RSS : अंतत: धनखड़ भी सतपाल मलिक ही साबित हुए..

सतपाल मलिक की भांति विपक्ष की पिच पर खेलने लगे थे धनखड़ साहब ?
LC भंडारी की फेसबुक वाल से साभार
पिछले काफी समय से धनकड़ साहब बीजेपी के विरोधियों से लगातार सार्वजनिक और व्यक्तिगत रूप से मिल रहे थे वह कई बार भाजपा को झटका दे चुके थे लेकिन पहला मजबूत झटका भाजपा सरकार को तब लगा जब धनकड़ साहब ने एक सार्वजनिक कार्यक्रम में शिवराज सिंह चौहान को लगभग बेइज्जत किया
दूसरा बड़ा झटका भाजपा सरकार को लगा जब केंद्र सरकार जस्टिस वर्मा के खिलाफ लोकसभा में महाभियोग लेकर आई. केंद्र सरकार की योजना थी कि लोकसभा स्पीकर की अगुवाई में जस्टिस वर्मा को हटाने की प्रक्रिया होगी और ये कार्य केंद्र सरकार करेगी

तभी राज्यसभा में वो हुआ, जिसने भाजपा, केंद्र सरकार को हिला दिया. VP धनखड़ साहब ने अचानक से राज्यसभा में जस्टिस वर्मा के ख़िलाफ़ विपक्ष द्वारा लाए गए महाभियोग के नोटिस को स्वीकार कर लिया. इस नोटिस पर 63 सांसदों के साइन थे और ये सभी सांसद विपक्ष के थे. धनखड़ साहब ने ये सब तब किया, जब राज्यसभा में नेता सदन जेपी नड्डा और वरिष्ठ मंत्री अनुपस्थित थे. सिर्फ क़ानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल और जी किशन रेड्डी थे

अपनी सरकार को बिना विश्वास में लिए धनखड़ साहब ने विपक्ष का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया, मेघवाल और रेड्डी के चेहरे की हवाइयां उड़ गई. केंद्र सरकार जहां लोकसभा में प्रस्ताव लाकर जस्टिस वर्मा को हटाने की प्रक्रिया का नेतृत्व कर न्यायिक सुधार की बड़ी मिसाल पेश करने जा रही थी, तभी धनखड़ साहब ने राज्यसभा के माध्यम से इसमें विपक्ष की भी एंट्री करा दी. केंद्र के सूत्रों की मानें तो ये सब जस्टिस वर्मा को बचाने की योजना का हिस्सा था क्योंकि विपक्ष के कई नेता जस्टिस वर्मा को हटाने के विरोध में बोल चुके थे
जो धनखड़ साहब मीडिया के सामने न्यायिक गंदगी के खिलाफ हुंकार भर रहे थे, वही धनखड़ साहब राज्यसभा में विपक्ष के एजेंडे को बढ़ाकर जस्टिस वर्मा को बचाने की प्रक्रिया का हिस्सा बन गए थे

इसके साथ ही विपक्ष प्रयागराज हाईकोर्ट के जज जस्टिस शेखर यादव को हटाने के लिए महाभियोग लाने जा रहा था, जिन्होंने VHP के कार्यक्रम में कहा था कि यह देश कठमुल्लों से नहीं चलेगा. VP धनखड़ साहब विपक्ष के इस प्रस्ताव को स्वीकार करने को तैयार हो गए थे. मंगलवार को विपक्ष का यह प्रस्ताव आना था. केंद्र की इसकी कोई जानकारी नहीं थी
इसका अर्थ यह हुआ कि जो केंद्र सरकार लोकसभा के माध्यम से जस्टिस वर्मा को हटाने जा रही थी, धनखड़ साहब ने राज्यसभा के माध्यम से उसमें विपक्ष को शामिल कर जस्टिस वर्मा को बचाने की पिच तैयार कर दी थी

