान भूमिका की प्रशंसा और उस पर अभिमान की बजाए उसे जाति या धर्म की चौखट में फिट करने की मोतियाबिंदी नजर से यह देश शर्मसार है। लेकिन नेताओं की निर्लज्जता पर इसका शायद कोई असर नहीं है। ‘आपरेशन सिंदूर’ की प्रतिदिन जानकारी देने के लिए भारतीय सेना ने अपनी दो योग्य अधिकारियों कर्नल सोफिया कुरैशी और व्योमिका सिंह का जब चयन किया होगा तो उसका आधार इनकी योग्यता ही रही होगी। स्पष्ट रूप से इससे राष्ट्रीय एकात्मकता का संदेश भी गया। आज जिन्हे समूचा देश अपनी बेटी मान रहा है, उन्हें किसी जाति या धर्म तक संकुचित करने में इन नेताअों को तनिक भी लाज नहीं आ रही। देश की इस एकात्मता पर पहली चोट मप्र में भाजपा के ही एक मंत्री विजय शाह ने यह कहकर की कि पहलगाम में जिन लोगों ने हमारी बहू-बेटियों का सिंदूर उजाड़ा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने उसी धर्म विशेष की बहनों को आगे कर के उनकी ऐसी की तैसी कर दी। आदिवासी समुदाय से आने वाले इस मंत्री ने एक कार्यक्रम में मंच पर जिस गदगद भाव से यह सब कहा और जिसे सुनकर सामने बैठे लोगों के तालियां भी बजाईं, उससे लगा कि यह देश में वीरता की नई और कुत्सित परिभाषा है। मंत्री शाह की यह कथित व्याख्या भारत सरकार की नीति और एक राष्ट्र के रूप में भारत की आत्मा के भी खिलाफ थी। चौतरफा आलोचना के बाद इस मंत्री ने खेद जताया साथ में खुद को ‘शहीद’ के रूप में पेश करने की बेशर्म कोशिश भी की। मंत्री शाह को लेकर भाजपा की दुविधा कैसी राष्ट्रभक्ति है, समझना मुश्किल है।
लेकिन तब तक विंग कमांडर व्योमिका सिंह को लेकर विवाद शुरू नहीं हुआ था। इसको लेकर पहला ‘जाति बम’ समाजवादी पार्टी के सांसद रामगोपाल यादव ने फोड़ा। हालांकि प्रकट तौर पर उनका निशाना भाजपा थी, लेकिन उस बम में बारूद जातिवाद का था। यादव ने यूपी के मुरादाबाद में एक कार्यक्रम में कहा कि भाजपा ने विंग कमांडर व्योमिका सिंह पर कर्नल कुरैशी की तरह टिप्पणी इसलिए नहीं की, क्योंकि वो उन्हें राजपूत समझ रही थी। वास्तव में विंग कमांडर व्योमिका हरियाणा के जाटव समाज से हैं। जबकि कर्नल कुरैशी को उनके मुसलमान होने की वजह से भाजपा नेता ने अपशब्द कहे। इस पर बवाल मचना ही था। प्रोफेसर रहे रामगोपाल यादव यहीं पर नहीं रूके। उन्होंने अपने बयान को और जातिवादी धार देते हुए कहा कि ‘ऑपरेशन सिंदूर में एयर ऑपरेशन को अंजाम देने वाले एयर मार्शल अवधेश कुमार भारती यादव हैं। यानी एक मुसलमान, दूसरा जाटव और तीसरा यादव…ये तीनों को पीडीए (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) के ही हैं। ये पूरा युद्ध तो पीडीए ने ही लड़ा। भाजपा किस आधार पर इसका श्रेय लेने की कोशिश कर रही है?’ यानी अब सैन्य अभियान भी जाति के आधार पर ही तय होंगे और लड़े भी जाएंगे और उनका फलित भी जाति के हिसाब से ही तय होगा। यह सत्ता के लोभ में साधा गया सबसे खराब निशाना था। भले ही रामगोपाल यादव का यह बयान ‘आॅपरेशन सिंदूर’ के बाद भाजपा द्वारा इसका राजनीतिक श्रेय लेने के इरादे से देशभर में निकाली जा रही ‘तिरंगा यात्राअों’के संदर्भ में था और जल्दबाजी भरा था, बावजूद इसके इस आॅपरेशन के सियासी श्रेय की छीनाझपटी में वो इस निम्न स्तर पर उतर आएंगे, यह वाकई अफसोसनाक है। क्योंकि व्योमिका सिंह के साथ-साथ वो वायुसेना के आॅपरेशन सिंदूर के डीजीएमअो एयर मार्शल एके भारती की जाति बताने से भी नहीं चूके। गोया यह समूचा सैन्य अभियान शस्त्रों और अचूक रणनीति की जगह जातीय प्रतीक िचन्हों की बुनियाद पर लड़ा गया। इसका दूसरा अर्थ यह भी है कि इस आॅपरेशन का नेतृत्व करने वाले अगर रामगोपाल की थ्योरी के मुताबिक सम्बन्धित जातियों के न होते तो सपा की सोच के अनुसार अभियान की