सेना के आधुनिकीकरण में तेजी लाना वक़्त की जरूरत

संजय सक्सेना
हमने एक नहीं कई बार अपने दुश्मनों के दाँत खट्टे किये हैं और हाल ही में पाकिस्तान की भी एक बार फिर सबक सिखाया है। पाकिस्तान मुहं की खाने के बाद भी सुधरेगा, इसमें संदेह ही है। इस बीच रक्षा परियोजनाओं में देरी पर भारतीय वायु सेना प्रमुख एयर चीफ मार्शल अमरप्रीत सिंह ने जो चिंता व्यक्त की है और सवाल उठाये हैँ, वो केवल वाजिब ही नहीं, बहुत समीचीन भी हैँ। क्षेत्रीय तनावों के साथ ही कई मोर्चे पर संघर्ष करने वाली सेना के आधुनिकीकरण में अधिक तेजी लाना वक़्त की जरूरत है। इसके लिए केवल विदेशी सौदों पर निर्भर नहीं रहा जा सकता, मेक इन इंडिया प्रॉजेक्ट के तहत भी देश में इनका उत्पादन बढ़ाना होगा।
एयरफोर्स चीफ की टिप्पणी ऐसे वक्त आई है, जब भारत ने हाल ही में ऑपरेशन सिंदूर के तहत पाकिस्तान में मौजूद आतंकी ठिकानों को ध्वस्त करने में सफलता हासिल की और बेहतरीन हवाई क्षमता का प्रदर्शन किया था। इसी टकराव ने यह भी दिखाया कि जंग में लड़ाकू विमानों की भूमिका कितनी अहम हो चुकी है।
असल में भारत के सामने दो फ्रंट खुले हुए हैं- पाकिस्तान और चीन और चिंता की बात यह है कि जो चीन के पास है, वह किसी न किसी तरह पाकिस्तान के पास पहुंच ही जाता है। हालिया टकराव में ही उसने तुर्किये के ड्रोन और चीन के लड़ाकू विमानों का इस्तेमाल किया। भारत के लिए ताजा रिपोर्ट चिंता बढ़ाने वाली है कि चीन अपने जे -35 स्टेल्थ फाइटर जेट भी पाकिस्तान को देने जा रहा है। सरकार ने 5वीं पीढ़ी के स्टेल्थ फाइटर जेट के निर्माण को मंजूरी तो दी है, पर अगर उम्मीद पूरी हुई तो भी इनको बनने में 10 साल लग जाएंगे।
भारतीय वायु सेना के पास 42.5 स्क्वाड्रन लड़ाकू विमान होने चाहिए, लेकिन हैं केवल 30। हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड अभी तक स्वदेशी तेजस मार्क – 1A की डिलिवरी नहीं कर पाया है। इसकी वजह से वायु सेना की रक्षा तैयारियों पर असर पड़ रहा है। एयर चीफ पहले भी यह मुद्दा उठा चुके हैं।
इस सिलसिले में एक अच्छी बात ये है कि भारत ने हाल में ‘मेक इन इंडिया’ पर दम लगाया है। 2023-24 में 1.27 लाख करोड़ का रक्षा उत्पादन इस प्रॉजेक्ट के तहत हुआ साथ ही देश ने 21 हजार करोड़ रुपये से ज्यादा का डिफेंस एक्सपोर्ट किया। 100 से अधिक मुल्कों ने भारत से रक्षा उपकरण और हथियार खरीदे हैं। एक दशक में करीब 30 गुना तेजी आई है।
भारत को आने वाले वक्त में अपनी रक्षा जरूरतों के लिए आत्मनिर्भर बनना होगा। साथ ही, जिस तरह से चीन ने अपनी सेना का आधुनिकीकरण किया है, भारत को भी उस राह पर तेजी से आगे बढ़ना होगा। इसके लिए डिफेंस प्रॉडक्शन को फास्ट ट्रैक करने की जरूरत है और इसमें कोई कोताही नहीं होनी चाहिए।
इधर यदि बात भारत और पाकिस्तान के बीच टकराव के दौरान परमाणु हथियारों के उपयोग की आती है, तो इस बारे में देश के चीफ ऑफ़ डिफेन्स स्टॉफ यानि सी डी एस अनिल चौहान का बयान इसे समझने के लिए काफी है।
असल में भारत और पाकिस्तान के बीच जब भी तनाव बढ़ता है, तो पश्चिम की तरफ से सबसे पहली चिंता यही जताई जाती है कि अगर टकराव हुआ तो वह परमाणु युद्ध तक पहुंच सकता है। कारगिल से लेकर बालाकोट तक, अतीत में कई बार ऐसा हो चुका है। यहां तक कि कारगिल को लेकर कहानियां तक फैल चुकी हैं कि परमाणु युद्ध आसन्न था, पर अमेरिकी दखल से टल गया। इस बार भी अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप एटमी वॉर रुकवाने के लिए खुद से अपनी पीठ थपथपा रहे हैं। विडंबना है कि परमाणु हथियारों के इस्तेमाल का इकलौता कलंक अमेरिका के ही माथे है।
पश्चिम का यह अंदेशा दरअसल भारत की क्षमताओं को कम करके आंकना है। परमाणु हथियार किसी भी युद्ध का अंतिम विकल्प हैं और उस सीमा पर पहुंचने से पहले कई सारे पड़ाव आते हैं। भारत ने वैसे भी ‘नो फर्स्ट यूज’ की नीति अपना रखी है यानी देश परमाणु हथियारों का पहले इस्तेमाल नहीं करेगा। किसी ऐसे मुल्क के खिलाफ भी भारत एटमी वेपन नहीं निकालेगा, जिसके पास परमाणु हथियार नहीं हैं। भारत ने यह ताकत हासिल की है सुरक्षा के लिए, आक्रामकता दिखाने और आक्रमण के लिए नहीं।
सी डी एस ने इंटरव्यू में कहा कि सेना के लोग सबसे ज्यादा तर्कसंगत होते हैं, क्योंकि उन्हें परिणाम का पता है। इसका प्रत्यक्ष अनुभव ऑपरेशन सिंदूर के दौरान हुआ था। पहलगाम आतंकी हमले को लेकर पूरा देश गुस्से से उबल रहा था, लेकिन तब भी भारतीय सेना ने जवाबी कार्रवाई में संयम बरता और केवल पाकिस्तान में मौजूद आतंकी ठिकानों को ही निशाना बनाया। पाकिस्तान की तरफ से उकसावे वाली कार्रवाइयों के बावजूद भारत के हमले सटीक और नियंत्रित रहे।

Sanjay Saxena

BSc. बायोलॉजी और समाजशास्त्र से एमए, 1985 से पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय , मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल के दैनिक अखबारों में रिपोर्टर और संपादक के रूप में कार्य कर रहे हैं। आरटीआई, पर्यावरण, आर्थिक सामाजिक, स्वास्थ्य, योग, जैसे विषयों पर लेखन। राजनीतिक समाचार और राजनीतिक विश्लेषण , समीक्षा, चुनाव विश्लेषण, पॉलिटिकल कंसल्टेंसी में विशेषज्ञता। समाज सेवा में रुचि। लोकहित की महत्वपूर्ण जानकारी जुटाना और उस जानकारी को समाचार के रूप प्रस्तुत करना। वर्तमान में डिजिटल और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से जुड़े। राजनीतिक सूचनाओं में रुचि और संदर्भ रखने के सतत प्रयास।

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