वहीं जो केंद्र सरकार जस्टिस शेखर यादव को बचाने में लगी थी, धनखड़ साहब केंद्र को बताए बिना विपक्ष के महाभियोग प्रस्ताव को स्वीकार कर जस्टिस यादव को हटाने की प्रक्रिया शुरू करने वाले थे
अर्थात धनखड़ साहब विपक्ष की उस प्रक्रिया का हिस्सा बन गए थे, जिसके तहत नोटों के बोरे के मामले में फंसे जस्टिस वर्मा को बचाया जाना था और संघ के आनुवांशिक संगठन VHP के मंच से हिंदुत्व की हुंकार भरने वाले जस्टिस शेखर यादव को हटाया जाना था

और ये उस भाजपा की सरकार में किए जाने का षड्यंत्र था, जो भाजपा RSS का ही आनुवंशिक संगठन है
सोचिए कि ये RSS, BJP, VHP और PM मोदी के लिए कितनी शर्म की बात होती कि VHP के मंच से हिंदुत्व की बात करने वाले जज को BJP की सरकार में विपक्ष द्वारा BJP के बनाए उपराष्ट्रपति के सहयोग से हटा दिया जाता ?
यही कारण था कि विपक्ष पिछले दो-तीन महीने से आक्रामक था क्योंकि राज्यसभा के सभापति शायद उनके अपने हो चुके थे. संभवतः विपक्ष की योजना थी कि राज्यसभा में केंद्र सरकार के बिल रोके जाएंगे, सरकार को राष्ट्र के सामने शर्मशार किया जाएगा

सरकार को समय रहते इसकी भनक लग गई. इसके बाद राजनाथ सिंह के कार्यालय में 10-10 के ग्रुप में NDA के सांसद बुलाए गए और कोरे कागज पर साइन कराए. ये साइन उस स्थिति के लिए थे कि अगर धनखड़ साहब नहीं माने तो उन्हें सरकार महाभियोग लाकर हटा देगी
इसके बाद रात 8 बजे के बाद धनखड़ साहब को एल कॉल गया. कॉल पर बहस हुई, धनखड़ साहब को संदेश दिया गया कि सांसदों के साइन हो चुके हैं. अब आपको तय करना है. इसके बाद धनखड़ साहब ने स्वास्थ्य कारणों का हवाला देते हुए इस्तीफ़ा दे दिया.

जो विपक्ष धनखड़ साहब को झुकी कमर, संघी जाट, लोकतंत्र का भक्षक बता रहा था, उनके इस्तीफे पर वही विपक्ष उन्हें लोकतंत्र का रक्षक बताते हुए रुदन कर रहा है

और जिन PM मोदी ने हामिद अंसारी जैसे PFI समर्थक उपराष्ट्रपति की विदाई पर उनके सम्मान में भाषण दिया था, ग़ुलाम नबी आज़ाद की विदाई पर भावुक हो गए थे
उन PM मोदी ने धनखड़ साहब की विदाई पर सिर्फ़ ये लिखा कि उन्हें बहुत से बड़े पदों पर काम करने का मौक़ा मिला है, वो जल्दी स्वस्थ हों. PM ने न तो धनखड़ साहब के योगदान की सराहना की और न कुछ ज़्यादा लिखा. PM के अलावा BJP के किसी नेता ने धनखड़ साहब के इस्तीफे पर एक शब्द तक नहीं लिखा है.
इससे आप समझ सकते हैं कि केंद्र सरकार धनखड़ साहब से पीछा छूटने पर राहत महसूस कर रही है क्योंकि केंद्र को लगता है कि धनखड़ साहब उसे धोखा दे रहे थे

अब भाजपा को शायद समझ आ जाए कि जब किसी नेता को निर्णायक जिम्मेदारी दी जाए तो उसका बैकग्राउंड RSS का हो न कि किराए का आयातित नेता
भाजपा ने दूसरे दलों से जितने भी आयातित किए हैं, उसमें 80% से अधिक या तो नकारा हैं या फिर एक समय पर धोखा दे गए हैं
मोदी ने आयातीत जाटों पर बार-बार भरोसा किया लेकिन 2 बार पीठ मे खंजर खाने के बाद मोदी सरकार को अब किसी अन्य आयातीत जाट नेता को किसी महत्वपूर्ण पद पर बैठाने से पहले 1000 बार सोचना पड़ेगा

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