सफलता भी श़ून्य होती। या यूं कहे कि जातिवाद मिटाने के लिए जाति हर हाल में बताना और जताना जरूरी है। रामगोपाल यादव के इस घटिया बयान पर देश में दलितों की सबसे बड़ी पार्टी बहुजन समाज पार्टी की सुप्रीमो मायावती ने एक्स पर पोस्ट किया-“पाकिस्तान में आतंकियों के खिलाफ भारतीय सेना के आपरेशन सिंदूर के पराक्रम से पूरा देश एकजुट व गौरवान्वित है। ऐसे में सेना को धर्म व जाति के आधार पर आँकना/बाँटना घोर अनुचित है। इसको लेकर बीजेपी के मंत्री ने जो गलती की, वही वरिष्ठ सपा नेता ने भी आज की है, जो शर्मनाक एवं निन्दनीय है।” उधर यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि सपा नेता का यह बयान संकुचित सोच का प्रतीक और भारतीय सेना के सम्मान और देश की अस्मिता के खिलाफ है।‘ जहां तक व्योमिका सिंह की जाति बताने की बात है तो सोशल मीडिया पर यह पहले ही दिन से वायरल हो चुका था कि वो रविदासी (जाटव) समाज से हैं। व्योमिका किस जाति, समुदाय या प्रदेश से हैं या नहीं है, यह अत्यंत गौण है। वो एक बहादुर और सक्षम सेनाधिकारी हैं, यह सबसे अहम है। व्योमिका एक सुशिक्षित दलित परिवार से आती हैं और अपनी योग्यता के बल पर आज इस पद तक पहुंची हैं। केवल जाति की तराजू में उनकी योग्यता को तौलना देश के साथ बेईमानी करना है। इसी तरह एयर मार्शल ए.के.भारती का यादव होना महज एक संयोग है। भारती की प्रतिभा उनके श्रेष्ठ सैन्य रणनीतिकार होने में है न कि यादव होने भर से। ये सभी समूचे राष्ट्र की धरोहर हैं न किसी खास वोट बैंक के बंधुआ खातेदार हैं। केवल अपना वोट बैंक पक्का करने के लिए उन पर जाति धर्म के लेबल िचपकाना, मूर्खता ही नहीं राष्ट्रीय पाप भी है। और कर्नल सोफिया और विंग कमांडर व्योमिका तो भारत में नारी शक्ति के प्रबल होने का स्पष्ट प्रमाण भी हैं।
सबको पता है कि हमारे संविधान में सेना और उच्च न्यायपालिका में जाति, धर्म, समुदाय और प्रांत के आधार पर आरक्षण का कोई प्रावधान नहीं है। केवल एनडीए में आर्थिक आधार पर 10 फीसदी आरक्षण है, जो सभी के लिए है। संविधान निर्माता जानते थे कि सेना को किसी भी आधार पर विभाजित करना राष्ट्रीय सुरक्षा से समझौता करना है। इसलिए सेना में केवल जाति, धर्म या समुदाय के आधार पर भर्ती नहीं होती और न ही इस आधार पर कोई हिसाब रखा जाता है। वहां सभी के लिए समान अवसर हैं। देश की सीमाअोंकी रक्षा उसका परम कर्तव्य है। यही कारण है कि भारतीय सेना विश्व की चार सर्वश्रेष्ठ सेनाअों में है। उसकी अपनी उच्च परंपराएं, संस्कृति और कार्य शैली है। हालांकि यह भी सही है कि सेना में ऊंचे पर पदों पर अभी भी आरक्षित वर्ग के लोगों की संख्या कम है। लेकिन धीरे-धीरे यह कमी भी पूरी होती जा रही है। विंग कमांडर व्योमिका सिंह इसका उत्तम उदाहरण है। भारतीय थल सेना में जाति, धर्म, समुदाय और प्रांत के आधार पर कुछ रेजिमेंट अभी भी हैं। लेकिन ये रेजिमेंटें अंग्रेजों ने अपने हितों के हिसाब से बनाई थीं। आजाद भारत में यह परंपरा खत्म हो चुकी है बावजूद इसके अभी भी इस तरह जाति या धर्म आधारित रेजिमेंटें बनाने की मांग समय समय पर उठती रही है, लेकिन सभी सरकारों ने इसे खारिज कर िदया है। दलित वंचित समुदाय के लोग भी देश की सेवा उत्कट भाव से करें, इसलिए बाबा साहब अंबेडकर ने दलितों से अधिकाधिक संख्या में सेना में शामिल होने का आह्वान किया था। बाद में बाबू जगजीवन राम और रामदास आठवले जैसे नेता सेना में भी जाति आधारित आरक्षण की मांग उठाते रहे हैं। लेकिन शायद ही और कोई उससे सहमत रहा हो।
कार्यकारी प्रधान संपादक
‘राइट क्लिक’
( ‘सुबह सवेरे’ में दि. 17 मई 2025 को प्रकाशित)
Openion : पराक्रम के सिंदूर को जाति में तौलने के निर्लज्ज सियासी पैमाने !
