राज-काज: राहुल गांधी के ‘लंगड़े घोड़े’ को लेकर भी सियासत….

दिनेश निगम ‘त्यागी’
राहुल गांधी द्वारा बोले गए हर वाक्य और शब्द पर सियासत की जाने लगी है, हालांकि यह भाजपा की कुशल रणनीति का हिस्सा भी है। राहुल भोपाल में कांग्रेस नेताओं की तीन तरह के घोड़ों से तुलना कर रहे थे, इनमें एक ‘लंगड़ा घोड़ा’ भी था। राहुल के साथ हर काेई समझता है कि वे लंगड़े घोड़े की तुलना अपनी पार्टी में एक तरह के नेताओं से कर रहे थे। जिनके लिए यह कहा गया, उनमें से कोई नेता लंगड़ा भी नहीं है। उन्होंने इस शब्द का प्रयोग सिर्फ मुहावरे के तौर पर ही किया। किसी दिव्यांग अथवा लंगड़े को उन्होंने लंगड़ा नहीं कहा। बावजूद इसके कुछ दिव्यांग मैदान में उतर आए। उन्होंने कहा कि राहुल गांधी ने लंगड़ा शब्द का इस्तेमाल कर दिव्यांगों का अपमान किया है। इसके लिए उन्हें माफी मांगना चाहिए। कुछ दिव्यांग तख्ती लिए प्रदेश के सहकारिता मंत्री विश्वास सारंग से मिल कर विरोध दर्ज कराने पहुंच गए। एक पद्मश्री प्राप्त दिव्यांग ने भी राहुल के बयान पर कड़ी आपत्ति दर्ज कराई और कहा कि राहुल को स्पष्टीकरण देना चाहिए। कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी ने इस पर सफाई दी। उन्होंने कहा कि राहुल का उद्देश्य किसी दिव्यांग की भावना को ठेक पहुंचाना नहीं था, फिर भी यदि किसी को बुरा लगा हो तो वे माफी मांगते हैं। फिर भी मामला शांत नहीं हुआ। कुछ दिव्यांग और भाजपा राहुल पर लगातार हमलावर हैं। यही तो राजनीति है।
0 खरी-खरी कहने के साथ चूक भी कर गए राहुल….
– लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने अपनी छवि खरी-खरी कहने वाले नेता की बनाई है। अपनी इस शैली के कारण वे कई बार नुकसान भी उठा जाते हैं। उनके हाल के भोपाल के दौरे को ही ले लीजिए। उन्होंने खरी-खरी बातें की और अपनी दादी पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को जूते पहने पुष्पांजलि अर्पित करने की चूक कर दी। ‘ट्रंप का फोन और नरेंदर-सरेंडर’ कह कर उन्होंने समूची भाजपा को उद्वेलित कर दिया। इस बयान के बाद भोपाल से लेकर दिल्ली तक भाजपा का हर प्रमुख नेता उनके खिलाफ मैदान उतर आया। दूसरा, तीन तरह के घोड़ों से कांग्रेस नेताओं की तुलना कर राहुल ने पार्टी के अंदर और बाहर बहस को जन्म दे दिया। उनके दोनों बयानों के गहरे अर्थ हैं और सोच समझ कर दिए गए लगते हैं। उनका यह दौरा चूंकि मध्यप्रदेश में कांग्रेस को मजबूत करने के उद्देश्य को लेकर था, इसलिए उन्होंने नेताओं की तुलना तीन तरह के घोड़ों रेस वाले, बारात वाले और लंगड़े से की। इस बात से कोई इंकार नहीं कर सकता कि कांग्रेस में तीन तरह के ही नेता हैं। पहले जो मैदान में सक्रिय हैं। दूसरे, सिर्फ बैठकों- कार्यक्रमों में आने की आैपचारिकता करते हैं और तीसरे वे जो कांग्रेस का नुकसान और भाजपा काे फायदा पहुंचाते हैं। इस लिहाज से राहुल ने कुछ गलत नहीं कहा, बशर्तें वे ऐसे नेताओं को छांट कर काम पर लगा पाएं।
0 मंच के बहाने दिग्विजय की नेताओं को नसीहत….
