Editorial
भोपाल की सडक़ इंजीनियरिंग

संजय सक्सेना
राजधानी होने के बावजूद भोपाल की सडक़ें न तो पूरी तरह से तकनीकी रूप से सही हैं और न ही यातायात के लिए सुगम। यही नहीं, हर सडक़ भ्रष्टाचार की एक कहानी अलग से कहती है। तभी तो सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश को सडक़ों पर उतरना पड़ा। सुनिये उन्होंने भोपाल की सडक़ों को लेकर जो भी कहा, वह आम आदमी की पीड़ा की परिणिति ही कही जाएगी।
असल में सुप्रीम कोर्ट की सडक़ सुरक्षा समिति के अध्यक्ष और शीर्ष अदालत के पूर्व न्यायाधीश अभय मनोहर सप्रे शुक्रवार को राजधानी की सडक़ों पर उतरे। उन्होंने 8 प्रमुख ब्लैक स्पॉट का मुआयना किया। ये वो जगहें हैं, जहां आये दिन दुर्घटनाएं होती हैं। हर लोकेशन पर अधिकारियों से लगातार सवाल करते रहे- यहां कितनी मौतें हुईं? दिन में या रात में? क्या रोड मार्किंग है? ब्रेकर बनाए? फिर भी एक्सीडेंट क्यों हो रहे हैं? दुर्घटनाओं पर उन्होंने सवाल पूछे तो लोक निर्माण विभाग के अधिकारियों ने बताया कि हम साइनेज लगा रहे हैं। ये बात सोचने की है कि अभी तक क्या सो रहे थे?
यह भी बताया गया कि सडक़ इंजीनियरिंग में जो भी दिक्कत हैं, उन्हें ठीक कर दिया गया है। इस पर सप्रे ने फिर सवाल किया- जब सब कुछ ठीक कर रहे हैं तो फिर हादसों में मौतें क्यों हो रही हैं? सडक़ हादसे में एक भी मौत नहीं होनी चाहिए। दोपहिया में आगे और पीछे दोनों को हेलमेट पहनाएं। इस दौरान उन्होंने बागसेवनिया तिराहा री-डिजाइन करने, 1250 चौराहे से रोटरी हटाने और ज्यादातर ब्लैक स्पॉट पर लेफ्ट टर्न क्लियर करने के निर्देश दिए।
भेल में निरीक्षण पर पहुंचे जस्टिस सप्रे बोले- आज मेरी गाड़ी ही ऊपर-नीचे हो रही थी, आम दिनों में क्या हालत होती होगी? अफसरों ने बताया- सडक़ भेल की है। सप्रे ने कहा- तत्काल सुधार कराएं। चौराहे पर साइनेज, रोड मार्किंग जैसे जरूरी काम प्राथमिकता से कराएं।
तरण पुष्कर तिराहे को लेकर उन्हें बताया गया यहां दो हादसों में दो मौतें हुईं। सप्रे ने पूछा- रोड इंजीनियरिंग में क्या सुधार किया? इंजीनियर बोले- संजीवनी की ओर लेफ्ट टर्न के लिए ज़मीन चाहिए। पोल हटाने का काम चल रहा है। सप्रे ने निर्देश दिए- रोड मार्किंग कराएं, रात के लिए साइनेज लगाना अनिवार्य है। 1250 चौराहे पर पता चला-तीन साल में दो हादसे, दोनों रात में। कारण- ओवरस्पीड और बिना सीट बेल्ट गाड़ी चलाना। जस्टिस सप्रे ने पूछा- इतनी बड़ी रोटरी क्यों? बोले- मूर्ति हटाएं, चौराहा री-डिजाइन करें। सिग्नल इस तरह लगाएं कि दूर से साफ नजर आएं, ताकि हादसे रोके जा सकें।अलग स्थान पर लगाया जाए। सिग्नल भी ठीक कराएं ताकि दूर से दिखाई दें।
कोर्ट चौराहे पर तीन साल में 7 एक्सीडेंट, दो मौतें हुईं। बाद में रोड सेफ्टी के लिए डिवाइडर, जेब्रा क्रॉसिंग, लेफ्ट टर्न और सिग्नल सुधारे गए। पर्यावास तिराहे की क्रॉसिंग बंद की गई। जस्टिस सप्रे को बताया गया कि इन सुधारों के बाद यहां अब हादसे नहीं हो रहे हैं।
आंकड़ों की बात करें तो 2020 से हर साल राजधानी में सडक़ हादसे बढ़े हैं। इनमें होने वाली मौतों और घायलों की संख्या में भी इजाफा हो रहा है। एनसीआरबी के डाटा के मुताबिक तमिलनाडु के बाद मध्यप्रदेश में सबसे ज्यादा सडक़ हादसे होते हैं। भोपाल में निरीक्षण के दौरान जस्टिस सप्रे ने कहा- छह महीने में सडक़ें ठीक करें, फिर निरीक्षण करूंगा।
कैसी विडम्बना है कि राजनीतिक और प्रशासनिक गतिविधियों के केंद्र भोपाल में ही सडक़ों में इतनी गलतियां हैं, तो और शहरों और मार्गों की हालत के बारे में सोचा जा सकता है। एक तो भोपाल ही हर सडक़ पार्किंग बन जाती है, सडक़ों के किनारे के फुटपाथ तो बाजार बने हुए हैं। हाल में कोलार की सिक्स लेन बनी है, वहां की दो लेन तो पार्किंग ही बनी दिखती हैं। अधिकांश सडक़ों पर लेफ्ट टर्न फ्री नहीं है। हर सडक़ बनने के बाद से ही बिखरने लगती है, यानि साफ तौ पर कहा जा सकता है कि राजधानी की हर सडक़ भ्रष्टाचार, अराजकता और बहुत ही खराब सडक़ इंंजीनियरिंग की कहानी कहती है, पूर्व न्यायाधीश ने तो सुन ली, अब कुछ सुधार होता है या नहीं, यह नहीं कहा जा सकता।


