वक्फ संशोधन विधेयक के विरोध में शुरू हुए आंदोलन के बाद पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद में हुई हिंसा में दो हिंदू पिता-पुत्र की मृत्यु हो गई और उसके बाद पुलिस की गोलीबारी में एक मुस्लिम व्यक्ति मारा गया। इस घटना ने राज्य में हवा के रुख की ओर इशारा किया है, जहां ममता बनर्जी तीसरी बार सत्ता में आने की कोशिश कर रही हैं, वहीं भाजपा पश्चिम बंगाल में हिंदू-मुस्लिम ध्रुवीकरण को चुनाव में भुनाने की पूरी तैयारी कर रही है। राज्य की सत्ता पर भाजपा की नजरें लंबे समय से जमी हैं।
मुर्शिदाबाद में हिंसा की घटनाओं की शुरुआत मुस्लिम समुदाय द्वारा वक्फ संशोधन विधेयक के खिलाफ विरोध-प्रदर्शन से हुई। इसे मुसलमान अपने धर्म का पालन करने के अधिकार में हस्तक्षेप के रूप में देखते हैं। फिलहाल, हिंसा पर काबू पा लिया गया है, उच्च न्यायालय के कहने पर वहां केंद्रीय अर्धसैनिक बलों को तैनात किया गया है और राज्य पुलिस ने हिंसा कैसे शुरू हुई, इसकी जांच के आदेश दे दिए हैं।
हर समय चुनावी मोड में रहने वाली भाजपा ने हिंसा को नियंत्रित करने में विफल रहने के लिए सत्ता में बैठी तृणमूल कांग्रेस यानि टीएमसी पर निशाना साधा है और उस पर मुसलमानों और बांग्लादेशी घुसपैठियों के प्रति नरम रुख अपनाने का आरोप लगाया है। आने वाले हफ्तों में वह इसी नैरेटिव को और आगे बढ़ाएगी। दूसरी तरफ ममता बनर्जी ने भाजपा के साथ ही केंद्र सरकार पर आरोप लगाते हुए हिंसा को उसकी विफलता बताया है, क्योंकि अंतरराष्ट्रीय सीमाओं की निगरानी और घुसपैठियों को रोकना केंद्र सरकार की जिम्मेदारी है। मुर्शिदाबाद हिंसा के लिए केंद्रीय गृहमंत्री को दोषी ठहराते हुए ममता ने प्रधानमंत्री से अपने गृह मंत्री को नियंत्रित करने का आह्वान किया है।
राजनीतिक पंडित कहते हैं कि बंगाल वाले मामले में भाजपा और टीएमसी दोनों को ही ध्रुवीकरण से फायदा होने की संभावना है। इसने मुर्शिदाबाद के हिंदुओं को भयभीत और क्रोधित कर दिया है और इससे राज्य के बाकी हिंदुओं को भी संदेश जा रहा है। भाजपा इस भावना को भुनाएगी। कई लोगों की नजर इस पर भी होगी कि क्या ममता मुस्लिम दोषियों के साथ सख्त व्यवहार करती हैं? उनके भतीजे अभिषेक के बारे में कहा जाता है कि वे इसके पक्ष में हैं।
दूसरी ओर, जो मुसलमान घिरा हुआ महसूस कर रहे हैं, वे ममता के लिए और लामबंद हो जाएंगे। इससे कांग्रेस और वाम दलों के मैदान से बाहर होने की संभावना है, जिससे 2026 में फिर से भाजपा-टीएमसी के बीच आमने-सामने का मुकाबला हो सकता है। यदि अल्पसंख्यक वोटों में टूट होती है, तो इससे ममता को ही नुकसान होगा।
यकीनन, यदि फिर से सत्ता में आना है तो ममता बनर्जी को हिंदुओं के बीच भी अपना आधार बनाए रखने की भी जरूरत होगी और वे यह अच्छी तरह से जानती हैं। उन्होंने दोहराया है कि अगले साल अप्रैल में दीघा में एक नए जगन्नाथ धाम का उद्घाटन किया जाएगा। और यह जानते हुए कि सभी समुदायों की महिलाएं उनका समर्थन करती हैं, वे राज्य में पात्र महिलाओं को हर महीने दी जाने वाली एक हजार रुपए की राशि बढ़ा सकती हैं। इस योजना की शुरुआत उन्होंने 2021 में की थी और न केवल इसका उन्हें भरपूर लाभ मिला, कई दूसरे राज्यों ने भी इसका अनुसरण किया है।
वक्फ संशोधन अधिनियम के पारित होने से आम मुसलमानों में जैसा आक्रोश है, वैसा अनुच्छेद 370 को हटाने या तीन तलाक को अवैध बनाने वाले कानून से नहीं हुआ था। यह 1985 के शाहबानो मामले की याद दिलाता है, जिस पर मुस्लिम समुदाय ने व्यापक प्रतिक्रिया की थी। तब उन्होंने इसे मुस्लिम के रूप में अपनी पहचान से जुड़ा हुआ मामला माना था, जबकि आज आम मुसलमानों को डर है कि वक्फ की जमीन पर निर्मित मस्जिद, कब्रस्तान आदि सरकार कब्जे में ले सकती है। लेकिन एक तथ्य यह भी है कि नए वक्फ कानून ने हिंदुओं को कुछ खास उत्साहित नहीं किया है। ऐसे में पश्चिम बंगाल में वोटों का कितना धु्रवीकरण हो पाएगा, यह अभी अनुमान लगाना मुश्किल है। और, ममता बनर्जी को लेकर बंगाल के बाहर जो राय बन रही है, या जो खबरें बाहर दिखाई और सुनाई जा रही हैं, क्या वाकई बंगाल में ऐसा ही हो रहा है? इसका सवाल भी चुनाव में ही मिल सकता है। फिलहाल राजनीति बंगाल में सांप्रदायिक धु्रवीकरण पर केंद्रित हो गई दिखती है।
संजय सक्सेना
Editorial
मुर्शिदाबाद का मुद्दा और राजनीति…