– इसीलिए कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह को उस्तादों का उस्ताद कहा जाता है। मंच पर न बैठने के अपने निर्णय को उन्होंने व्यक्तिगत भी कह दिया और तंज कसते हुए यह भी कि कांग्रेस नेताओं को जनता के बीच रहना होगा। तात्पर्य यह कि यदि मंच पर बैठते हो तो जनता से दूर और नीचे बैठे तो जनता के बीच। दिग्विजय ने यह नसीहत अपने मंच से नीचे बैठने के पक्ष में कारण गिनाते हुए दी। बता दें, उन्होंने ग्वालियर के कार्यक्रम में भविष्य में मंच पर न बैठने की घोषणा की थी और इसके बाद जबलपुर के कार्यक्रम में मंच की बजाय नीचे बैठ गए थे। पूर्व मंत्री लखन घनघोरिया ने उनके पैर पकड़ कर मंच पर ले जाने का आग्रह किया था लेकिन दिग्विजय नहीं माने थे। किसी दूसरे नेता ने मंच पर न बैठने के मसले पर दिग्विजय का अनुसरण भी नहीं किया था। संभवत: इसीलिए उन्होंने मंच के बहाने पूरी पार्टी को ही कटघरे में खड़ा कर दिया। दिग्विजय के इस कदम को राहुल गांधी द्वारा नेताओं की घोड़ों से तुलना से जोड़ कर भी देखा जा रहा है, क्योंकि राहुल के निशाने पर कमलनाथ, दिग्विजय सिंह जैसे नेता भी थे। लिहाजा, दिग्विजय ने इस स्पष्टीकरण के जरिए अपनी उपयोगिता सिद्ध करने की कोशिश की है। मंच पर न बैठने को लेकर दिग्विजय ने सोनिया, राहुल और महात्मा गांधी तक के उदाहरण दे डाले हैं। पार्टी नेतृत्व इस नसीहत को कैसे लेता है, देखना होगा।
0 शिवराज ने क्यों कहा, मोहन यादव ही मुख्यमंत्री….!
– केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान पूरे देश के मंत्री हैं, लेकिन उन्होंने अपने गृह क्षेत्र सीहाेर में पदयात्रा शुरू की तो कई तरह की अटकलों को जन्म मिला। अब अचानक उन्होंने कह दिया कि इधर-उधर कोई कयास मत लगाना, मोहन यादव ही मुख्यमंत्री हैं। मैं कृषि मंत्री हूं, पार्टी ने जो कह दिया, वह मेरे लिए ब्रह्मवाक्य है। उन्होंने कहा कि मेरी पद यात्रा को मीडिया के मित्रों ने कुछ अलग रूप दे दिया। कहा गया कि कि ये निकल गया, पता नहीं क्यों निकला है। शिवराज ने यह बात मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव की मौजूदगी में शनिवार को सीहोर के एक कार्यक्रम में सार्वजनिक तौर पर कही। बड़ा सवाल यह है कि सरकार बनने के लगभग 6 माह बाद उन्हें यह कहने की जरूरत क्यों पड़ गई कि मोहन यादव ही मुख्यमंत्री हैं। उन्होंने यह भी कहा कि जब तक मेरी सांस चलेगी, जो काम मिला उसे दिल्ली और देश में रहकर पूरा करता रहूंगा, अन्य कोई सोच हो ही नहीं सकती। इसलिए मीडिया के मित्रों मैं आपसे कहना चाहता हूं कि इधर-उधर कोई कयास मत लगाना। मोहन यादव मेरे मुख्यमंत्री हैं, और हम उनके साथ खड़े हैं। यह शिवराज का मार्ग है, इसमें न दाएं है न बाएं है। पहले शिवराज द्वारा शुरू की गई पद यात्रा के मायने तलाशे जा रहे थे, अब उनके इस कथन के निहितार्थ तलाशे जा रहे हैं। ऐसा तो नहीं कि वे मुख्यमंत्री की कुर्सी को भूल नहीं पा रहे हैं।
0 कॉश! इन मंत्री जी जैसा हो जाए हर जन प्रतिनिधि….
– हम बात कर रहे हैं प्रदेश के ऊर्जा मंत्री प्रद्युम्न सिंह तोमर की। जनता के बीच का लीडर कैसा होना चाहिए, किसी को देखना है तो तोमर की कार्यशैली पर नजर दौड़ा ले। हर सांसद, विधायक और मंत्री कहलाता तो जनता का प्रतिनिध है लेकिन प्रद्युम्न तोमर जैसा कोई नहीं। सबने देखा है कि जनता की मांग पूरी नहीं हुई तो उन्होंने जूता-चप्पल त्याग दिए। गंदगी दिखी तो कभी नालियां साफ करने उतर गए, कभी शौचालय में स्वीपर का काम करते नजर आए। समस्याओं को देखने निकले और भूख लगी तो किसी भी घर से रोटी मांग कर उसकी देहरी पर ही बैठ कर बड़े चाव से भोजन करते नजर आ गए। बिजली की समस्या आई तो खुद बिजली के खंबे पर चढ़ गए। हाल ही में डबरा से लोगों की शिकायत आई तो रात 2 बजे ही पहुंच गए और रात में ही सारे अफसर बुला लिए। भीषड़ गर्मी में टेंट लगाकर बिना एसी के सो गए। कहने का तात्पर्य यह कि आजादी के आंदोलन से लोगों को जोड़ने के लिए जो कभी महात्मा गांधी करते थे, वह करते प्रद्युम्न नजर आ जाते हैं। उद्देश्य सिर्फ एक है जन प्रतिनिधि के नाते जनता की सेवा। कॉश, हर जनप्रतिनिधि ऐसा हो जाए तो राजनीति से लोगों के उठे भरोसे की बहाली हो जाए। हालांकि ज्योतिरािदत्य सिंधिया के सामने साष्टांग दंडवत होने को लेकर वे आलोचना के केंद्र में रहते हैं। लोगों को उनका यह बर्ताव पसंद नहीं।